राम गीत – अमन अक्षर

राम गीत

सारा जग है प्रेरणा प्रभाव सिर्फ राम हैं,

भाव सूचियां बहुत हैं भाव सिर्फ राम हैं।

 

कामनाएं त्याग पुण्य काम की तलाश में,

तीर्थ ख़ुद भटक रहे थे धाम की तलाश में।

न तो दाम के न किसी नाम की तलाश में,

राम वन गये थे अपने राम की तलाश में।

 

आप में ही आप का चुनाव सिर्फ़ राम हैं,

भाव सूचियाँ बहुत हैं भाव सिर्फ़ राम हैं।

 

ढाल में ढले समय की शस्त्र में ढले सदा,

सूर्य थे मगर वो सरल दीप से जले सदा।

ताप में तपे स्वयं के स्वर्ण से गले सदा,

राम ऐसा पथ थे जिसपे राम ही चले सदा।

 

दुःख में भी अभाव का अभाव सिर्फ़ राम है,

भाव सूचियाँ बहुत हैं भाव सिर्फ़ राम है।

 

अपने अपने दुःख थे सबके सारे दुःख छले गये,

वो जो आस दे गये थे वो ही सांस ले गये।

राम राज की ही आस में दिये जले गये,

राम राज आ गया तो राम ही चले गये।

 

हर घड़ी नया-नया स्वभाव सिर्फ़ राम हैं,

भावसूचियाँ बहुत हैं भाव सिर्फ़ राम है।

 

ऋण थे जो मनुष्यता के वो उतारते रहे,

जन को तारते रहे तो मन को मारते रहे।

इक भरी सदी का दोष ख़ुद पे धारते रहे,

जानकी तो जीत गयीं राम हारते रहे।

 

दुःख की सब कहानियाँ हैं घाव सिर्फ़ राम हैं,

भावसूचियाँ बहुत हैं भाव सिर्फ़ राम है।

 

जग की सब पहेलियों का देके कैसा हल गये,

लोक के जो प्रश्न थे वो शोक में बदल गये।

सिद्ध कुछ हुए न दोष इसतरह से टल गये,

सीता आग में न जलीं राम जल में जल गये।

 

सीता जी का हर जनम बचाव सिर्फ़ राम हैं

     – अमन अक्षर

 

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