स्मृतियां कविता – पल्लवी मंडल बिहार

स्मृतियां

 

स्मृतियों के अलावा

क्या ही है

जिसको अपना कह सकते हो?

 

तुम्हारे स्मृतियों पर

तुमसे अधिक ठाठ किसका हो सकता है.?

इस दुनिया में सब नाशवान है

सिवाए स्मृतियों के!

 

जिसको भी देखा,

जाना, समझा, सुना

और चाहा

वो केवल और केवल स्मृतियों में रहेगा,

और कहीं नहीं!

 

स्मृतियों में, स्मृतियों के इतने पंगत हैं

एकबारगी से मेरा मन

उछल कर कभी शुरू में, कभी अंत में नजर आता है!

और यकायक ठहर सा जाता है

कभी मुस्कुराता है

कभी रूंधे गले से मुझको ही पुकारता है!

 

मेरे मन का कोई नहीं

सिवाएँ मेरे स्मृतियों के!

 

दरअसल

खोना-पाना, छूटना, हांसिल होना

सब उचित है, सब अनुचित है

लेकिन स्मृतियां नहीं है अनुचित

वो नहीं छूटती!

 

जितना हो सके उकेरों स्मृतियों को

मन के केनवास पर

मन के हिस्से को स्मृतियां ही

संपुष्ट करती है!

     – पल्लवी मंडल

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