माझी का प्यार हिंदी कविता – अर्पित पांडेय, अयोध्या

मैं कोई बाट का माझी,

तू मुझसे टकराने वाली गंगा रे।

 

है मन बहुत व्यथित मेरा जो,

पटवारो से आघात किया।

तू हूक भरी मैं बढ़ चला,

तू पीछे हटना स्वीकार किया।

 

मैं कोई बाट का माझी,

तू मुझसे टकराने वाली गंगा रे।

 

छनी चंद की चांदनी लपेटे,

अब्र पहन, तारो से श्रृंगार किया।

तू आह भरी मैं मचल पड़ा,

तेरा आलिंगन स्वीकार किया।

 

मैं कोई बाट का माझी,

तू मुझसे टकराने वाली गंगा रे।

 

उठी हवा के झंझालो ने,

तेरे दिल को व्यभिचार किया।

उफने जल से तूने छूना मुझे चाहा,

बाट छोड़ मैं तुझमें डूबना स्वीकार किया।

– अर्पित पाण्डेय ( अयोध्या )

 

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