बड़े भईया डॉ. अजय सागर (असिस्टेंट प्रोफेसर, इलाहाबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय) को समर्पित कविता …
बिना साथ के जनम लिए, और बिना साथ के मरना है,
नश्वर जीवन में जो भी है, सब तुम्हें अकेले करना है।
ना भविष्य सुनिश्चित होता है, ना भाग्य की कोई माया है,
तुमको ही अपने संघर्षों से, अपनी किस्मत को भरना है।
ये संसार नहीं है, रणभूमि है, क्षमता का संग्राम है ये,
विजय-पराजय तुमसे ही है, साहस का परिणाम हैं ये।
युद्ध में लड़ना ठान लिए तो, ज़द में सारी दुनिया होगी,
त्याग दिए ग़र शस्त्र धैर्य का, तो जीते जी शमशान है ये।
तुम चयन करो अपनी ईच्छा से, मरना है या लड़ना है,
तुमको ही अपने संघर्षों से, अपनी किस्मत को भरना है।
त्याग दो ऐसे संकल्पों को, जिसमें दृढ़ता की धार न हो,
विजय मार्ग पर कूँच करो तो, रुक जाना स्वीकार ना हो।
पोंछ दो अपने चक्षुनीर को, परिहार करो हताशा का,
ऐसी कोई आपत्ति नहीं, जिसकी कटुता का पार न हो।
युद्ध छोड़ कर जीवन जीना, इस से बेहतर तो मरना है,
तुमको ही अपने संघर्षों से, अपनी किस्मत को भरना है।
जागो विद्युत की गति से, मुश्किलों पर अंतिम वार करो,
जितनी बाधा हों ध्येय प्राप्ति में, उन सब का संहार करो।
शिखर विजय करने से पहले, जीवन में विश्राम न हो,
हृदय में ऐसी तीव्र, ओजस्वी, ऊर्जा का संचार करो।
अजेय अभी तक जो नभ था, उस नभ में तुमको उड़ना है,
तुमको ही अपने संघर्षों से, अपनी किस्मत को भरना है।
मुझसे पूछो ग़र मेरे मत को, मैं तो बस यही बताऊँगा,
हर विपरीत परिस्थिति से मैं, डटकर आँख मिलाऊँगा।
ग़र विश्व विजय की ईच्छा हो, और शूल भरे हों राहों पर,
तो शूल के सीने पर चढ़कर के, मैं लक्ष्य को अपने पाऊँगा।
जब मृत्यु सत्य है, अटल अजर है, तो फिर कैसा डरना है,
मुझको ही अपने संघर्षों से, अपनी किस्मत को भरना है।
– चौधरी शुभम निगम ‘भईया जी’