सताए गए हैं हिंदी कविता – राम जी तिवारी ” राम “

सताए गए हैं

अपनों के हाथों सताए गए हैं,

राहों में काँटे बिछाए गए हैं।

 

गैरों को अपना बनाते सभी हैं,

वहीं अपनों से ठुकराए गए हैं।

 

भूलेंगे न हमको मरकर कभी भी,

गैरों सा फिर क्यों भुलाए गए हैं।

 

सहेज कर रखा था मेरे खतों को,

वो ख़त आज सभी जलाए गए हैं।

 

खुद से भी अधिक था जिनपर भरोसा,

उन्हीं से तो घोर शत्रु बताए गए हैं।

 

पीने की न हसरत थी हमको कभी,

प्यार के नाम पर पिलाए गए हैं।

 

अपने बन सिर्फ देते रहे धोखा,

झूठे रिश्ते महज निभाए गए हैं।

 

छुपाकर सभी से हमारा समर्पण,

झूठे सिर्फ किस्से सुनाए गए हैं।

 

बाँट दीं खुशियां हमनें जमाने को,

दर्द देकर बहुत रुलाए गए हैं।

 

हर एक दिल की धड़कन थे कभी हम,

अब, सब की नजरों में गिराए गए हैं।

– राम जी तिवारी “राम”

                                     उन्नाव (उत्तर प्रदेश)

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