तुम्हें लगा होगा शायद
अब मुझसे ऊब गए होंगे।
उनके दिल के अरमानों
के दरिया सूख गये होंगे।।
कभी मचल बैठा करते थे
मेरी एक मुस्कान से जो
आज उन्ही के आंखों के
क्यों पानी सूख गए होंगे।।
सच कहता हूँ गर
तुम मेरी बातों पर विश्वास करो।
नहीं कभी देखो मुझको युं
न ही तुम संताप करो।।
मुझे लगा अब शायद
मेरी जगह तुम्हारे पास नहीं।
तुम को मेरे जज्बातों का
अब शायद आभास नहीं।।
इसीलिए मैं सच कहता हूँ
आंशु छिपा लिया अपना।
खुद ही घोंट गला बैठा मैं
देखा था जो भी सपना।।
अगर तुम्हारी खुशी इसी में
तो मुझको स्वीकार है सब।
अपमान हो या उपेक्षा
सब मुझको स्वीकार है अब।।
कहो मुझे चाहे तुम भी ठग
मैं मुख खोल नहीं सकता।
मारे मुझको कोई पत्थर
मैं कुछ बोल नहीं सकता।।
फिर लुंगा मैं भी इस जग में
दिल का दीप जला करके।
मेरा भी कोई अपना था
यह खुद को समझाकर के।।
पर तुमको बतला देता हूँ
चौखट लांघ नहीं सकता।
प्रेम में मर जाउं घिस घिस कर
भिक्षा मांग नहीं सकता।।
जितेंद्र यादव (नीरज)