लेखक परिचय
नाम: रामेश्वर प्रसाद मण्डल
जन्म तिथि: 12- 07-1956
पत्नी: श्रीमती पद्मावती देवी
माता-पिता: स्व. राजो देवी, स्व . सुन्दरलाल मण्डल
दादा-दादी: स्व भरोसी मण्डल, स्व फूलमतिया देवी
शैक्षणिक योग्यता: एम.ए. द्वय (अंग्रेजी, दर्शनशास्त्र), ट्रेण्ड, शिक्षक शिक्षण महाविद्यालय नरार, मधुबनी।
संतति: 1. ई. परम आनन्द कुमार, 2. हरिओम कुमार, 3. दुर्गेश नन्दनी
जीविकोपार्जन एवम् रुचि: शिक्षण (अध्यापन) पूर्व विभागाध्यक्ष: दर्शनशास्त्र, के एन एस जे कॉलेज सरौती, घोघरडीहा। पूर्व प्रधानाध्यापक: उत्क्रमित हाई स्कूल बसुअरा।निदेशक- पद्मावती आर. पी. शैक्षणिक संस्थान निर्मली।प्रमुख संचालक: प्रगतिशील बौद्धिक समाज निर्मली।सदस्य: प्रलेस, मधुबनी। विशेष रुचि: लेखन, कविता, गीत एवम् समाज सेवा।
मौलिक कृति: 1. झून-झून बेटी, 2. चकबिदोर, 3. सात वचन- (कथा संग्रह), 4. अछूत बेटी, 5. गरीब पुतोहु, 6. सत्कार, 07. संकल्प, 08. खजाना- (नाटक), 09. जयमाला मंच, 10. मुशहरनियाक अतीत, 11. मुंशी सुन्दर लाल मण्डल, 12. ठूठ बरगद- (संस्मरण), 13. रोशनी, 14. बौकी (उपन्यास) आ 15. बगवार (पद्य उपन्यास) प्रकाशित एवम 16. चीख (नाटक) प्रगति पर।
अनूदित कृति: 17. पंगु (उपन्यास), 18. जगदीश प्रसाद मण्डल- एक जीवनी (जीवनी) मैथिलीसँ हिन्दीमे।
स्थायी पता: गाम- मुशहरनिया, पोस्ट- रतनसारा, भाया- नरहिया, पंचायत- रामनगर, फुलपरास, जिला- मधुबनी।पिन नं.:- 847108
ई पत्र: rameshwarprasadmandal723262@gmail.com
रचना
दू टा कथा (कहानी)
अनमोल सहानुभूति
एकटा गरीब परिवार रहइ। जइमे माए-बाबूक संग ओकर बेटी सेहो छल। माए-बाबू कहुना-कहुनाकऽ बेटीकेँ पढ़बैत रहैथ। किएक तँ गरीब जन-मजदूर रहने मजदूरी करिकऽ गुजर-बसर करैत रहैथ। बेटीक नाम रुणा छेलइ। रुणा बी.ए.मे पढ़ै छेलइ। कोरोना बीमारी यानी कोविद-19 सभ जगह पसरल रहइ। कोरोनामे बाबू मरि गेलैन। पछाइत माए लोकक घर जाए चौका-वर्तन करि कऽ बेटीकेँ बी.ए. करौलैन, मुदा ओहो बीमार रहए लगली। रुणाकेँ नोकरीक सिवा आर कोनो चारा नइ रहलै। रुणा कोनो हवेलीमे गेल। हवेलीक मालिकिन अबैक कारण पुछलखिन तँ रुणा बजल- “हम हवेलीमे काज करए चाहै छी, गरीब छी, मुदा पढ़ल-लिखल छी। हम घरक पोछा मारि साफ-सफाइ आ भानसा घरक सभ काज कए सकै छी। भरि दिन काज केलाक बाद साँझमे हम अपना घर चलि जाएब। धिया-पुताक देख-रेख सेहो कऽ सकै छी।”
ई सुनि मालकिन बजली- “हमरा तँ धिया-पुता नइ भेल अछि परंच तैयो एगो कामवालीक खगता अछि। बड़ बढ़ियाँ, रहि जो।”
रुणा रहि गेल।
एक दिन रुणाक माए अचानक बड़ बेमार पड़ि गेली तँए हुनका एगो हॉस्पिटलमे भर्ती करौल गेल। डॉक्टर बेसी खर्चा बतौलैन तँए रुणा पैसाक खगतामे अप्पन मालिक लग आएल आ मालिकसँ पैसा मंगलक। मालिक उदार नइ रहैथ, तँए अप्पन नोकरानीसँ कहलैन-
“पूरा महिना लगतौ तब्बे रुपैआ मिलतो, अखैन कोनो हालतमे रुपैआ नहि मिलतौ।”
ई सुनि रुणा बड़ आहत भेल। रुणा फेर अर्जी करैत बाजल-
“यौ मालिक, हमर माए बड़ बेमार अछि। ओकरा हॉस्पिटलमे भरती करौने छी, हमरा पाँच हजार टकाक अखन सख्त जरूरी अछि। ऐगला महिना लगलापर हम तनखाह नहि मांगब। हमरा मदैत कऽ दिअ।”
बजैत-बजैत रुणा कानए लगल।
ओइठाम मालकिन सेहो रहथिन। मालकिन सहानुभूति रखैत बजली-
“एकरा मदैतक खगता छै तँए एकबेर सोचल जाए।”
ई सुनि मालिक तमतमा उठल आ पत्नीसँ कहलक-
“यै, अहाँ की बुझब ऐ देहाती लड़की सबहक बात, अनपढ़ रहैए आ झूठ बजैमे माहिर सेहो रहिते अछि।”
रुणा तपाक-दे बाजि उठल-
“नइ यै मालकिन, हम झूठ नइ बजै छी। आ हम अनपढ़ो नहि छी। हम बी.ए. केने छी। हमर माए संजीवनी नरसिंगहोममे भर्ती अछि। मालकिन, हम गोड़ लगै छी, हमरा माइक जान बँचा लिअ।”
रुणा फेर कानए लगल।
ई करुणा-बेथा सुनि मालकिन तँ नइ मुदा मालिक गरैज उठला-
“गै, तूँ मालिकसँ एना बजबै, तमीजसँ बाज। बी.ए. केने छँह तँ बड़ पढ़ि लेलँह।”
रुणा बाजल-
“मालिक हम एक्को मिसिया झूठ नइ बजलौं अछि। हमरा माएकेँ बँचा लिअ।”
आँखिसँ खसल नोरकेँ रुणा पोछए लगैत अछि। मुदा कोनो असर कठोर दिलबला मालिकपर नइ पड़ल। ओ खिसियाकऽ बजला-
“गे, तूँ एना नइ बुझमेँ। एगो कौड़ी आ छेदामो नइ मिलतौ, भाग एतएसँ।”
मुदा रुणा पुन: विनतीक स्वरमे बाजल-
“हम केतए जाएब, मालिक।”
मालिक- “झुनझुना बजा गऽ जो।”
मुदा मालिकपर कोनो फर्क नहि पड़ैत देखि रुणा ओतएसँ विदा भेल। कनैत-कनैत रोडपर आएल। संयोगसँ एक बेकती रुणाकेँ कनैत देखि लगमे आबि पुछलकै-
“अहाँ किए कनै छी? की भेल?”
ई सहानुभूति जकाँ बात सुनि रुणा बाजल-
“यौ भैया, की कहूँ। हमर माए सख्त बेमार अछि आ हॉस्पिटलमे भरती अछि। हमरा इलाज लेल पैसाक खगता अछि, तँए हम अपना मालिक लग गेल रही, मुदा मालिक मदैत नइ केलैन आ उलटे नोकरीयोसँ हटा देलैन। आब हम केना की करब।”
बाजि कऽ रुणा कानए लगैत अछि।
रुणाक करुण बेथा सुनि ओ बेकती बाजल-
“अहाँ ऐ ले किएक कानै छी। हम रुपैआ दइ छी। अहाँ अपन माइक इलाज कराबू। हमरा बुझि पड़ैए, अहाँ पढ़ल-लिखल सेहो छी।”
मुड़ी डोलबैत रुणा बाजल- “हँ भैया, हम बी.ए. केने छी।”
ओ बेकती बजला-
“हमरा अहीं जकाँ मेहनतिया लड़कीक खगता अछि जे हमर व्यवसायिक पार्टनर बनए। यदि अहाँ सहमति दी तँ अहाँसँ निमन हमर के पार्टनर हएत?”
रुणा बाजल- “हमर सहमति अछि।”
ओ बेकती बड़ खुश भेला आ बजला-
“पहिने अहाँ अप्पन माइक इलाज करबाउ। हमर सहयोग रहत, मदैत करैत रहब। पछाइत हमर पार्टनर बनू आ हमर कारोबारकेँ सम्हारू।”
सएह भेबो कएल। माइक इलाजक बाद रुणा ओइ बेकतीक कारोबारकेँ देखए लगली। देखबे टा ने केलीह, दिन-राति एककरि पसेना बहाकऽ, इमानदारीसँ केतेको बेर सर्वश्रेष्ठ ‘फिल्ड अफसर’क पुरस्कारसँ सम्मानित सेहो भेली। पछाइत फैक्ट्रीक मालिक रुणाकेँ अद्वितीय कार्य शैली देखि मैनेजर पदपर पदोन्नति सेहो कएल गेल। एना लगै जे ओइ फैक्ट्रीक सर्वेसर्वा आर सभ किछु रुणे छी। ओइ फैक्ट्रीमे सुपरवाइजरक पोस्ट खाली भेलासँ विज्ञापन भेलइ। दू दिनक इन्टरभ्यू राखल गेल रहइ। प्रथम दिनक इन्टरभ्यूक दोसर दिन एक बेकती इन्टरभ्यू दइले आएल जे पुरान आ मैल कपड़ामे रहए। वेटिंग रूममे ओ बेकती बैसल रहए। फैक्ट्रीक मैनेजर रुणा वेटिंग रूममे एली, किएक तँ वेटिंग रूमसँ इन्टरभ्यू रूममे प्रवेशक बेवस्था रहइ। रुणाकेँ देखिते ओ बेकती बाजि उठल-
“तुम तो मेरी नोकरानी हो, मेरे यहाँ नोकरी कर रही थी, इन्टरभ्यू देने कैसे आ गई हो? तुम्हारे लाइक यह नहीं है, समझी, क्या समझी?”
ओइ बेकतीक बातपर बगैर किछु धियान देने रुणा इन्टरभ्यू रूममे चलि गेली। कॉलवेल भेल आ संयोगसँ ओही बेकतीकेँ पहिने बजौल गेल। ओ साक्षात्कार कक्षक भीतर गेल आ अप्पन कागजात, यानी सर्टिफिकेट देखबए लगल, मुदा सोझहामे चेयरमैनक कुर्सीपर बैसल रुणाकेँ देखि अचरजमे पड़ि गेल आ पद-प्राप्तिक आशा छोड़ि देलक। रुणासँ माफी मांगए लगल। रुणा बजली-
“जइ बेकतीमे ने दया आ ने सहानुभूति हुअए, से केना सुपरवाइजर बनता? जेकर विचार छोट रहत आ दूर दृष्टिक अभाव रहत ओ केना फैक्ट्रीक विकास करा सकत? तँए अहाँकेँ हम सोझहेमे छाँटि रहल छी।”
ई सुनिते ओ बेकती तिलमिला गेल, ओकर आँखि नोरा गेल आ करुण निवेदन करैत बाजल-
“हमरा माफ कऽ दिअ। हमरासँ बड़ पैघ गलती भेल। आब हम गलती नै करब।”
रुणा सोचिकऽ बजली- “अहाँकेँ केहेन खगता अछि? अहाँ तँ मालिक छी, रुपैआक कोनो कमी नइ अछि आ सुन्दर मकानो तँ अछिए।”
ई सुनि ओ बेकती बाजल- “सभ किछु चौपट्ट भऽ गेल, नोकरी छूटि गेल, मकान गिरवी लगा कर्जा सठेलौं, पत्नी सेहो छोड़िकऽ भागि गेली। पुरना आ मैल कपड़ाकेँ देखि हमर दुदर्शाकेँ अहाँ बुझि सकै छी। हम रोडपर आबि गेल छी।”
ओइ बेकतीक बेथा-कथा सुनि रुणा बजली-
“अहाँ तँ हमरा कहने रही रूणा छी तँ झुनझुना बजाबू, हम तँ झुनझुना बजबैत रहै छी। जाउ अहाँ ढोल बजाउ। ऐठाम कोनो गुंजाइश नइए।…।”
रुणा आगू नहि बाजि चुप रहि गेल। तैबीच ओ बेकती पुन: अनुनय केलक- “जँ ई नोकरी हमरा नै भेटत तँ हमर लहास अहाँ रोडपर देखब।”
रुणाक मनमे उठल, ई तँ हमरा प्रति मिसियो भरि सहानुभूति नहि राखि सकल छल मुदा हमहूँ जँ एकरे जकाँ भऽ जाइ ई तँ उचित नहियेँ हएत। रुणा बाजल-
“ठीक छै, अखन अहाँ जाउ। काल्हिखन दसबजे मे चलि आएब।”
रुणाक स्वरमे सहानुभूति देखि ओइ बेकतीकेँ विश्वास भऽ गेल जे हमरा काज भेटबे करत। मुस्कियाइत ओ बेकती ओइठामसँ विदा भऽ गेल आ समयपर आबि काज पकैड़ लेलक।
देखिते रहि गेल
राज पकड़ियासँ दच्छिन नवपुरमे तीनटा मरर रहैत छलाह। मरर एहि लेल कहबै छला जे गामक काज वा व्यवस्था हुनके सभपर, निर्भर करै छेलइ। नवपुर मरर-व्यवस्थाकेँ कारणसँ तीन हिसामे बँटल छेलइ। उतरबरिया टोल, बीचला टोल आ दच्छिनबरिया टोल। तीन टोलमे तीनू मरर अपना-अपना ढंगसँ राजनिति करै छलाह। अइमे दच्छिनबरिया टोलक मरर किसन मरर छलाह, जे बड़ सीधा, सरल, व्यवहारिक आ ईमानदार स्वभावक छलाह। ई सदैत गरीब, अनाथ, लाचार आ दुखियारी सभकेँ मदैत करैत छलाह। मानव-सेवा लोकक भलाइ आ समाज कल्याण हुनकर पुजी रहैन, तँइ हिनका दरबज्जापर लोकक सदैत भीड़ लागल रहैत छेलइ। दोसर दिस उतरबरिया टोलक आ बीचला टोलक मरर बड़ कठोर आ टेंढ़, एक नम्बरक बेइमान, छुतहर आ लोभी स्वार्थी सेहो रहैथ। गरीब आ लाचारक खस्सी मारिकऽ खा लेनाइ, चोरा लेनाइ आ उल्टे चारिटा बात कहनाइ तइ संग गरीब दुखियारी सभकेँ सतेनाइ, अपन पुजी बुझैत छलाह। हँसेरा-हँसेरीमे सेहो जाइ छलाह आ बकरी छागर जकाँ लोककेँ काटैत छलाह ने दया रहैन आ ने धर्म। एहि कारण उतरबरिया टोलक आ बीचला टोलक दुनू मररोमे हमेशा मतभेद आ मन भेद रहैत छेलइ।
एक बेर दलित टोलक एगो सियान लड़की अनजानेमे बीचला टोलक मररक कुसियारक खेतमे जा कऽ कुसियार खाइक नीयतसँ एकटा छड़िया तोड़ि लेलक आ खाएब शुरू कऽ देलक, तखन खेतमे कियो नइ रहइ। ओकर गरीब आ भुखल पेट रहै, तँए कुसियार चिवाबैत रहए, नाम तँ फूल रहै मुदा गरीबीक कारणसँ फूल मुरझाएल रहइ। जखन ओ लड़की खेतसँ बाहर आएल तखनिये खेतक मरर सेहो केतौसँ आबि गेला आ ओइ लड़कीकेँ पकैड़ बजला-
“चोरनी तूँ हमर कुसियार किए तोड़लेँ, फूल छँह तँ धुल बना देबौ।”
ई कहि लड़कीकेँ पोनपर एक बेंत खींच देलकै। लड़की हाथ जोड़िकऽ विनती केलक- ‘यौ मालिक, हमरा छोड़ि दिअ, हम चोरनी नइ छी। खाइक लेल एकटा छड़िया मात्र तोड़लौं हेन। दाम दऽ दइ छी।’
मुदा मरर ओकर विनती की सुनता, नियत तँ खराव रहैन, फूलकेँ मसलैक रहैन, तँए कोनो विनती नइ सुनलैथ आ लड़कीकेँ पकैड़ कऽ नेने जा कऽ सात दिन धरि अपन घरमे बान्हिकऽ राखि लेलखिन। एहि कारणसँ ओइ दुनू मररक दरबज्जापर लोक नइ जाइत रहैन। किएक तँ दुनूटा चोर-चोर मौसेरा भाइ रहैथ। ओकरा लोकसभ अंगरेजक पीठू बुझैत अछि। ऐ तरहेँ उतरबरिया टोलक मरर बेसी निर्लज्ज छैथ। बीचबला मरर अधिक भोग-विलासी छैथ आ अप्पन जन-मजदूरक बेटी-पुतोहुपर आँखि गड़ौने रहै छैथ।
दच्छिनबरिया टोलक मरर किसन मरर छैथ, जे धानुक जातिक छैथ। हिनकासँ ओ दुनू मरर घृणा आ डाह करैत रहै छैथ, किएक तँ स्वच्छ छवि बला किसन मररक लोकप्रियता, ओकरा सबहक आँखिक किरकिड़ी बनल रहैत छल। दुनूटा सँ भिन्न किसन मररक सोच आ व्यवहार रहइ।
बीचबला मररकेँ एगो जन-मजदूर आ हरवाहा रहै। जेकर नाओं भुल्ला खवास रहइ। ओकरा एगो सियान बेटी रहै बेटी बड़ सुन्नर- नमगर, पोरगर फूल जकाँ फुलाएल आ नामो संयोगसँ जुही रहइ। भुल्ला खवास एक दिन अपन मालिकसँ कहलक, मालिक हमर बेटी आब जुआन भऽ गेल अछि, हम ओकर बिआह ऐबेर कऽ लेब, कनी खरचा-बरचा सम्हारि दिअ आ बिआहमे मदैत कऽ दिअ। मरर बजला-
“की कहलह, बेटी तोहर जुआन भऽ गेलह, कनी हमरो लाबिकऽ देखा दे, तूँ की बुझबें बिआहक उमेर।”
अप्पन मालिकक खोंट नियतकेँ भुल्ला खवास बुझबे नइ केलक जे कि ओकर धियान बेटीक उमेर दिस कम आ देह दिस बेसी अछि। भुल्ला कहलक- “बेस मालिक, हम बेटीकेँ नेने आबै छी।”
भुल्ला खबास घर गेल आ अपन बेटीकेँ नेने आएल। ओकर बेटी रहै गोर अदक्का, तैपर सँ गोल-कपाल चेहरा, मृगनयनी आ उच्चगर छाती धारी। मरर तँ ओकरा एकटके देखिते रहि गेला। धियान तखन हटलैन, जखन भुल्ला खसास बाजल- “यौ मालिक, हमर बेटी बिआह जोग भेल अछि कि नहि।”
मरर अपन कमजोरीकेँ छिपाबैत ओइ लड़कीसँ कहलक-
“बुची, तूँ अँगना चलि जो देख लेलियौ तोरा।”
लड़की चलि गेल। मरर भुल्लासँ कहलक- “रौ भुल्ला, तूँ ठीके कहलेँ बेटी तँ बिआह जोग भऽ गेलौ। बेटीक संस्कार देनाइ जरूरी छउ, हमरा ऐठाम एक सप्ताह राखि देही। हमर पत्नी आ पुतोहु ओकरा संस्कार सिखा देतइ।”
भुल्ला खवास बाजल- “बड़बढ़ियाँ बात मालिक, अहाँ तँ हमर भगवाने छी।”
भुल्ला खवास घर जा कऽ ई बात बेटीसँ कहलक मुदा जुही मालिकक खोंट नियत बुझि गेल छल तँए ओ नइ गेल।
किछु दिनक पछाइत कथा सेट भऽ गेलै आ बिआहोक दिन तँइ भऽ गेलइ। भुल्ला खवास अपन मालिक लग आएल आ मदैत मांगलक। मालिक ओकरा मदैतिक आश्वासन देलकै। भुल्ला बड़ खुश भेल। जखन समय लगिचा गेल तँ फेर मालिक लग गेल, मुदा मालिक चाउर नइ देलक। किछु पैसा देलक आ धान देलक जे बिआहक खरचा लेल ऊँटक मुँहमे जिरक फोरन सन छल। भुल्ला खवास मालिक लग गिरगिराएल- “यौ मालिक, ऐसँ की हेतै, मदैत कऽ दिअ ने।”
मुदा मालिक कोनो जवाब नइ देलखिन। भुल्ला मुँह सुखु भऽ कऽ ओइठामसँ रस्ते-रस्ते आ रसे-रसे आबैत रहए। रस्तामे किसन मरर भेट गेलखिन।
किसन मरर भुल्ला खवासकेँ उदास देखि बजला- “भुल्ला की भेल, खिन्न किएक छी।”
भुल्ला खवास ई सुनिकऽ कानए लागल। हम सभ ई जनैत छी जे कि जखन कियो केकरो प्रति बोल-भरोस आ सहानुभूतिक बात करैत अछि तँ ओकर दिल आरो द्रवित भऽ जाइत अछि जइ कारणेँ ओकरा आँखिसँ नोर डबडबा जाइते छइ।
किसन मरर बजला- “भुल्ला तूँ किए कानै छँह। तोरा की भेलौ, चुप भऽ जो।”
कानिते बाजल- “यौ मालिक, की कहब, हमर बेटीक बिआह छी आ हमर मालिक मदैद नइ करैए, आब दिनो नइ बँचल अछि, मालिक आब हमर प्रतिष्ठा केना बँचत?”
भुल्ला जोरसँ कानए लगल।
गरीबक मसीहा किसन मरर भुल्लाकेँ कनैत देखि बजला- “तोरा हम सभ किछुसँ मदैत करबौ, चुप भऽ जो। बेटी गामक होइत अछि, समाजक होइत अछि। तँए ने फल्लाँ गामवाली कहै छै। तोहर बेटी हमरो बेटी भेल। जइ चीज-वौसक खगता छौ, हमरा ओइठामसँ तोरा भेटि जेतौ। ऐ ले अनेरे कानै किए छँह।”
ई आश्वासनक बात सुनि भुल्ला खवास किसन मरर दिस तेना ताकए लगल जेना एकटा भक्त भगवान दिस तकैत अछि। समय एलापर किसन मरर सभ किछुकेँ जुति-भाँति लगा देलकैन। ई बात बिचलाटोलक मररकेँ पता लागि गेल। शराब आ शवाबक भुखल ओइ मररकेँ एना लागल जे ओकरा मुहसँ शिकार किसना छिन लेलक। आब ओ मरर अपन हरवाहा भुल्ला खवास आ किसन मररसँ बदला लेबाक हिसाब लगबए लगल।
बिआहक राति भुल्ला खवास बीच आँगनमे तीनटा कुरसी लगेलक, जेकर ई मतलब छल जे कि गामक तीनू मररकेँ मान-सम्मान आ हुनके सबहक विचारसँ शादीक कार्यक्रम सम्पन्न हएत, जेना पहिनेसँ परम्परा चलि आबि रहल अछि।
किसन मररमे सामाजिकता आ व्यवहारिकता बेसी रहै तँए पहिने आबिकऽ बैस गेला आ जुति-भाँति लगबए लगला। पछाइत शेष दुनू मरर एला। भुल्ला खवास सभकेँ प्रणाम केलक आ गोर लागिकऽ मान-सम्मान देलक। मुदा किसन मररकेँ देखि दुनू मरर जरि-भुनि गेल, किएक तँ जेतए भुल्ला खवास आ ओकरा बेटीक सताबैक फिराकमे ओ सभ छला, तैठाम किसन मरर दिल खोलिकऽ मदैत केने छेलखिन।
बराती आबि गेल छला। दुनू मरर उठिकऽ दुल्हाक पिताकेँ लोभ देलैन जे कि अहाँ एक भरि सोना, लाल इमली चद्दैर आ दस हजार रुपैआक मांग करब जे कि भेट जाएत। आ जखन भेट जाएत तखने तिलक हुअ देबइ। सएह भेल। तिलकक समयमे दुल्हाक पिताजी बजला- “हम तिलक नइ हुअ देब। हमरा एक भरि सोना, लाल इमली चद्दैर आ दस हजार नगद चाही।”
कियो दुल्हाक बापक ऐ बातकेँ बुझलक आ नइ बुझलक, मुदा किसन मरर बुझि गेला। खूब धमरथन भेल। निष्कर्ष ई निकलल जे भुल्ला खवासकेँ सभ किछु दिअ पड़तै। आब तँ गरीब भुल्ला अपन इज्जत जाइत देखि कानए लागल। किछु फुरबे ने करइ। कानैत-कानैत अप्पन मालिककेँ कल जोड़ि कहलक-
“यौ मालिक, हमर इज्जत बँचा लिअ। यौ माए-बाप।”
मालिक बाजल- “रौ भुल्ला, पहिने कहितँह। आब किछु नइ हेतौ।”
कानैत भुल्ला बाजल- “यौ मालिक, पहिनेसँ किछोक मांग नइ रहइ। एकाएक ई सभ मांगए लगला। आब कहै छै हमसभ बराती लऽ कऽ चलि जाएब जँ ई सभ समान नइ देब तँ।”
ई सुनि किसन मरर अपसोच करैत बजला-
“एना भेलासँ सौंसे गामक बदनामी भऽ जेतइ। की यौ भलचर मरर, अहूँ सभ बाजू। ओइ मररक गरदैन गिद्ध जकाँ रहै तँए भलचर कहल जाइत छल।”
मुदा ओ दुनू मरर किछु ने बजला। अंगनामे जे भेल से भेल, मुदा भुल्ला खवास दुनू परानी छिड़पिटायकऽ कखनो ओकरा लग तँ कखनो ओकरा लग गेला। मुदा बात नइ बनल। समस्या आरो विकराल भऽ गेल। किएक तँ दुनू मरर सभकेँ चेतावनी देने रहैन। किछु काल धरि रहि कऽ दुनू मरर आगि लगाकऽ चलि गेला। खिस्सो छै, ‘ने राधाकेँ नअ मन घी हेतैन आ ने राधा नचती’।
दोसर दिस किसन मररकेँ ई गप बड़ अनरगल लगलैन। एकरा गामक प्रतिष्ठासँ बेसी अपन प्रतिष्ठा बुझि दुल्हाक पितासँ अनुरोध केलैन-
“समैध, अहाँक सभ किछु भेट जाएत। हम गछै छी। अखनी एक भरि सोना, लाल इमली चद्दैर आ पाँच हजार टका दऽ दइ छी आ शेष रुपैआ काल्हि भेट जाएत। शुभ-शुभ-क बिआहक वीध हुअ दियौ। प्रेम जोड़लौं तँ रसफट्टू नइ हेबाक चाही।”
दुल्हाक पिता बजला-
“मररजी, अहाँ कहलौं तँ ठीके, मुदा टाका हमरा भिनसरबेमे भेट जेबाक चाही।”
किसन मरर भुल्ला खवासकेँ अपना अँगना लऽ गेला आ अपना परिवारसँ मतलब पत्नीसँ एक भरि सोना, लाल इमली चद्दैर आ पाँच हजार टाका लऽ कऽ हाथमे देलखिन आ कहलखिन-
“तूँ झटपट जो आ विवाहक कार्य शुरू करबा। हमहूँ पाछूसँ अबै छियौ।”
भुल्ला खुश भऽ कऽ आ किसन मररमे पतित पावन प्रभु जकाँ गुण देखि बेर-बेर प्रणाम केलक आ लफड़ल ओइठामसँ अप्पन अँगना आएल।
ओमहर किसन मररकेँ किछु रुपैआ इंजाम करैक रहैन। पाँच हजार रुपैआ भोरे देबाक छै। मुदा कियो तेहेन बेकती हिनका नजैरपर नइ अबैत रहैन। किसन मरर गुनधुनमे पड़ि गेला। दिमाग ओझराए लगलैन। किएक तँ ओ दुनू मरर फन्ना लगा कऽ चलि गेल रहइ। जइमे फँसि किसन मरर आ भुल्ला खवास बगुला जकाँ टेंटियाइत रहए। किसन मररक लेल ई प्रतिष्ठाक सवाल रहैन। किछु नीक नहि लगैत रहैन। सोचैमे सभटा इनर्जी लगा देलैन कि एकटा जिगरी दोस्तक नाम मोन पड़लैन। अपना गामसँ पच्छिम परसामा गाममे हुनकर एकटा मित्र छथिन, ओहो किसन मरर जकाँ उपकारी लोक छैथ। किसन मरर अपन आदमीकेँ एगो चिट्ठी दऽ कऽ हुनका ऐठाम पठाबक प्रबन्ध केलैन। जइमे पाँच हजार टाका भेज दइक बात लिखलैन।
दुनू मरर ओना तँ चलि गेल रहैथ मुदा अपन जासुसकेँ छोड़ि देने छला। जासुस किसन मररक सभटा बातक पता लगाकऽ झब-दे भलचर मररकेँ सूचित कऽ देलकैन। आब ओ मरर पुन: विरनीवान भऽ गेलैथ। ओइ बेकतीकेँ, जे रुपैआ आनए परसामा गेल छल तेकरा रास्तामे घेरैक प्रवन्ध करए लगला। दसटा लठैतकेँ पठा देलखिन। किसन मरर अपन कर्तव्य बुझैत आ वचन निभावैक लेल भुल्ला खवास ओइठाम पहुँच गेल रहैथ। किसन मररक देख-रेखमे बिआहक सभ किछु नीक जकाँ होइत रहइ। ओमहर किसन मररक आदमी चिट्ठी लऽ कऽ परसामा निवासी हरिदेवक ओइठाम पहुँच गेला। परम पिता परमेश्वरक असीम कृपासँ हरिदेव अर्थात किसन मररक मित्र दरबज्जेपर भेट गेलखिन। ओ चिट्ठी पढ़िते सभ बात बुझि गेला। हुनकर मनक मानवता जोर मरए लगलैन। तुरन्त रुपैआ संगमे लऽ तैयार भेला। तखन घड़ीमे साढ़े एगारह बजैत रहइ। हरिदेव अपन मित्रक आदमीसँ दू-टप्पी बात केलैन। प्रथम ई जे अतेक रातिमे असगरे नइ जाउ, दोसर सोझ रस्तासँ नइ जाउ। किएक तँ दुश्मनसँ सतर्क भऽ कऽ चलए पड़त। तँए बजला-
“चलू, हमहूँ अहाँ संग चलै छी।”
दुनू गोरे हाल्टबला आ घुमौआ मुदा सुरक्षित रास्ता पकैड़ विदा भेला।
इमहर बिआहक सभ विध-व्यवहार नीक जकाँ चलि रहल छल। मुदा किसन मररक मन उड़ल रहैन। किएक तँ परसामासँ नवपुरक दूरी मात्र आधा घन्टाक अछि आ अखन धरि आदमी घुरि नइ आएल अछि, जखन कि घन्टोसँ ऊपर समय भऽ चुकल अछि। किसन मररक मनमे शंका भऽ रहल छेलैन। पाँच-दसटा छौड़ा सभकेँ पाँच सेलक हथबत्ती दऽ कऽ रास्तामे पठा देलकैन। टॉर्च बाड़िते छौड़ासभ लठैतकेँ देखि लेलक आ सतर्क भऽ ओकरासभक गति-विधिपर ध्यान दिअ लागल।
ओमहर हरिदेव आ मखनाकेँ आबैमे बड़ देरी भऽ रहल छेलै, किएक तँ ओकरा रास्तामे एतेक घनगर कुहेस बढ़ि गेल रहै, जइ कारणेँ दिशांश लागि गेलइ। दुनू गोरे पूब दिस बढ़िते चलि गेल। रतनपुर आ रतनपुरसँ रानीपुर आबि गेल रहए। संयोग ई भेलै जे कि अपना घरसँ निकलल एगो आदमी मखनाकेँ देखि लेलखिन आ चिन्ह कऽ पुछलखिन- “अहाँसभ केतए जाइ छी?”
मखना कहलक-
“नवपुर जेबाक अछि, दिशांश लगि गेल अछि।”
ओ आदमी बजला-
“धू महराज! ई तँ रानीपुर गाम छी। अहाँसभ लगभग तीन कोस पूब आबि गेलौं। चलू हम रस्ता देखा दइ छी।”
ओइठामसँ तीनू गोरे नवपुर तरफ चलि पड़ल।
ओमहर बिआहक अँगनामे खुशीक नुपुर बजैत छल। सभ काज ढंगसँ आ बिना कोनो बाधासँ भऽ रहल छल। भुल्ला खवास बड़ खुशी रहए, किएक तँ किसन मरर अँगनामे जमल रहथिन। ऐ तरहेँ अँगनामे आनन्दक वातावरण व्याप्त छल। मुदा किसन मररक मन तरे-तर अशान्त रहैन। शुभ-अशुभ, होनी-अनहोनीक बीच पड़ल छटपटा रहल छेलैन। किएक तँ अखन तक मखना रुपैआ लऽ कऽ नइ लौटल अछि। की किसन मररक ई बेथा अँगनाक लोक सभ बुझै छेलैन? फरवरी महिना आ हड्डी कपकपबैत जाड़, तहूमे साढ़े तीन बजे रातिक समय। अँगनामे किसन मरर जाड़सँ थरथराइत रहैथ। हुनकर ई सोच रहैन जे कि हमर देह थरथराएत तँ थरथरा जाउ, मुदा हम अप्पन प्रतिष्ठाकेँ आ गामक इज्जतकेँ नइ थरथराए देब। खाना खाइक बेर दुनू मरर सेहो एला आ भरि हीछ खेबो केलैन। मुदा किसन मरर नइ खेलैन। ई बात कियो बुझबे नइ केलक। भलचर मरर पुन: दुल्हाक पिताक कान भरि देलैन आकि दुल्हाक पिता बेटी विदाइक रस्म रोकि देलक। आब अँगनामे फेर दुखक पहाड़ खसि पड़ल। किएक तँ टाकाक मांग पुन: जोर पकैड़ लेलक। चुगली लाड़ि दुनू मरर चलि गेला। पह फटैत रहइ। किसन मरर कहलखिन-
“यौ छट्ठू बाबू, अहाँकेँ समयपर रुपैआ भेट जाएत। विदाइक काज आगू बढ़ए दियौ। हम विदाइसँ पहिने अहाँकेँ सभ टाका दऽ देब।”
अँगनाक काज फेर शुरू भऽ गेल कि किसन मररक मित्र हरिदेव आबि गेला।
दुनू मित्र कृष्ण-सुदामा जकाँ आलिंगनवद्ध भेला। ओमहर अँगना-घरमे कानव-खिजब शुरू भऽ गेल छल। किएक तँ गामक धियाकेँ विदाइ जे छल। ऐ कानवमे प्रेमक धार छल, बेटीक दुलार छल, राग-अनुराग छल आ समाजक मनुहार छल। तैबीच ओ दुनू शिकारी मतलब दुनू मरर फेन आबि गेला, शिकार मुँहसँ निकलैत देखि भलचर मरर फेन दुल्हाक पिता लग गेला आ कहलैन- “की यौ छट्ठूबाबू, सभटा टाका भेट गेल आकि नइ भेटल।”
छट्ठू समैध सम्हैर कऽ बजला- “हँ, हँ, भेट गेल हम बड़ खुश छी। किसन मरर जकाँ जइ समाजमे महान बेकती रहत, तैठाम सभकिछु सम्भव अछि। ओ जहिना बजला तहिना अपन वचन पूरा केलैथ। हमसभ बड़ गदगद छी।”
ई सुनिकऽ दुनू मरर अवाक् भऽ गेला। कोनो दोगे ने रहि गेलैन जइ दोगकेँ पकैड़ आर किछु करितैथ। जेना एकलव्यक तीर मुँहमे लागि गेलैन तहिना दुनू गोरेक मुँह बन्द भऽ गेलैन।
अँगनामे बेटीक विदाइमे सभ कियो लागल रहैथ। सिनेहक गंगा-यमुना बहैत रहए, सभ किसन मररक जय-जयकार करै छल। तैबीच लॉडस्पीकरसँ गीत बाजि उठल- ‘धीरे-धीरे चलु रे कहाड़ा, सुरुज डुबे रे नदीया।’
कहार बेटीकेँ डोलीमे लऽ कऽ आगू बढ़ि गेल। दुनू मरर देखिते रहि गेल। एहमर जहिना भुल्लाक कण्ठ जेना बाझि गेल तहिना किसन मररक आँखि नोरा गेल रहैन।
– रामेश्वर प्रसाद मंडल