सिक्के की तरह उछाला गया, हिंदी कविता – राधेश विकास

सिक्के की तरह उछाला गया,

कुछ इसी तरह संभाला गया।।

 

चांभियाँ करीने से लगी थीं,

कुछ यही सोचकर ताला गया।।

 

अपने स्वार्थ में अपना कहा,

मगर बेमुरउवत पाला गया।।

 

खिलाने और तरीके में फर्क था,

बड़ी मुश्किल में हर निवाला गया।।

 

वो स्वार्थ के नशे में था जरूर मगर,

हर पैग बड़े हिसाब से ढाला गया।।

 

तमाचों का हिसाब पहले रख लिया,

विकास फिर गुनाह पाला गया।।

– राधेश विकास

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