गीत
तुम हो सोना या हीरा किसी के
चांदी के तुम रुपैया नहीं हो
द्वारिकाधीश भी कृष्ण भी तुम
किंतु मेरे कन्हैया नहीं हो
२”””
कह रहे हो कि अंतर नहीं हैं
राधिका! प्रेम जर जर नहीं है
जाके दर्पण में इक बार देखो
मोर का पंख सिर पर नहीं हैं
नाथ दुनिया के तुम हो गए हो
नाग के पर नथैया नहीं हो
द्वारिकाधीश भी कृष्ण भी तुम
किंतु मेरे कन्हैया नहीं हो
३””””
ज्ञान गीता का सबको बताया
प्रेम का पाठ भी है पढ़ाया
जितने जग में रहे आदताई
उनके खातिर सुदर्शन उठाया
शंख तुमने भले ही बजाया
बांसुरी के बजैया नहीं हो
द्वारिकाधीश भी कृष्ण भी तुम
किंतु मेरे कन्हैया नहीं हो
४”””
सब गली गांव के सब घरों में
तुम मिले पक्षियों, पत्थरों में
पूर्ण है वर्ण माला तुम्हीं से
शब्द के तुम सभी अक्षरों में
गीत,मुक्तक ,बड़े छंद में तुम
बस हमारे सवैया नहीं हो
द्वारिकाधीश भी कृष्ण भी तुम
किंतु मेरे कन्हैया नहीं हो।
– अमर पाल ‘ अमर ‘