सजल हो जाती आंखे कविता – संघमित्रा चंचल

सजल हो जाती आंखे
जब तुम दूर चले जाते
रिक्तता सी अनुभव होती
जब तुम रूठकर चले जाते ।

तुम बिन जीवन मरुस्थल है
क्या खोना और पाना क्या !
जीवन के बहुमूल्य पदार्थ हो
इससे ज्यादा चाहना क्या !

तुमसे ही सृष्टि सुंदर है
ऐसी सुंदरता और कहां ?
प्रेम भी तुमसे परिभाषित होता
तुमसा प्रेमी और कहां ?

ईश्वर की विशिष्ट कृति
तुम हो मेरे मन के मीत
तुमसा ना कोई प्यारा जग में
तुमसे लगी है प्रीति ।

तुम्हारा ये अधिकार जताना
लगता है संबंध पुराना
तुम जो डाटते हो
वो भी लगता है सुहाना ।

सजल हो जाती आंखे
जब तुम दूर चले जाते ।।

                 – संघमित्रा चंचल

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