वीरों के वीरता का कविता – जितेंद्र यादव (नीरज)

वीरों के वीरता का

मोल चुकाया जाय

मर मिटे देश पे

न उनको भुलाया जाय।।

उनके रक्त से सिंचित

जहाँ की माटी है।

शौर्य बयां करती

अब भी हल्दी घाटी है।।

ब्याह करके अभी दूल्हन

जो घर में ला करके।

देश पहले है चल दिए

यही बता करके।।

हांथ की मेहदी भी

जिसकी अभी न सूखी है।

बीच मजधार में

पतवार कर से छूटी है।।

इधर जवान भी

बाडर पे सीना तान खड़ा।

दुशमनों के लिए

बन कर के गन हथियार खड़ा।।

इधर दुश्मन भी था सचेत

पाया मौका है।

खड़े जवान के सीने में

गोली झोंका है।।

गिर गया धरती माँ

के गोंद में गस खा करके।

रो पड़ी ब्याहता मृत्यु

की खबर पा करके।।

हाय बिधाता ने

क्यों कस्ती डुबोई मेरी।

हो सकी न ये अभागन

आज तक उनकी मेली।।

माफ करना मुझे

ऐ प्राणनाथ जिंदा हूँ।

अपनी ही जिंदगी से

मैं खुद ही शर्मिंदा हूँ।।

मगर तोड़ा है वादा

आप ने कहकर मुझसे।

आ रहा आज हूँ तुम

आज ही बोलो फिर से।।

कलम रुकती है आज

आगे लिख नहीं सकता।

देश की दुर्दशा को

मैं तो कह नहीं सकता।।

हांथ जोड़े खड़ा हूँ

दोस्तों आगे आओ।

किसी जवान के बलिदान

पे न शर्माओ।।

जितेंद्र यादव (नीरज)

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