पास पैसे नहीं दवा के लिए कविता – प्रदीप प्यारे

ग़ज़ल

कुछ नहीं तो ‘मेरी रज़ा के लिए

आज रुक जाइए ख़ुदा के लिए

 

दूर रहकर सता रहे हो क्यों

पास आ जाइए सदा के लिए

 

इतनी बरकत दे रब कमाई में

कुछ निकालूँ किसी गदा के लिए

 

भाईचारा हो जिनसे बस्ती में

काम मेरे हैं उस फज़ा के लिए

 

नाज़ उनके उठाये हैं कितने

इक मदरसे की मान्यता के लिए

 

दिल हैं बेचैन किस लिए आख़िर

इश्क में एक बेवफ़ा के लिए

 

राह सच्ची दिखाऐ जनता को

ख़ास लाज़मी है रहनुमा के लिए

 

लोग बे-मौत यूं भी मरते हैं

पास पैसे नहीं दवा के लिए

 

देख लेते अदा से’ वो “प्यारे”

मैं तो तैयार था कज़ा के लिए।

 

  – प्रदीप “प्यारे”

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