नन्द विलास राय और उनकी सुप्रसिद्ध रचनाएं, मैथिली

लेखक परिचय

नाम- नन्द विलास राय, राष्ट्रीयता- भारतीय, जन्‍म तिथि : 2 जनवरी 1957, माता : स्व. दुर्गा देवी, श्रीमती परमेश्वरी देवी, पिता : स्व. बच्चा राय, पत्नी : श्रीमती उषा देवी, पैत्रिक गाम : भपटियाही (नरहिया) जिला- मधुबनी, मातृक गाम : निर्भापुर (रामपट्टी) जिला- मधुबनी, शैक्षणिक योग्यता : स्नातक (गणित) मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगा। प्रशैक्षणिक योग्यता : आई.टी. आई. (टर्नर), जीविकोपार्जन : कृषि। वर्त्तमान पता : ग्राम+पोस्ट- भपटियाही, भाया- नरहिया, जिला- मधुबनी, (बिहार), पिन- 847108

वर्त्तमान पता : ग्राम+पोस्ट- भपटियाही, भाया- नरहिया, जिला- मधुबनी, (बिहार), पिन- 847108

कृति : 1. सखारी-पेटारी (2013), 2. मरजादक भोज (2018), 3. भरदुतिया (2018), 4. सरस्वती पूजाक परसाद (2021) कथा संग्रह। 5. छठिक डाला (2018), 6. हमर चारू धाम (2018) काव्य संग्रह। 7. बहिनपा (2021) एकांकी-नाटक। 8. अप्पन बीतल (2021) संस्मरण।

अन्य : मिथिला-मैथिलीक प्रमुख कथा गोष्ठी- ‘सगर राति दीप जरय’क 83म आयोजन तथा नियमित सहभागिता।

 

रचना: 

दू टा कविता, दू टा कथा (कहानी)

 

हमर चारूधाम

 

एक दिन एला हमर दोस

जेकर नाओं छिऐन हरेराम

हम आदरसँ बैसौलिऐन

नेबोबला चाह पियौलयैन

स्पेशल पत्ती आ जर्दाक संग

खियौलयैन पान।

हमर दोस बजला

चलू मीत एमकी

काँवर लऽ कऽ बाबाधाम

बाबाधाम गेलासँ

नहि हएत किछो हानि

यौ भोलाबाबा छैथ

बड़का औधरदानी

सभ मनोकामना पूर करता

हमरा बातक करू बिसवास

जे-जे मंगबै सभ देता

पूरा करता सब आश।

 

हम बिच्चेमे बजलौं

यौ दोस हमर माए छथिन

साक्षात पार्वती

आओर बाबू छैथ शंकर भगवान

हुनका सभक सेवाकेँ धर्म बुझै छी

कथी-ले जाएब हम बाबाधाम।

सुति उठि सभ दिन करै छिऐन

माए-बाबूकेँ प्रणाम

ऐ काजसँ पैघ नहि

बुझै छी हम गंगा स्नान

जाबे धरि माए-बाबू

जीबै छैथ

नै जाएब तीर्थ स्थान

माए-बाबू जेतए बसै छैथ

वएह छी हमर चारूधाम। 

हमर होली

 

फगुआक उमंग

सभपर चढ़ल रंग

कियो पीबै दारू

कियो पीबै भंग

मुनसाकेँ की कही

मौगी सभकेँ

रंग खेलाइत देख हम

रहि गेलौं दंग।

 

चारूकात मचल छल हूरदंग

कियो पीटैत डम्फा

कियो पीटैत मृदंग

सभ अपनेमे मतंग

लोक सभकेँ होली खेलाइत देख

हमरो मनमे उठल तरंग

मनमे आएल

हमहूँ खेलितौं होली

अपन संगी सबहक संग

मुदा आब केतए पाबी

सभ संगी गाम छोड़ि शहर जा

लगेने अछि अपन-अपन डाली

छी बुड़बक तँए गाममे रहि

ताकए चाहै छी होली आ दिवाली

अपन बचपनक यारी…।

 

केना खेलब होली

किनका लगाएब रंग

कियो कहि ने दिअए

एना किए भऽ

गेल छी उदंड

रंगक खातिर भऽ नै जाए

केकरोसँ जंग।

 

मनमे आएल

होली खेलब

अपन पत्नियेँक संग

ओकरे रंगब

अंग-अंग।

 

यएह सोचैत हम

अँगना गेलौं

पत्नीकेँ लगमे बजेलौं

ओ बजली-

की यौ

अहॉंक रंग लगैए

आइ बड़ बेढ़ग

दारू पीलौं हेन

आकि पीलौं अछि भंग?

 

कहलयैन-

आइ होली खेलब

अहींक संग

अहींकेँ लगाएब रंग।

 

पत्नी बजली-

टोला-पड़ोसाक

छौंड़ासभ

हमरा कऽ देने छल

अपचंग

आब अहॉं हमरा

जुनि करू तंग।

हमर राखले रहि गेल

लाल-हरियर

सभटा रंग।

फेर मनमे आएल

किएक ने बाबाकेँ

पैरमे अबीर लगा

हुनकासँ आशीष पाबी।

 

हम दलानपर गेलौं

बाबाकेँ पैरमे

अबीर लगेलौं

हुनक दुनू पैर छुबि

अपन दुनू हाथसँ

केलौं प्रणाम

ओ बजला-

जीबह

नीके रहअ

रोशन करह

अपन मातृभूमिक नाम। 

 

मंत्रीजी सँ पैरबी

 

विनीतजी पैघ ठीकेदार छैथ। कइएक विभागमे ओ ठीकेदारीक लेल निबन्धन करौने छैथ। करोड़ोमे हुनकर ठीकेदारीक काज चलैत रहै छैन। चाहे सिंचाइ विभाग हो वा भवन निर्माण विभाग, वा पुल-सड़क निर्माण विभाग सगतैर हुनकर काज चलिते रहै छैन। दसटा हाइबा गाड़ी, पाँचटा जेसीबी, दसटा ट्रैक्टर, पाँचटा टीपर, पाँचटा मिक्चर मशीन आर कताक तरहक मशीनसभ रखने छैथ।

21 अगस्तक दिन विनीतजी एकटा टेण्डरक काजसँ पटना गेल रहैथ। भवन निर्माण विभागमे टेण्डर भरि कऽ जखन बाहर सड़कपर एला कि हुनकर मोबाइलक घन्टी बजलै। जेबीसँ जखन मेाबाइल निकालि नम्बर देखलैन तँ हुनक मैनेजर अजयजीक नम्बर रहैन। विनीतजी फोन रिसिभ करैत बजला-

“हँ अजयजी, की बात?”

ओम्हरसँ आवाज आएल-

“सर, रामपुर थानाक बड़ाबाबू पाँचटा हाइबा आ एकटा जेसीबी जब्त कऽ थानापर लऽ गेला हेन। हम बड़ाबाबूसँ भेँट केलिऐन तँ ओ कहला जे ठीकेदार को बुलाओ।”

तैपर विनीतजी बजला-

“ठीक छै। अखन हम पटनामे छी। राति तक गाम पहुँचब आ भोरे आठ बजे धरि रामपुर थानापर पहुँचब। अहाँ आठ बजे भोरमे रामपुर थानाक अगल-बगलमे रहब। हम फोन करि कऽ अहाँकेँ बजा लेब।”

ई कहि विनीतजी फोन काटि देलखिन।

ऐगला दिन विनीतजी आठ बाजिकऽ पाँचे मिनटपर रामपुर थानाक गेटपर पहुँच गेला। अजयजी एकटा चाहक दोकानपर बैसल रहैथ। जखने विनीतजीक स्कारपिओ गाड़ी देखलखिन ओ चाहक दोकानपरसँ उठि विनीतजीक गाड़ी लग पहुँचला। विनीतजी अजयजी केँ संग कऽ थानापर गेला। बड़ा बाबू थानापर नहि रहैथ। ओ डेरापर रहैथ। विनीतजी अजयजी सँ पुछलखिन-

“बड़ाबाबूक डेरा केतए छै से अहाँकेँ बुझल अछि?”

अजयजी कहलकैन-

“जी बुझल अछि।”

तैपर विनीतजी बजला-

“केतेक दूर छै। जँ बेसी दूर हएत तँ गाड़ी लऽ लेब आ जँ लगीचे हएत तखन पएरे टहलैत चलब।”

अजयजी कहलकैन-

“नहि बेसी दूर नहि छै। लगधक अदहा किलोमीटर हएत।”

विनीतजी बजला-

“तखन टहैलते चलू।”

दुनू गोरे बड़ाबाबूक डेरापर पहुँचला। बड़ाबाबू दाढ़ी बना रहल छला। अजयजी गेटेपर सँ कहलखिन-

“प्रणाम सर। ठीकेदार साहैब एला हेन।”

तैपर बड़ाबाबू कहलखिन-

“आइये भीतर आ जाइये। अच्छा किये डेरेपर आ गये।”

विनीतजी आ अजयजी भीतर गेला। विनीतजी दुनू हाथ जोड़ैत बजला-

“नमस्कार सर। अपनेक आदेशक मोताबिक हम हाजिर छी। की सेवा कएल जाए।”

बड़ाबाबू बगलमे राखल कुर्सी दिस इशारा करैत बजला-

“बैठिये।”

दुनू गोरे यानी विनीतजी आ अजयजी बैस गेला।

विनीतजी बड़ाबाबूक दूटा छोट-छोट बच्चाकेँ देखि कऽ अजयजीसँ कहलखिन-

“जा छुच्छे हाथे आबि गेलौं। एना करू अहाँ बाजारसँ एक किलो रसभरी मिठाइ आ एक किलो सेब कीनने आउ। ढौआ अछि किने।”

अजयजी खड़ा होइत बजला-

“जी ढौआ अछि।”

ई कहि अजयजी बाजार दिस विदा भऽ गेला।

तैबीच बड़ाबाबू बजला-

“अच्छा किये मुंशी को हटा दिये।”

तैपर विनीतजी बजला-

“अच्छा, आब कहल जाए सर। हमरा की आदेश छै।”

बड़ाबाबू बजला-

“देखिये मामला गम्भीर है। बिना परमिट का आप नदी से बालू खनन कर रहे थे। सरकार का शख्त आदेश है जो कोई भी बेकती बिना परमिट का किसी सरकारी जमीन में खनन कर काम करे उनका गाड़ी जब्त कर तुरन्त प्राथमिकी दर्ज किया जाए।”

विनीतजी खुशामद करैत बजला-

“हम कोनो अहाँसँ बाहर छी सर। हमरा की करए पड़तै से आदेश कएल जाए आ हमरा गाड़ी सभकेँ छोड़ि देल जाए।”

दुनू गोटामे यानी बड़ाबाबू आ विनीतजी मे लेन-देनक गप होमए लगल। बड़ाबाबू पाँच लाख टका मंगलखिन। विनीतजी बड़ गिड़गिड़ेला। अन्तमे बड़ाबाबू कहलकैन- “तीन लाख से कम में काम नहीं चलेगा। ऊपर तक पहुँचाना पड़ता है।”

विनीतजी कहलकैन-

“सर, हमरा दू दिनक समय देल जाउ।”

तैपर बड़ाबाबू बजला-

“बिना प्राथमिकी का थानापर गाड़ी रखना गैर कानूनी है। मैं एक दिन का समय दे रहा हूँ। कल सुबह आठ बजे आकर मामला रफा-दफा करा लीजिये। वरना आप जानियेगा और आपका काम जानेगा।”

ताबेतमे अजय मिठाइ आ फल लऽ कऽ पहुँच गेला। मिठाइ आ फल बड़ाबाबूक सामने टेबुलपर रखैत विनीतजी बजला-

“ठीक छै सर, आदेश देल जाउ। काल्हि पुन: दर्शन करब।”

ई कहि अजयजी आ विनीतजी बड़ाबाबूक डेरासँ बाहर आबि गेला।

जखन दुनू गोटा बड़ाबाबूक डेरासँ निकैल कऽ सड़कपर एला तँ अजयजी पुछलकैन-

“भेल बात सर?”

विनीतजी कहलखिन-

“हँ बात तँ भेल, बड़ पाइ मंगैए बड़ाबाबू।”

अजयजी पुछलकैन-

“केतेक पाइ मंगै छैथ?”

विनीतजी कहलखिन- “पूरा-पूरी तीन लाख।”

अजयजी बजला- “ठीके बड़ पाइ मंगै छैथ।”

विनीतजी गाड़ी लऽ गाम दिस विदा भेला ओ सोचए लगला, बड़ाबाबू तँ बड़ पाइ मंगला हेन। की करी। एकाएक हिनका मोन पड़लैन हमरे मामाक दोस्तक बेटा तँ गृह मंत्री छथिन। दुनू गोटा यानी विनीतजीक मामा आ गृहमंत्रीजीक घर एक्के गाम जगतपुरमे। विनीतजी सोचलैथ किए ने गृहमंत्री सँ पैरवी लगौल जाए। जँ गृहमंत्रीजीक पैरबी भऽ जाए तँ तीन लाखक काज एको लाख टकामे भऽ सकैए।

ओ गाड़ी लऽ सीधा मामा गाम जगतपुर पहुँचला। ममियौत भायकेँ सभ गप्प कहलकैन। संयोग मंत्रीजी गामे आएल रहथिन। ममियौत भाय राजीवजी कहलखिन-

“चलू संयोग नीक अछि। मंत्रीजी गामेमे छैथ।”

दुनू गोटा मंत्रीजीक घरपर पहुँचला। ओइठाम बेस भीड़ छेलइ। मुदा राजीवजीकेँ मंत्रीजी सँ भेँट करैमे दिक्कत नहि भेलइ। राजीवजी आ विनीतजी दुनू गोटा मंत्रीकेँ सभ बात कहलकैन। मंत्रीजी पी.ए. साहैबकेँ बजा कऽ पुछलखिन-

“रामपुर कोन जिलामे पड़ै छै?”

पी.ए. साहैब कहलकैन-

“भीमपुर जिलामे।”

तैपर मंत्रीजी पी.ए. साहैबकेँ कहलखिन-

“ठीक छै विनीतजीक काज नोट कऽ लियौन। रातिमे हमरा भीमपुर जिलाक एस.पी.सँ बात कराएब।”

पी.ए. साहैब कहलकैन-

“ठीक छै सर।”

मंत्रीजी, विनीतजी आ राजीवजी सँ कहलखिन-

“काम भऽ जेतै। हम रातिमे भीमपुरक पुलिस अधीक्षककेँ कहि देबैन। अहाँ काल्हि सबेरे एस.पी.सँ भेँट कऽ लेब। काज भऽ जाएत।”

पी.ए. वरूणजी राजीवजी आ विनीतजी केँ लऽ कऽ बाहर एला। पी.ए. वरूणजी राजीवजी सँ कहलखिन-

“की कहब अखन तक बोहैनो नहि भेल हेन। फेर विनीतजीकेँ कहलकैन- अच्छा अहाँ बोहैन करू आ काज नोट कराउ।

विनीतजी एकटा दू हजारक नोट पी.ए. वरूणजी केँ देलकैन।

तैपर वरूणजी बजला- कमसँ कम पाँच साए एक टका आर दियौ। शुन्ना ठीक नहि होइ छै।

विनीत जी पाँच साएक एकटा नोट आ एकटा पाँचक सिक्का आरो वरूणजी केँ देलकैन। वरूणजी विनीतजी सँ पुछलकैन- रामपुरे थानाक ने मामला छी।

बिनीतजी बजला- जी पी.ए. साहैब।

वरूणजी आगाँ पुछलखिन- गाड़ीए सभ ने जब्त केने अछि, वएह गाड़ी छोड़ेबाक अछि।

विनीत जी कहलकैन- जी गाड़ीए छोड़बाक हेतु पैरवी करेबाक अछि।

तैपर वरूणजी कहलकैन- अहाँ निश्चिन्त भऽ कऽ जाउ। रातिमे हम मंत्रीजीकेँ भीमपुरक एस.पी.सँ बात करा देबैन। अहाँक पैरबी भऽ जाएत। काल्हि अहाँ भीमपुरक एस.पी.सँ मिल लेब। काज भऽ जाएत।

विनीतजीकेँ मन रहैन जे अपने सोझामे मंत्रीजी सँ एस.पी. भीमपुरकेँ फोन कराबी मुदा से नहि भेल। ओ अपन शंका राजीवजी लग व्यक्त केलखिन जे पैरबी हएत कि नहि।

राजीवजी कहलकैन- जखन वरूणजीकेँ पच्चीस साए टका दऽ देलिऐन तखन वरूणजी मंत्रीजी सँ एस.पी. साहैबकेँ फोन करेबे करथिन। ओना, भोरमे हम वरूणजीसँ भेँट कऽ लेबैन। नहि ते एना करू वरूणजीक फोन नम्बर लऽ लिअ, भोरमे फोन कऽ वरूणजी सँ पुछि लेबैन।

तैपर विनीतजी कहलखिन- सएह ठीक हएत।

राजीवजी जेबीसँ मोबाइल निकालि मोबाइलमे वरूणजीक नम्बर देखैत बजला- लिखू वरूणजी मोबाइल नम्बर।

विनीतजी अपना मोबाइलमे पी.ए. वरूणजीक मोबाइल नम्बर सेभ कऽ लेलखिन।

ऐगला दिन विनीतजी वरूणजी केँ फोन लगेलखिन जखन ओमहरसँ हेल्लोक आवाज आएल तँ विनीतजी बजला- हेल्लो पी.ए.साहैब, नमस्कार, हम विनीत बजै छी।

तैपर ओम्हरसँ आवाज आएल- नमस्कार विनीतजी। अहाँक काज भऽ गेल। मंत्रीजी भीमपुरक एस.पी. साहैबकेँ कहि देलकैन। काज भऽ जाएत। अहाँ एस.पी. साहैबसँ भेँट कऽ लेबैन।

विनीतजी भीमपुर पहुँच कऽ एस.पी. साहैबकेँ भेँट केलखिन।

एस.पी. साहैब पुछलकैन- कहिये क्या काम है?

विनीत जी कहलकैन- सर रातिमे मंत्रीजी फोन केने छला।

तैपर एस.पी.साहैब बजला- अच्छा। अच्छा। आप ही विनीत ठेकेदार हैं। गृहमंत्री जी का फोन आया था। आप रामपुर थाना के थाना अध्यक्ष से मिल लीजिये। हम थाना अध्यक्ष को कह दिये हैं। आपका काम हो जाएगा।

विनीत जी जखन रामपुर थानाक बड़ाबाबूसँ भेँट केलखिन तँ बड़ाबाबू कहलकैन- एस.पी. साहैब आपके बारे में कहे है। शायद गृह मंत्रीजी एस.पी. साहैब को फोन किये थे। जाइये पाँच लाख रूपये का प्रबन्ध कर कल बारह बजे दिन तक आइये। देर करने पर मुझे प्राथमिकी दर्ज करना पड़ेगा। प्राथमिकी दर्ज हो गया तो मुश्किल में पड़ जाइयेगा। थाना अध्यक्षक बात सुनि विनीत जी अवाक भऽ गेला। विनीत जीकेँ अवाक देखि बड़ाबाबू बजला- पहले जो तीन लाख रूपया मांगे थे उसमें थानाक हिंस्सा और एस.पी. साहैब, डी.आई.जी साहैब का हिस्सा था। अब बात मंत्रीजी तक पहुँच चुका है तो उसको भी हिस्सा चाहिए न।

विनीतजी सोचए लगला- कोन दुर्मतिया चढ़ल जे गृहमंत्री सँ पैरबी करेलौं। ऐसँ नीक तँ बड़ाबाबूकेँ तीन लाख टका दऽ काज कराए लइतौं। 

 

 

लहुक रंग 

 

रमणजी आ सुमनजी दुनू गोटा संगे खड़गपुर आई.आई.टी.मे पढ़ैत। रमणजी महादलित परिवारक जखन कि सुमनजी सवर्ण छैथ। रमणजी महादलित परिवारसँ छैथ तँ ई नहि बुझब जे ओ आरक्षण कोटासँ आई;आई.टी. कऽ रहला अछि। नहि, ओ सामान्य कोटासँ छैथ।

रमणजी आ सुमनजीमे बड़ प्रेम छइ। दुनू गोटामे दोस्ती भऽ गेल छै। सुमनजी आधुनिक विचारक युवक। हुनकर सोच छैन जे दुनियाँक सभ मनुक्ख, मनुक्ख छी, जाति-पाति ते लोक अपना स्वार्थक लेल बनौने अछि। हुनका लेल महादलित आ सवर्णमे कोनो अन्तर नहि। तँए ओ आ रमणजी एक्के कोठरीमे रहि अध्ययन कऽ रहला हेन।

रमणजी आ सुमनजीक घरो एक गाममे छैन। दुनू गोटा पहलासँ मैट्रिक धरि संगे पढ़ला। मैट्रिक पास केलाक पछाइत सुमनजी आगाँक पढ़ाइक लेल पटना चलि गेला किएक तँ ओ धनीक बापक बेटा छैथ। रमणजी मैट्रिक केलाक बाद निर्मली कौलेजमे नाओं लिखौलैन किएक तँ ओ एकटा खानगी मास्टरक बेटा छैथ। हिनकर दादाजी सुमनजीक पिताजीक ओइठाम कहियो हरवाही करै छला। जखन सुमनजी आ रमणजी हाइस्कूलमे पढ़ै छला तँ कोनो साल वार्षिक परीक्षामे रमणजी प्रथम स्थान आनै छला तँ कोनो साल सुमनजी। ओना, मैट्रिकक बोर्ड परीक्षामे रमणजी अस्सी प्रतिशत अंक प्राप्त केलैन तँ सुमनजी उन्नासी दशमलव पाँच प्रतिशत। खाएर जे से…।

सुमनजी केँ हाइये स्कूलसँ रमणजीसँ दोस्ती भऽ गेलैन जे बात सुमनजीक परिवारक लोककेँ पसिन नहि छेलैन। सुमनजीक दादाजी एकटा छोट-छीन जमीन्दार छला। अखनो पचास-पचपन बिघा जोतसीम जमीन हेतैन। सुमनजीक दादा रामशंकर ठाकुर रूढिवादी विचारक लोक। सवर्णक अलाबे दोसर जातिक ओइठाम बैसबो केनाइ अपन धर्मक विपरीत बुझैत। जहाँ धरि दलित-महादलितक बात छै, तँ रामशंकर ठाकुर दलितक छाहोँसँ दूर रहैत। बापेकेँ लीकपर बेटा यानी सुमनजीक पिताजी देवसुन्दर ठाकुर चलैत। ओहो रूढ़िवादी विचारक लोक। जाति-पातिमे खूब विश्वास रखने। गैर सवर्णक ऐठाम पानो-सुपारी खेबासँ परहेज करैथ। मुदा सुमनजी अपन बाप-दादाक रूढ़िवादी विचारसँ अलग विचार रखैत। सुमनजीक कहब जे आदमी अपना कर्मसँ छोट आ पैघ होइ छैथ नहि कि जातिमे जन्म लेलासँ। आइ रमणजी अस्सी प्रतिशत अंक मैट्रिक परीक्षामे अनलक जखन कि हमरा हुनकासँ दशलव पाँच प्रतिशत कम अंक आएल तँए ऐ मामलामे ओ हमरासँ पैघ भेला।

एक्के सत्रमे दुनू गोटा आई.एस-सी. परीक्षा देलैन। आई.एस-सी.क परीक्षामे रमणजीकेँ 82 प्रतिशत आ सुमनजीकेँ अस्सी प्रतिशत अंक प्राप्त भेलैन। दुनू गोटा आई.आई.टी.मे नामांकणक लेल प्रतियोगिता परीक्षमे बैसला, दुनू गोटा सफल भेला। सुमनजी आ रमणजीकेँ एक्के रैंक भेटलैन। दुनू गोटाक जहिना रेंक एक तहिना ट्रेड सेहो एक्के माने कम्प्यूटर इंजीनियरिंगक।

खड़गपुर आई.आई.टी. संस्थानमे दुनू गोटाकेँ तीन बरख समय बीत गेलैन। काल्हिसँ होलीक छुट्टीमे संस्थान बन्द हएत। रमणजीक विचार रहैन जे होलीक छुट्टी हुअए वा कि गरमी छुट्टी, गाम नहि जाएब। खड़गपुरमे रहि अपन अध्ययनमे लागल रहब। सुमनोजीक सएह विचार रहैन।

राति आठ बजे रमणजीक मोबाइलक घन्टी बजलै, नम्बर देखलैन तँ नम्बर हुनक पिताजी मोतीरामक रहैन। फोन रिसिव करैत बजला-

“हँ बाबूजी, गोड़ लगै छी, नीक्के-ना छी किने।”

ओम्हरसँ आवाज आएल-

“नीक्के रहह। हँ हम सभ नीक्के छी तों अपन कहह, नीके ना छह किने।”

तैपर रमणजी बजला-

“हँ, अपने सबहक कृपासँ हमहूँ ठीक छी।”

ओम्हरसँ आवाज एलै-

“जीतनीक बिआह ठीक भऽ गेल हेन। 5 मार्च के बिआह छी। तों एक मार्च धरि गाम चलि आबह।”

रमणजी बजला-

“ठीक छै बाबूजी, हम एक मार्च धरि झिटकी पहुँच जाएब। बुच्चीकेँ कोन गाम कथा ठीक केलौं हेन आ बर की करै छैथ?”

ओम्हरसँ आवाज एलै-

“बुच्चीक कथा बरुआर गाम ठीक भेल हेन। जहाँ धरि बरक बात अछि तँ बर निर्मली कौलेजमे बी.ए.मे मैथिली आनर्समे पढ़ै छैथ। अच्छा तों समयसँ अबिहह। आब फोन रखै छिअह।”

फोन कटि गेल।

फोन कटला बाद रमणजी सुमनजीसँ कहलखिन-

“मीत हमरा गाम जाए पड़तै। पाँच मार्च-केँ बहिनक बिआह छिऐ। अहाँ की करब।”

तैपर सुमनजी बजला-

“ऐं रौ रमणा, तोरा बहिनक बिआह छिऔ। तों एक्कोबेर अपना बहिनक बिआहमे जाइले हमरा कहलेँ। की तोहर बहिन हमर बहिन नहि छी।”

रमणजी बजला- “नहि भाय से बात नहि अछि। अहाँक पिताजी आ दादाजी कहियो हमरा दुरा-दरबज्जापर बैसबो नहि करै छैथ, तइ परिस्थितिमे हमरा बहिनक बिआहमे अहाँक हमरा ओइठाम रहब माने वरियातीक स्वागत करब वा आने कोनो काज करब, ओ सभ केना बरदास करथिन। तँए हम अहाँकेँ नहि कहलौं। तइले माफ करब।”

सुमनजी बजला-

“पिताजी आ दादाजीक बात छोड़। हमर तोरा प्रति आ तोरा परिवारक प्रति की बेवहार अछि। चल छोड़ ऐ बातकेँ। चल हमहूँ चलब, तोरा बहिनक बिआहमे।”

एक मार्च-केँ दुनू गोटा गाम पहुँचला। गाम पहुँच रमणजी बहिनक बिआहक ओरियान-पातीमे लागि गेला।

आइ 5 मार्च छी। आइये रमणजीक बहिनक बिआह छी। सुमनजी आठे बजे भोरसँ रमणजीक ऐठाम बर-बरियातीक लेल बेवस्था देखि रहल छैथ। जेतए केतौ कोनो त्रुटि बुझाइ छैन ते रमणजीकेँ बजा तैपर धियान दियाबै छथिन।

करीब आठ बजे रातिमे बरियाती पहुँचला। सभ बरियातीकेँ चाह-जलखै करौल गेल। सुमनोजी नास्ता खा चाह पीलैथ। फेर बरमाला भेल आ बरमालाक पछाइत जखन आशीर्वादी हुअ लगल तँ सुमनोजी पाँच साए पाँच टका दुल्हा-दुल्हीनकेँ आशीर्वादी देलकैन। तेकर पछाइत बरियातीक भोजन करौल गेल। बरियातीक भोजनक बाद सुमनजी सेहो भोजन केलैन।

भोरमे समुच्चा सवर्ण टोलीमे एक्केटा बातक चर्चा रहए, सुमनजी महादलित ओइठाम खेनाइ खेलक। सुमनजीक पिताजीक आ दादाजीक तामस सातम आसमानपर।

सुमनजीक पिताजी देवसुन्दर ठाकुर सुमनजीसँ पुछलखिन-

“ठीके रातिमे तों मोतीया चमरा ओइठाम खेनाइ खेलह हेँ?”

तैपर सुमनजी बजला-

“बाबूजी एना नइ बाजू। मोतीराम कहियौ। मोती चमरा बजलौं ई ठीक नहि भेल। ओहो मनुक्खे छैथ।”

देवसुन्दर ठाकुर बजला-

“साठि बरख हमर उमेर भऽ गेल हेन। आ नब्बे बर्खक बाबूजी छैथ। आइ धरि हम आ तोहर दादा गैर सवर्णक छुबल तमाकुलो नइ खेने हएब आ तों चमारक ओइठाम जा कऽ खेनाइ खेलह हेन। दू अक्षर पढ़ि लेलह तँ महात्मा गाँधी भऽ गेलह, सएह ने।”

सुमनजी बजला-

“बाबूजी, सभ मनुक्ख भगवानेक बनौल छी। सबहक शरीरमे लाले रंगक लेहू दौड़ैत अछि। ई कहू जे अपना सभ सवर्ण छी तँ अपना सबहक शरीरमे लाल रंगक शोणित अछि आ गैर सवर्णक शरीरमे कारी वा कोनो दोसर रंगक शोणित अछि। नहि, सबहक शरीरमे एक्के रंगक शेणित अछि। तँए सभ एक्के जाति भेल। मनुक्ख जाति। दोसर गप जे मौती चाचाक बेटा अहाँक बेटाक संग आई.आई.टी. कऽ रहल हेन। ओहो आरक्षणसँ नहि, समान्य कोटासँ। ऐ गामक कोनो सवर्णक बेटासँ बेसी संस्कारी अछि। सभ दिन पाँच बजे भोरमे उठि नितक्रियासँ निवृत भऽ असनान कऽ पूजा-पाठ करैए। ओकरामे सभ संस्कार सवर्णवला अछि।”

बेटाक बात सुनि देवसुन्दर ठाकुर चुप्पे रहला। ओ अन्न-पानि छोड़ि देलखिन। हुनका ऐ बातक बड़ दुख भेलैन जे हमर बेटा एकटा महादलितक बेटीक बिआहमे भाग लेलक। भागे टा नहि लेलक, महादलित ओइठाम खेनाइयो खेलक। चौक-चौराहापर ऐ बातक खूब चर्च होइ जे मालिक बाबाक पोता महादलितक बेटीक बिआहमे खेनाइ खेलक। जखन कि मालिक बाबा कहियो दलित आ महादलितक छाँहोमे नहि चलल छला।

रामसुन्दर ठाकुरकेँ गामक लोक मालिक बाबा कहै छैन। किछु लोक बजैथ सभ मनुक्ख तँ मनुक्खे छी। तखन सुमनजी मोतीरामक बेटीक बिआहमे खेनाइये खा लेलक ते कोन जुलुम केलक। किछु रूढ़िवादी सोचक लोक बजैथ-

“सुमनजी बाप-दादाक प्रतिष्ठा पानिमे फेकि देलक।”

किछु लोक बजैथ-

“कहू, एहनो होइ जेकर बाप-दादा गैर सवर्णक तमाकुलो नहि खेने छला तिनकर बेटा-पोता महादलितक बेटीक बिआहमे खेनाइ खेलक।”

देवसुन्दर ठाकुर सुमनजीक माम, जे प्रोफेसर छैथ, अपन जमाय जे बिहार सरकारमे इंजीनियरक नौकरी करै छैथ आ अपन बहनोइ नूनू बाबूकेँ बजौलैन। नूनू बाबू उच्च विद्यालयक प्रधानाध्यापक छथिन।

चारू गोटा माने सुमनजीक माम, बहनोइ, पीसा आ पिताजी- देवसुन्दर ठाकुरजी बैसला। सुमनजीकेँ बुलाहट भेलैन। सुमनजी पहुँचला। सुमनजीक माम पुछलकैन-

“सुमनजी, ठीके अहाँ मोतीरामक बेटीक बिआहमे खेनाइ खेलौं?”

सुमनजी बजला-

“हँ, मामाजी। हम रमणजीक बहिनक बिआहमे चाह-नास्ताक संग खेनाइयो खेलौं।”

तैपर सुमनजीक पीसा, नूनूबाबू बजला-

“ई काज अहाँ नीक नहि केलौं। लोक पढ़ि-लिखिकऽ खनदानक नाओ ऊँच्च करैए आ अहाँ तँ अपन खनदानक नाके कटा देलिऐ।”

सुमनजीक बहनोइ बजला-

“हम बिहार सरकारक सड़क विभागमे इंजीनियर छी। हमर कार्यपालक अभियन्ता दलित छैथ। कएक दिन हुनका डेरापर जाए पड़ैए। ओ चाहक आग्रहो करै छैथ मुदा हम ई कहि कऽ निकैल जाइ छी जे चाह पीबै छी तँ गैस बनि जाइए। तँए, चाह नहि पीब। जखन कि अपना डेरापर भरि दिनमे छह-सात बेर चाह पीबै छी।”

देवसुन्दर ठाकुर बजला-

“अपना सभ बुरबक छी जे दलित-महादलितक ओइठाम चाहो नहि पीबै छी आ ई दू अक्षर पढ़ि लेलक तँ गाँधी बाबा बनि गेल।”

सुमनजीकेँ छगुन्ता लगैत रहै जे ई सभ एतेक पढ़ल-लिखल छैथ, बेवहारिक जीवनमे छैथ तैयो रूढ़िवादी सोचसँ ग्रसित छैथ। एकटा प्रोफेसर, दोसर उच्च विद्यालयक प्रधनाध्यापक आ तेसर इंजीनियर।

सुमनजी बजला-

“यौ मामाजी, यौ पीसाजी आ यो पाहुनजी, की सवर्णक शोणित आ महादलितक शोणित दू रंगक होइ छै। की सवर्णक शोणित लाल आ महादलितक शोणित कारी वा कोनो दोसर रंगक होइ छै? सभ ते एक्के भगवानक गढ़ल मनुक्ख छी। तखन जाति-पाति की? आ जाति-जातिमे भेद की? सभ मनुक्ख मात्र छी। ई तँ किछु लोक अपन स्वार्थ पूरा कएैले जाति-पातिमे समाजकेँ बाँटलक।”

सुमनजीक तर्क सुनि मामा बजला-

“हौ, सभ तँ मनुक्खे छी, मुदा सभ जातिक अपन संस्कार होइ छै।”

मामाक बात सुनि सुमनजी बजला-

“यौ मामाजी, हमरे गाममे बहुत एहेन सवर्णक परिवार अछि जइमे शौचालय नहि छै। जखन कि मोतीरामक परिवारमे एकटा शौचालय भीतरमे आ दोसर शौचालय दरबज्जापर छै। दोसर बात कैकटा सवर्णक बेटीकेँ के कहए जे बेटो कौलेज नहि देखलक हेन, जखनकि मोतीरामक एकटा बेटी मैथिलीसँ एम.ए.क पीएच.डी. कऽ रहल अछि। अपने शिक्षक छैथ। बेटा हमरे संगे आइ.आइ.टी.मे चारिम वर्षमे पढ़ि रहल अछि।”

पीसा नूनू बाबू बजला- “हउ, महादलितकेँ आरक्षण छै, आरक्षणे कोटासँ आई.आई.टी.मे गेल हएत।”

तैपर सुमनजी बाजल-

“नहि यौ पीसाजी, मोतीरामक बेटा रमण समान्य कोटासँ आई.आई.टी.मे गेल अछि। प्रतियोगिता परीक्षामे हमर रैंक आ रमणजीक रैंक एक्के छेलए। दोसर बात मोतीरामक घर-परिवारक जे सफाइ देखबै तँ छगुन्ता लागत। बहुत सवर्ण परिवारक घर-आँगन ओहन साफ-सुथड़ा नहि देखबै। तेसर बात, मोतीरामक पूरा परिवार वैष्णव अछि। जँ ओइ परिवारक बेटीक बिआहमे खेनाइ खेलौं तँ कोन पाप केलौं जे हमरा अहाँ सभ कटघरामे ठाढ़ केने छी।”

सुमनजीक दर्शनक आगाँ किनको किछु नइ फुरलैन। सभकियो चुप्प रहि एक-दोसर दिस ताकए लगला। 

 – नंद विलास राय

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