संघर्ष की चक्की चलती है,
मेहनत का आटा पिसता है।
सफलता की रोटी पकती है,
अपना सितारा चमकता है।
सहारों का उजाला हो कितना,
खुशियों तक ही वो टिकता है।
मजबूरियों के अंधरों में भी,
हिम्मत का शोला दहकता है।
मंजिल हो प्यारी जिसको,
बीच राह नहीं, अटकता है।
भूल जाए जो लक्ष्य कभी,
वो सारा जीवन भटकता है।
है गर्म हवाओं का डर उसको,
जो मखमल में ही पलता है।
उसे अंगारों का भय क्या?
जो कांटों में ही चलता है।
बैसाखियां छोड़ बहानों की,
जो, हौसलों से ही चलता है।
होता है अलग वो दुनिया से,
इतिहास वही फिर रचता है।
– Sakshi Agrahari