विजय घाट से, हिंदी कविता – छोटे लाल ‘ केवलिया ‘ झारखंड

विजय घाट से

भारत की माटी का नन्हा,

मूरत सत्य ईमान की।

विजय घाट में एक समाधि ,

उस नेक नीयत इन्सान की।

 

            कद मध्यम, थी दुबली काया,

            पर हृदय था बड़ा विशाल।

            भारत मां की गोद में आया,

            वह बन गुदरी का लाल।

 

बड़े अभाव में बचपन बीता,

उठ गया पिता का साया।

हुई एक घटना माली ने,

जीवन का पाठ पढ़ाया।

 

             अंदर बाहर एक समान,

             न कोई बड़ा दिखावा।

             खादी धोती,कुर्ता, वंडी

             गांधी टोपी पहनावा।

 

साधक, कर्मयोगी, अध्यापक,

जब बदली दिशा डगर की।

देख अशिक्षा, भूख, गरीबी,

थी चिंता इस महासमर की।

 

            बाहर निश्च्छल मुस्काती सूरत,

            अंदर से बड़ा निडर था।

            दुश्मन से आंख मिलाकर बोले,

            इस हस्ती का बड़ा ज़िगर था।

 

हे, लाल बहादुर शास्त्री,

तूं जनमानस का प्यारा।

विजय घाट से गुंज रहा,

सन् पैंसठ का तेरा नारा।

           -छोटे लाल”केवलिया”

 

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