तपती धरती की तृष्णा
तपती धरती की तृष्णा को,
धैर्य धरा,हे तारक! तर दो।
पापी-पीड़ित जन-जन को,
परिणामों से अवगत कर दो,
कुचल रहे जो कुदरत को,
सांसे उनकी सीमित कर दो।
मानव जीवन के मूल्यों को,
जन-जन में जीवित कर दो।
निर्मल कर दो,निष्ठुर मन को,
मानव में मानवता भर दो।
जीव-जनित,पशु-पक्षी के,
प्राणों का संकट हर दो।
ना काट सके कोई वृक्षों को,
हृदय में वो करूणा भर दो।
रवि की रुठी किरणों को,
प्रभु तनिक शीतल कर दो।
आश्रय प्राप्त नहीं हर को,
छांव भरा बादल कर दो।
तपती धरती की तृष्णा को,
धैर्य धरा,हे तारक! तर दो।
– शुचिता साहू ‘शुचि’
सक्ती – छत्तीसगढ़
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