*विचार और व्यवहार*
विचार से कभी मुक्कमल नहीं होता है व्यवहार!
दोनों ही दो अलग अलग बातें हैं!
हर पहला शख्स ईमानदार ही दिखाता है खुदको
और..
हर दूसरा शख्स बेईमान ही नजर आता है सबको!
जबकि शब्दकोषों में ईमानदारी
शब्द पर व्हाइटनर लगाया जा रहा है
तब भी सब खुदको व्यवहारिक मनुष्य ही बता रहा है।
खैर…!
वैचारिकता और व्यवहारिकता का
परस्पर संयोग ही बचाएगा
मनुष्य में मनुष्यता!
संभवतः हर चीज़ खोज लाएगा विज्ञान
सिवाएं, मनुष्यता के!
मनुष्य होने के लिए मनुष्य को
मनुष्यता से पूर्ण होना ही पड़ेगा
मनुष्यतर होते हुए ही
हम जानेंगे!
न! मुक्कमल इस जहां में
कितने मुक्कमल हैं हम और
कितने न मुक्कमल है हमारे व्यवहार।
और फिर हम कह उठेंगे…
“विचार से कभी मुक्कमल नहीं होता है
व्यवहार!”
– पल्लवी मंडल