1 – नम आंखों से जब मैं प्रकाश से एक सहज सा सवाल किया कि प्रकाश तुमको इस शहर ने क्या सिखाया, तुम इस शहर से क्या सीखे ? तब उसका जो जवाब आया था। हम उसे इस कविता के माध्यम से समझ सकते हैं।
कुछ को खुशहाल ,तो कुछ के,
छालों से भरे उनके पांव देखा है।
कुछ के घर इतना की लुटा रहे हैं, वो
कुछ के घर मुट्ठी भर अनाज देखा है।
मैंने बदलाव देखा है।
कुछ के घरों में है सब कुछ,
कुछ को थोड़े समानों के लिए परेशान देखा है।
कुछ के प्रति इनका सम्मान चुकता ही नहीं,
कुछ के प्रति तिरस्कार देखा है।
मैंने बदलाव देखा है।
कुछ के पास है ही नहीं, कोई,
कुछ के घर जीवन उद्धार देखा है।
कुछ के पास थोड़ा भी समय नहीं,
कुछ पास इतना की, अपमान देखा है।
मैंने बदलाव देखा है।
यार अभी, कुछ के घर तो किताबें ही नहीं,
कुछ के घर किताबों का भंडार देखा है।
कुछ को बहुत प्यार है उसकी जिंदगी से,
कुछ को उन्हीं की हाथों बर्बाद करते देखा है।
मैंने बदलाव देखा है।
कुछ के पास नहीं है तन ढकने को कपड़े
कुछ के पास दिखावे वाला बुखार देखा है।
कुछ के पास इतना भी नही की जरूरतें पूरी हों,
कुछ के घरों पैसों का अपमान देखा है।
मैंने बदलाव देखा है।
कुछ करते हैं सम्मान अपनों का,
कुछ के तो सम्मान में भी अपमान देखा है।
कुछ करके भी नहीं बताता किसी से
कुछ तो करते भी नहीं बस हा, हा कार देखा है।
मैंने बदलाव देखा है।
कुछ को कड़ी धूप में नंगे पैर तो,
कुछ के यहां ब्रांडों का भंडार देखा है।
कुछ नहीं करते हैं , कुछ भी,
कुछ को कुछ करने के लिए परेशान देखा है।
मैंने बदलाव देखा है।
कुछ चुरा कर रखते हैं चीजों को,
कुछ को सबकुछ कुर्बान करते देखा है।
कुछ के घरों में संस्कारों की कमी है,
कुछ के घर चरणस्पर्श वाला प्यार देखा है।
मैंने बदलाव देखा है।
कुछ के मुख से बस कड़वे शब्द ही निकलते हैं,
कुछ की बोलियों में, मैं मिठास देखा है।
कुछ के घरों में नहीं हैं एक भी समान,
कुछ के घरों में मशीनों का भंडार देखा है।
मैंने बदलाव देखा है।
कुछ, कुछ भी नहीं करना चाहते,
कुछ की आंखों में कुछ करने की भूख देखा है।
कुछ देखते रहते हैं समानों को,
कुछ को बनता खरीददार देखा है।
मैंने बदलाव देखा है।
कुछ सो जाते हैं सुकूं से सड़कों पर,
कुछ को नींद न आने से बीमार देखा है।
कुछ तो हस्ट पुष्ट हैं इस जीवन से,
कुछ के पास बीमारियों का भंडार देखा है।
मैंने बदलाव देखा है।
कुछ कर देते हैं भला मुफ़्त में लोगों का,
कुछ को बस पैसों के प्रति, प्यार देखा है।
कुछ के प्रति देखा हूं अनेकों दुवाएं,
कुछ के प्रति ढेर सारे श्राप देखा है।
मैंने बदलाव देखा है।
कुछ को वो, दे रहे थे दर्ज़ा भगवान का,
कुछ लोगों के प्रति गालियों की बौछार देखा है,
कुछ सह जाते हैं
हर दुःख,परेशानी,
कुछ को हर पल बस परेशान देखा है।
मैंने बदलाव देखा है।
2 – रंगों का त्योहार है पर, खुशियां भी अपार हैं
खिलखिलाते चेहरे जिसमें ,प्यारी मुस्कान है।
ये खुशियां कुछ पलों में ही यूं ढल जाएंगी
जब बच्चे पूछेंगे, मम्मी खाना क्या बनाएंगी ?
कहीं सबकुछ , बस मेरे घर ही इंतज़ार होगा
वो खरीदेंगे, खाएंगे, गर कुछ देंगे अहसान होगा।
लाल, हरे, नीले, पीले, रंगों का भरमार होगा
उनके यहां होगी होली, मेरे यहां बस इंतज़ार होगा।
रंग -बिरंगे उनके घर, वहां महकती पूड़ी, पकवान
घर तो यहां भी है, पर होगा, हे भगवान्! हे भगवान्!
बच्चे तो बच्चे हैं, उन्हें क्या पता अच्छा – बुरा इंसान
हम तो उनके हैं, जो देगा वही इंसान, वही भगवान्।
कुछ देर रुक,
लंबी आह भरने के बाद …
कोई बचाएगा उनको, कोई करेगा बस खिलवाड़
कुछ के कदमों में होंगे कांटे, कुछ के मर्यादा पार।
ओह, अच्छा, कल तो कुछ प्रेमी होंगे, न सुक्खू
सिंदूर बहाने गुलाल लगा, वो करेंगे मर्यादा पार।
लंबी आह भरने के बाद सु
क्खू दादा…
ओह! उफ़…
– अभय प्रताप सिंह