वह मुझे कृष्ण सा लगता है
खुद से ज्यादा प्रेम करना याने…
अर्जुन का सुभद्रा के लिए क्षीण होना…
या फिर…
कर्ण का वर्चस्व होते हुए भी…
दुर्योधन से नाता ना तोड़ पाना…
ऐसा प्रेम कभी त्याग में खिलता है…
या आंसुओं में लुप्त हो जाता है…
परंतु ना वह…
ना वह शरण जाता है और…
ना ही पिछे हटता है…
बस लुटाटे जाता है…
इस युद्ध में विजय-हार मायने नहीं रखे जाते…
अंत में प्रेम रह जाता है…
अनंत, अटल, अमर
वह मुझे कृष्ण सा लगता है…
इस वास्ते…
संभाल कर रखना चाहता हूं…
मित्रता यह नाता अबाधित रहता है…
किसी एक को…
अर्जुन का बल मिलता है…
तो किसी को…
कृष्ण की छाया मिलती है…
और जीवन में…
एक दूसरे का साथ ढाल बन जाती है…
यह प्रेम…
ना मांग सकते हैं…
ना बात कर सकते हैं…
ना गिन सकते हैं…
सिर्फ त्याग की भावना होती है…
समर्पण होता है…
और…
जनम जनम का साथ एक दूसरे के लिए…!
– अच्युत उमर्जी
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