तुम्हारी यादों की कतरन हिंदी कविता – क्रांति

तुम्हारी यादों की कतरन

 

मैं जानता हूं

तुम्हारी यादों की कतरन का,

तुरपाई करके

मैं कितनी भी कविता बना दूँ

लेकिन वह,

किसी मुकम्मल प्रेम की

ग़ज़ल नहीं बन सकती है।

 

मैं जानता हूं

जब हम

किसी मोड़ पर मिलेंगे,

तो एक पल के लिए तुम

ठहर जाओगी

तैर जाएंगी तुम्हारी ऑंखों में,

मेरी सब कविता

दृश्य नजर आएंगे तुमको रफ़्ता-रफ़्ता।

 

मैं जानता हूं

मेरे शब्द

तुम्हारी आंखों से

मोती बनकर छलकेंगे,

तुम चाहोगी

इन मोतियों को मैं समेट लूं,

मैं आगे बढूंगा

और तुम मुझे छल से छूना चाहोगी,

मगर छूते ही

मेरा किरदार टूट जाएगा

हांथ में जो मोती था, मोती भी छूट जाएगा।

-क्रान्ति

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