लेखक परिचय
श्री राम विलास साहु
जन्म तिथि: 01 जनवरी 1957 ई.
पत्नी: स्व. मंजूला देवी
माता-पिता: स्व. कैली देवी, स्व. नशीव लाल साहु
दादा-दादी: स्व. लूचाई साहु, स्व. दुखनी देवी
शैक्षणिक योग्यता: स्नातक, निर्मली कॉलेज निर्मली (हरि प्रसाद साह महाविद्यालय), निर्मली (सुपौल)
जीविकोपार्जन: ‘ज्ञान भारती’ पब्लिक स्कूल- निर्मलीमे प्राचार्य पदपर 14 वर्ष धरि कार्य केलाक बाद वर्त्तमानमे कृषि (खेती-बाड़ी) कार्य। रुचि: साहित्य पढ़ब-लिखब।
साहित्य लेखन: 2008 ईस्वीसँ।
वर्तमान में उपाध्यक्ष: प्रगतिशील लेखक संघ, मधुबनी (बिहार)।
प्रकाशित कृतियाँ (मैथिलीमे): (1) रथक चक्का उलैट चलए बाट (2013), (2) कोसीक कछेर (2017), (3) गामक सुख (2018), (4) मनक मैल (2018) पद्य संग्रह। (5) अंकुर (2016), (6) दुधबेचनी (2018), (7) अंशुमान (2021) कथा संग्रह। (8) नेत्रदान (2022) खण्ड काव्य।
सद्य: प्रकाशित कृति: (हिन्दीमे) खुला आसमां धरती की गोद में (2023) कविता संग्रह।
अप्रकाशित कृति : आगिये आगि (कविता संग्रह)
सम्मान/पुरस्कार: नरेन्द्र सम्मान-2018, लेखकीय सम्मान-2018, सृजनरत्न सम्मान-2019
रचनाएं
तृष्णा
तृष्णाक तृप्ति जलसँ होइए
अन्नसँ मिटैए पेटक भूख
दूध फल मेवा काया पोसैए
औषधि करैए दुख दूर
हीरा-मोती छी धनक भूख
मनक तृष्णा कहियो ने मिटैए
मरने जाइए संगे क्रिया-कलाप
सत्यक सौरि पतालमे होइए
यश स्वर्ग धरि पसरैए
सभ किछु छोड़ि सुरधाम जाइए
मुदा कर्म-कुकर्म दुनू संगे रहैए
नहि बाँटैए अपनो कियो
अधर्मी फलहीन वृक्ष सन
सुकर्मी अमृत सभ दिन पीबैए
अज्ञान अन्हरिया राति होइए
ज्ञान पूनमक चान कहबैए
लोभ पापक असली खान छी
सत्य जीवनक प्राण होइए
धनक तृष्णा जंजाल बनैए
तृष्णा मृगतृष्णा बनि कऽ
लोभीकेँ लइए क्षणमे प्राण
तृष्णाक तृप्ति स्वर्गोमे नै होइए
भटैक जीव नरक भोगैए
संतोखसँ परमानन्दक सुख भेटैए।
जीबिते जी मरै छी
की कहूँ सखी
पियाक वियोगमे
जुआनी जरबै छी
जीबिते जी मरै छी।
चढ़ल यौवन
ढरल जाइए
जेना सौन भादोमे
मेघो ने देखाइए।
नहि पड़ल बून्न
झिसियो ने पड़ैए
धरती पियासे
धधैक जरैए।
बून्न-बून्न लेल बेकल
प्राण तियागने जाइए
तहिना हमर मन पियासे
पिया बिनु जरैए।
आशक बाट तकै छी
आँखि ताकि निरारि
हिया हारि बैसल छी
आँखिसँ नोर झरैए।
उमरल यौवन
मनमे लहैर मारैए
तन मनक आगि
सहजे सहल नै जाइए।
दुनियाँक नजैर
बदलल लगैए
लोक देख-देख कऽ
नजैर-मे-नजैर लड़बैए।
मजधारमे जिनगी
दलदलमे फँसल-ए
भविष्यक बाट
अन्हाराएले सन लगैए।
पियाक सनेस
बाटे हेराएल-ए
केना कटत दिन-राति
सौंसे देह आगि लगल-ए।
केकरा देख जीअब
दुनियाँ अन्हार लगैए
की कहूँ सखी
कहल नहि जाइए
जुआनी जरबै छी
जीबिते जी मरै छी।।
कौल्हुक सुच्चा करुतेल
बात तीन-चारि दसक पूर्वक छी। तहिया हम नवालिके रही। फागुन मास रहै, पछिया हवा रमकैत रहए। रबिया आ बुधना दुनू भाँइ चिमनीपर पजेबाक खेबालमे माटि बनबए गेल रहए। माटि कचैर बना दुनू भाँइ संगे लेढ़ाएले घुमि घर आएल। रौदाएल रहए, पोखैरक महारपर गाछक छॉंहैरमे आबि जिराइत रहए, मन थिर भेला पछाइत पोखैरमे भरि मन देह मांजि नहा कऽ घर विदा भेल। घर पहुँचते मटियाएल देह उज्जर लगबे करए आ चुनचुनेबो करए। दुनू भाँइक रॉंइ-बाँइ देह देख माए बजली-
“बौआ, तोरा दुनू भाँइक देह किए एना रॉंइ-बाँइ फाटल लगै छौ! कनी करुतेल किए ने लगा लइ छेँ?”
रबिया बाजल-
“से तँ ठीके माए, बहुत दिनसँ तेल-कुड़ देहमे नै औंसलौं हेन। घरसँ नीकहा करुतेल नेने आ।”
माए बजली-
“निकहा तेल तँ बौआ कनियेँ रहए, सेहो कहिया ने सधल। तखन बजरूआ खाँटी तेल कनी अछि से औंस ले।”
रबिया-बुधना दुनू भाँइ खूब चपकारि-चपकारि तेल देहमे लगेलक। देहक चमड़ी जे फाटल छल तइमे रबरबाए कऽ तेल लगल आ देहमे लहैर मारए लगल। जहिना मसल्ला पीसैकाल मिरचाइक दाफसँ हाथ लहरैए तहिना समुच्चा देहमे लहैर मारए लगल। बुधना रबियासँ पुछलक-
“भैया, बजारक खाँटी करुतेल देहमे लगेलापर एतेक किए लहैर मारैए?”
रबिया बाजल-
“रौ बौआ, की कहबौ तेलक हाल। जहिना लोको रंग-बिरंगक अछि तहिना तेलो। ई जे बजारमे खाँटी तेल बिकाइए से कोनो ऐठाम बनैए जे सुच्चा तेल रहत। आन-आन राज्यमे तेलक कारखाना लगल अछि जइमे बहुतो जीज-वौसक तेल बनैए। तेलकेँ छानि शुद्ध कऽ रंग आ केमिकल मिला टीनक-टीन भरि देशमे बिकाइए। तेलो टटके बुझेतौं। मुदा कहियाक बनल छी आ केतेक दिनक पछाइत बिकाइए से लिखलेटा रहैए।”
बुधना बाजल-
“जखन देहमे औंसलासँ एतेक लहरैए तँ देहक चमड़ीकेँ बिगाड़ि तँ ने देत?”
रबिया बाजल-
“देहक चमड़ियेटा नै बिगाड़ैए बल्कि ऐ तेलक बनल खाइबला चीज-वौस लोक बेवहार करैए तइसँ बहुतो हानि आ बेमारी होइए। चर्मरोग, गैष्ट्रीक अल्सर, अपच आ लीवर-सूजन बेसी होइए। जँ आँखि कानमे पड़ि जेतह तँ आँखियोमे अँखिदुखी आ कानोमे कनदुखी हुअ लगतह।”
गप-सप्प होइते रहए कि शिबु काका खराम पहिरने पट-पटबैत पहुँचला। दुनू भाँइकेँ घौलाइत-बड़बड़ाइत देख ठाढ़ भऽ बजला-
“रौ रबिया-बुधना, बेर खसि पड़ल आ तूँ दुनू भाँइ बैसल की करै छीही?”
रबिया बाजल-
“काका, हम दुनू भाँइ सुच्चा करुतेल आ बजरूआ खाँटी करुतेलमे ओझराएल छी। हम सभ तँ काठक कौल्हु तँ नै देखलौं।”
शिबु काका बजला-
“रौ तेलक भाँज एना नै ने बुझबिही। पहिने अँगना जो खेने आ, तखन हम बुझा देबौ।”
बुधना बाजल-
“काका, ताबे अहाँ दलानेमे बैसू, हम दुनू भाँइ खेने अबै छी।”
कहि, रबिया-बुधना अँगना जा माएसँ खेनाइ मांगि खाए लगल आ माएसँ बाजल-
“माए, तहूँ खा कऽ दलानेपर अबिहेँ। शिबु काका बैसल छथिन, ओ करुतेलक महत्वपूर्ण बात बतेता।”
माए बजली-
“चल तूँ सभ हम पीठेपर अबै छी।”
रबिया सुपारीक टूक काकाकेँ हाथमे दैत चुनौटी निकालि चून-तमाकुल चुनबए लगल। दुनू गोरे तमाकुल खा थूक थुकैड़ गप-सप्प शुरू केलक। बुधना आ रबियाक संग माए सेहो कातमे बैसली। रबियासँ बेसी धियान बुधना रखने रहए जे सुच्चा करुतेलक हाल केना जानी, तँए ओ बिच्चेमे काकासँ पुछलक-
“काका, आब तँ सभ निचेन भऽ गेलौं सुच्चा करुतेलक चर्चा भऽ जाएत तँ बड़ नीक हएत।”
शिबु काका बजला-
“देरी हमरामे नहि, तोरे सभमे छह। हम तँ चाहबे करै छी जे गाम-समाजक पुरना रीति-रिवाज आ चालि-चलैन सभ कियो जानि जाए, जइसँ समाजक प्रथा चलैत रहत। किएक तँ पहिलुकबा जे चालि-चलैन अछि ओइसँ लोकक संस्कृति आ रोजगार चलन्तमान होइए आ शुद्ध समानो भेटैए। ने मिलाबट आ ने बेइमानी।”
बातकेँ शिबु काका आगू बढ़बैत फेर बजला-
“देख रबि, तूँ सभ अखन धिया-पुता छँह। तोहर बाप मरि गेलखुन मुदा माए जीविते छथुन। पुछि लहुन तोरा माए संगे बापकेँ चुमौन करा हमहीं अनने छी। ई जे हमर चौरस चाकर सुडौल आ पाँच हाथक देह देखै छीही से शुद्ध अपन गाए-महींसक दूध-दही आ घी खेलहा पोसल छी। पौआ-पौआ कठहा कौल्हुक सुच्चा सेरसो-तोड़ीक तेल सभ दिन ऐ देहमे पचबै छेलों। तँए ई देह अखनो इस्पात जकाँ सोझ आ मजगुत अछि। की कहबौ, जखन तोरा बापक चुमौन करबए गेलौं तँ किछु लोककेँ गुदुर-फुसुर करैत सुनिलेए की हमर कान ठाढ़ भऽ गेल। हम अपन चलह-पहल करए लगलौं। हमरा देख कऽ ओतुक्का लोककेँ सिटी-पिटी बन्न भऽ गेलै। आ केकरो चौहुओ ने अलगले आ ने मुँहसँ बकारे फुटलै।”
बिच्चेमे बुधना बाजल-
“कका, अहाँ तँ अपन बीतल बात कहलौं मुदा सुच्चा करुतेलक बात बता दिअ जे हमहूँ सीखब।”
काका बजला-
“बुधन हम बुढ़ भेलौं बजैत-बजैत भँसिया जाइ छी। सभ गप मनो नइ रहैए। तूँ ठीके हमरा मोन पाड़ि देलेँ। अच्छा, सुन कहै छियौ- पहिने समाज पछुआएल छल। लोक सभ काजकेँ बाँटि-बाँटि लूरिक हिसाबे करै छल आ एक-दोसरकेँ सहयोग करै छल। तँए जेकर जे काज छल ओ ओइ काजक लूरि सीखने ओस्ताज कहबै छल आ तहिना समाजो रहए। सबहक काजो सभ रंगक रहइ। कियो काठक काज, कियो सोना-चानीक काज, कियो खेती-बाड़ी तँ कियो तेल पेरइ छल। ऐ तरहेँ अनेकानेक काज समाजमे होइत रहए। सभ तरहक काजो आ सभ चीज-वौसक जरूरत सेहो एक-दोसरसँ पूर्ति होइ छल। अही समाजमे एकटा विशेष वर्ग अछि जे कठहा कौल्हु बना बरद जोइत घुमा-घुमा तोड़ी, सेरसो, तीसी, तिल पेर-पेर समाजमे सुच्चा तेलक कारोबार करै छल जे अखन अन्त भऽ गेल अछि। किएक तँ अखन हाट-बजारक बेवस्था अछि, जइमे सभ समान बनले-बनल भेटैए। अखन ने ओ लोक आ ने ओ समाज अछि। जहिना फेंटल लोकक समाज अछि तहिना मिलाबट कएल चीज-वौस। पुछही ने माएकेँ, पहलवान ब्राण्ड, डबल परी, हिरण छाप, इंजन छाप, मशाल छाप, धारा, फरचुन आ स्कूटर छाप इत्यादि, ई जे रंग-बिरंगक डिब्बाबला करुतेल भेट रहल अछि से पहिने भेटै छल?”
माए मुड़ी डोलबैत बजली-
“नहि, ई सभ तेल पहिने कहाँ छल। एकरा सबहक नाउओं ने सुनने रही। ई सभ तेल तँ आब चलनमे आएल।”
बुधना बाजल-
“तखन लोक पहिने तेलक जरूरत केना पुरा करै छल?”
शिबु काका बजला-
“ओइ समयमे समाजमे कौल्हुसँ तेल पेराइ छल, कौल्हेबला सँ लोक करुतेल कीनै छल। चाहे, जेकरा सेरसो-तोड़ी रहै छेलै ओ बहतौन दऽ पेराइये लइ छल। जैठाम कौल्हु नइ रहै तैठाम लोक तेलक भौड़ी-बट्टा करए। टाड़ी-टाड़ामे सुच्चा करुतेल लऽ गामे-गाम घुमि बेचए। तेलक नपना कोइया रहै जे कनमा, चाठी, अधपौआ आ पौआ भरिक रहै छल। कोइए-सँ नापि तेलक बिकरी होइ छल। रूपैआ अथबा अन्नक बेच दऽ लोक तेल लइ छल।”
जखन समाजमे किनको बेसी तेलक जरूरत होइ छेलैन तँ ओ कौल्हुबलाक एठीम सेरसो-तोड़ी आ कि तीसी लऽ पहुँचै छला। कौल्हुबला सेरक हिसाबसँ बहतौन लऽ पेर दइ छेलइ। बहतौनमे जेतेक सेरसो-तोड़ी पेरै तेतेक अन्न मेहनतमे लइ छेलइ। हिसाबो नीके बनल छेलै, तीन सेर सेरसो-तोड़ीमे एक सेर तेल आ तीन सेर अन्न बहतौन लइ। तेलक खइर सेहो कौल्हुबलाकेँ होइ छेलइ। खइरकेँ लोक गाए-महींसकेँ कुट्टी-सानीमे खिबैले कीनि लइ छल। मेहनतिया काज भेने आमदनियो दोबर, एकटा बहतौन दोसर खइरक आमद।
रबिया सुनबेटा करए मुदा बुधना मने-मन अपन रोजगारक बुधियो लगबए। जखन अपने घरमे रोजगार भऽ जाएत तखन कमा कऽ जिनगी नीकेसँ जीब लेब। गपक क्रम टुटल देख बुधना बाजल-
“काका, ई काठक कौल्हु केना आ के बना देत? जँ बनि जाएत आ सभ सरमजानक ओरियान भऽ जाएत तँ हम यएह काज करब। ने रौद-बसातक डर रहत आ ने कखनो बैसारी हएत। जेहेन मेहनत करब तेहेन आमद हएत।”
शिबु काका बजला-
“काज तँ बड़ नीक अछि। गाम-समाजसँ जुड़ल स्वतंत्र-स्वावलम्बीबला काज अछि। जेहेन काज तेहेन मान-सम्मान। आत्मनिर्भरता सेहो आबि जेतौ। काजो तेहेन अछि जे सभ दिन चलतौ। कहियो बैसारी नै हेतौ। किएक तँ तेलक बिना केकरो काजो थोड़े चलत। ओना, कौल्हुक काज अखन उसैर गेल अछि। कौल्हु बनबैक कारीगर सेहो आब नहियेँ रहल। कौल्हु बनाएब सभ मिस्त्रीक बस नहि। जँ कारीगर मिल जाए तँ अखनो ई काज बड़ नीक हएत। समाजमे सभकेँ सुच्चा करुतेल ई भेटत आ एकटा रोजगार समाजमे ठाढ़ हएत। कौल्हुक कारीगरोकेँ रोजगार बढ़त। एकटा समाजक जीविकोपार्जनक कला जे उसरन भऽ गेल सेहो पुन: पुनर्जीवित हएत।”
बुधना बाजल-
“कका, जँ कौल्हु बना काज करब तँ कोन-कोन चीजक ओरियान करए पड़त?”
शिबु काका बजला-
“ओरियान की करए पड़त, सभ समान तँ अपना घरेमे अछि। मुदा कला बिनु जानवर छी। तखन कौल्हु लेल एकटा मोटगर कटहरक छह-फिट्टा टोन आ मोहैन लेल चारि-पाँच फीटक कुसुम वा बेलक सुरेबगर लकड़ीक जरूरत पड़त। किए तँ मोहैन ओही दुनू लकड़ीक होइए से बुझल अछि। तेकर अलाबे एकटा मजगुत पहटा, पालो आ एकटा भुटबा बूतगर बरद चाही। जँ बेसी कौल्हु चलत तँ दूटा बरद, नहि तँ एकोटासँ काज चलत।”
बुधना बाजल-
“कटहर आ बेलक गाछ अपने अछि। पालो, पहटा आ हरबोहा जोड़ा बरदो अछिए। सिरिफ कौल्हु बनबैबला कारीगर खोजए पड़त। हम इएह रोजगार करब। घरे गाममे रहि कमाएब- खाएब आ समाजक बीच रहब। कका, कनियेँ धियान दऽ कारीगर खोजि कौल्हु बनबा दीअ।”
शिबु काका बजला-
“कारीगर खोजैले गामे-गाम जाए पड़त। किएक तँ ई रोजगार गामे-घरक छी। सिजिनो तेल पेरैक आबि रहल अछि। तोड़ी, तीसी आ सेरसो ऐबेर खूब उपजबो कएल अछि।”
किछुकाल रूकि शिबु काका फेर बजला-
“रबि, तूँ काल्हिये कटहर आ बेलक गाछ काट आ हम-बुधना दुनू गोरे कारीगरक खोजमे जाएब। जाबे कारीगर नै भेटत ताबे घुमि कऽ घर नै आएब।”
शिबु काका आ बुधना भोरे एकटा झोरामे बटखर्चा- दू सेर चूड़ा-मुरही आ नोन-मिरचाइ तैसंग धोती-गमछा लऽ विदा भेला। पहिने जइ-जइ गाममे बेसी कौल्हु चलै छल से काकाकेँ बुझले छैन। फुलकाही, हिरपट्टी, लदनियाँ होइत लौकही पहुँचला। पता चललैन जे कौल्हुक कारोबार कहिया ने बन्न भऽ गेल आ कारीगरो सभ बुढ़ाए-बुढ़ाए मरि गेल। अखन एकटा बुढ़ा कारीगर महदेवामे पंची साहु, सोमरन पट्टीमे दुनू भाय सोनेलाल साहु आ किशुन साहु पुरान इलाकाक मसहूर कौल्हुक कारीगर छैथ। कौल्हु बनेबो करै छैथ आ भंगठल कौल्हुकेँ मरोमत सेहो करै छैथ। शिबु काका आ बुधना खोजैत झलफल साँझमे सोने लाल साहुक घरपर पहँचला।
सोनेलाल साहु आएल अतिथिकेँ आदर-सम्मानसँ चौकीपर बैसा सुआगत केलक। शिबु काका सोनेलालसँ कहलखिन-
“हम एकटा कठहा कौल्हु बनबए चाहै छी से अहाँ बना दिअ।”
सोनेलाल बाजल-
“कौल्हुक काज तँ बहुत पहिने बन्न भऽ गेल, ओजारो सभ हराए-ढराए गेल। तखन एते दूरसँ एलौं हेन तँ पहिने जिराए किछु जलखै खा चाह पीबू तखन काज हेबे करत।”
सोनेलाल किशुनकेँ बजौलक। किशुन सोनेलालक पितियौत भाए, हुनका लग औजार सभ अछिए। दुनू भाँइ कौल्हु बनबैले तैयार भेला। किशुन लाल बाजल-
“हम दुनू भाँइ जाएब आ हमर संगबे महदेवाक पंची साहु सेहो रहता। तीनू गोरे मिलि काज कऽ देब। खेनाइ-पिनाइ छोड़ि तीन हजार रूपैआ लेब। कौल्हु बनबैसँ लऽ कऽ चालू करैत-करैत सात-आठ दिन समय लागि जाएत।”
शिबु काका मंजूर कऽ लेलैन। रातिक भोजन कऽ सभ कियो सुति रहला। अन्हरौखे उठि सभ कियो विदा भेला। रस्तेमे चाह-पान करैत दुपहरमे पंची साहुक घर महदेवा गाम पहुँचला। दिनक भोजन कऽ साँझ धरि घुमि अपन गाम एला। थाकल ठेहियाएल सभ कियो खाए-पीब कऽ आरामसँ सुति रहला। भोरे उठि दिशा-मैदानसँ आबि लकड़ीक टोन गाछीएमे बना उठा दरबज्जापर राखि छेब कौल्हु बनेनाइ शुरू कऽ देलक।
लकड़ियो नीके रहइ। खूब अहगर, तीन-चारि सेरक खोंइछबला कौल्हुक पेट साफ करैत तेलक निकास बनबए लगल। मोहैन बना बाँसक ओधिकेँ घुमौना, लकड़ीकेँ डँर-घुमौना सभ बनबैमे चारि दिन बीत गेल। पाँचम दिन कौल्हुमे बाँसक खाप पंची साहु भरि मोहैन सेट केलक। छठमा दिन कौल्हु गारि सभ सरमजानकेँ जुति लगा सेट केला पछाइत जगहकेँ नीप-पोति रातियेमे पूजा-पाठ कऽ प्रसाद चढ़ा देलक। सातम दिन भोरे तीन सेर सुखल तोड़ीमे एक चुरुक पानिक मोहि दऽ मिला कऽ कौल्हुमे दऽ पालो सेट कऽ बरद जोइत घुमबए लगल। पहटापर भार खातिर एक गोरे बैस गेल बा बरदोकेँ हाँकए लगल। घुमैत-घुमैत जखन पचास-साठि फेरा लगल की तेल गड़-गड़ा कऽ चुबए लगल।
गड़गड़ाइत तेल चुबैत देख सबहक मनमे खुशी भेल। गामक धिया-पुतासँ लऽ कऽ बुढ़-बुढ़ानुस, सबहक हुजुम लागि गेल। किएक तँ कहियो लोक कौल्हुसँ तेल पेरैत नै देखने रहए। एहेन साफ सुच्चा करुतेल देख सभकेँ अचरज लगए।
कारीगर पंची साहु अपने हाथे प्रसाद आ पहिल घानीक तेल लोकक बीच बाँटि देलक। दहिना हाथमे प्रसाद आ बामा हाथक तरहत्थीमे एक कोइया तेल। लोक सभ परसादी मुँहमे लऽ तेल माथक चानिपर रगड़ैत सुच्चा तेलक आनन्द लैत अपन-अपन घर विदा भेल।
सुच्चा करुतेलक खबैर समुच्चा गाममे पसैर गेल। देखैयो-ले आ तेलो लइले लोक एबो करए आ जेबो करए। बेरा-बेरी बरदकेँ उनटा-फेर कऽ भरि दिन कौल्हुमे जोतने आ सेरसो आ तोड़ी पेरैया करैत रहल। रबिया-बुधना तीनू कारीगरकेँ आ शिबु काकाकेँ मेहमान जकाँ आदर-सम्मान कऽ भोजन करेलखिन। भोजनक तरूआ, भुजुआ आ तरकारी ओही कौल्हुक सुच्चा तेलमे बनल। भोजनो सुआदिष्ट आ उत्तम रहए…।
शिबु काका बजला-
“बजारू खाँटी तेलक बनल तरूआ-तरकारी तँ चमचमाइन लगैए मुदा काठक कौल्हुक सुच्चा तेलक बनल चीज-वौस तँ घीओसँ चिक्कन होइए।”
रबिया-बुधना शिबु काकासँ विचारि तीनू कारीगरकेँ एक-एक जोड़ धोती-गमछा आ 51-51 टाका विदाइ देलक। तीन हजार रूपैआ, जे मजूरी गछने छल सेहो देलक। तीनू कारीगर विदा होइसँ पहिने कौल्हु लग जा देखलक। तखन बुधना कौल्हु जोतने रहए। सोनेलाल ठाढ़ भऽ कौल्हुकेँ देख बजला-
“रबि आ बुधन दुनू भाँइ सुनह, अखन एक-दू मास कौल्हु चलबह, जखन खापक घाट चिक्कन भऽ जाएत, तखन तेल कम उतरए लगतह तँ हमरा बजाबिहह। हम आबि खाप बदैल ठीक कऽ देबह आ दुनू भाँइकेँ सिखाइयो देबह तँ आगू ऐ तरहक भंगठी अपनेसँ कऽ लइ जेबह। किएक तँ कौल्हुक खाप बदलनाइ झंझटिया होइए। जँ कनियोँ उरेब भऽ जेतह तँ तोड़ी-सेरसो पिसेबे ने करतह आ ने तेल चुतह। तूँ दुनू भाँइ मनसँ काज करह। हम एहेन लक्ष्मी कौल्हु बना देलिअ जे तोरा धनक अम्बार लगा देतह।”
दुनू भाँइकेँ पीठ ठोकि आशीष-वचन दऽ कारीगर विदा भेलाह।
रबिया-बुधना दुनू भाँइ बेरा-बेरा कौल्हु चलबए आ माए भानस-भात कऽ बरदक कुट्टी-सानी करए। खइर-नोन फुला कऽ बरदोकेँ सानी समयपर खुआबए लगली। बरदो खइर खा तैयार भऽ गेल। लोको सभ तेल-खइर कीनैले आबए लगल। अपनो गामक लोक आ आनो गामक लोक सेरसो-तोड़ी, रैंची-तीसी लऽ लऽ आबि पेरबैले नम्बर लगौने रहैए। तीनिए-चारि मासमे बुधना-रबियाक घर अन्न आ खइरसँ भरि गेल। तेल-खइर जे नगदी बिकाइ तइसँ हाथपर साए-दू-साए रूपैआ हरिदम रहबे करैए। जइ अन्न आ रूपैआ खातिर रबिया-बुधना हरदम बेकल रहए, अनकर काज करए आ बैसारीमे चिमनीपर पजेबा पाथि गूजर करए ओकरा कर्म संगे किश्मतो साथ देलक जे आइ अपने काजसँ छुट्टी नइ होइए। काजो बढ़ल आ आमदनी सेहो बढ़ल।
रातिमे दुनू भाँइकेँ समझाबैत माए बजली-
“बौआ, पहिने दिक्कतदारी रहए आ काजो-आमदनी कमे रहए। मुदा आब काजो बढ़ि गेल, तँए कहै छिअ जे दुनू भाँइ बिआह कऽ लैह जे पुतोहु घर रहती तँ काजो सम्हारि देती। हम तँ बुढ़ भेलौं नजरियो कम अछि तँए तोरो सभसँ विचार करब उचित बुझना जाइए। अहुना जँ लोक घरमे कोनो काज करैए तँ अपनामे विचारि करैए, तखन ओ काजो नीक होइए।”
रबिया-बुधना दुनू भाँइ माइक बात सुनि किछु बाजब उचित नइ बुझि चुप्पे रहल।
बेटाक किछु उत्तर नहि पाबि मनमे सोचली जे केकर बेटा-बेटी माए-बापकेँ सेाझमे कहैए जे हमरा बिआह कऽ दए।
भिनसरबेमे रबिया-बुधना उठि कौल्हुमे घानी दऽ बरद जोतने रहए कि शिबु काका खराम पहिरने पटपटबैत पहुँचला। रबियाक माए बरतन-बासन करै छेली। खरामक पटपटाएब सुनि लगमे आबि शिबु काकाकेँ बैसैले कहलखिन। तखने बुधना सेहो कौल्हुक घरसँ निकलल तँ शिबु काकाकेँ देख माएसँ बाजल-
“माए कनी टेस्टगर चाह बनेने आ, कको पीता आ अपनो सभ पीब। भरि दिन तँ काजमे जोतले रहै छी।”
जेतेक कालमे रबियाक माए चाह बना ऐली, तैबीच बुधना शिबु काकासँ गपो करए आ तमाकुलो चुनबए। शिबु काका रबियासँ कौल्हुक आमदनीक चर्च सेहो केलैन। चाह नेने रबियाक माए एली। शिबु कक्काक हाथमे चाहक गिलास पकड़बैत बजली-
“भैया, अपने समाजक बुजुर्ग आ अनुभवी बेकती छथिन। जहिना हमरा दुनू बेटाकेँ रोजगार कऽ देलखिन तहिना दुनूकेँ बिआहो करा घर बसा देथिन। रबियो-बुधनाकेँ बाप नै छै जे कहबै। तखन तँ नीक कि अधला, देख-रेख तँ हिनके करए पड़तैन।”
शिबु काका बजला-
“सेहो करब मुदा समय लगा कऽ ने करब। जँ एतेक दिन दिक्कत काटलह तँ थोड़बे दिन आरो काटह। एमकी शुरूए बला लगनमे दुनू भाँइक बिआह कऽ देब। बेरा-बेरी करब तँ काजो बरदाएत आ खर्चो बेसी हएत।”
रबियाक माए बजली-
“भैया, लड़की बेसी पढ़ल आ सिफलाहि नै हुअए। बिनु पढ़लो हुअए मुदा कमासुतनी, पितमरू आ नीक-बेवहारक हुअए।”
शिबु काका बजला- “लेनो-देन करबहक?”
रबियाक माए बजली-
“लेन-देन की करब भैया, अनका धनसँ लोक धनिक नै होइए। दहेजक रूपैआ तँ हहासेमे उड़ि जाइए आ उनटे बदनामी माथपर चढ़ि जाइए। हमरो आ हमरा बेटाकेँ एहेन विचार नै अछि जे ई करम करी। धन तँ लोक अपना कर्म आ मेहनैतसँ कमाइए। अनकर देलहा धन बाढ़िक पानि जेना अबैए तेना चलियो जाइते अछि। मुदा मेहनतक कमाएल धन स्थायी होइए। हमरा किछु ने चाही, खाली कमासुतनी पुतोहु कऽ दौथु।”
शिबु काका बजला- “बड़ नीक विचार छह तोहर। सएह करब।”
गप-सप्प चलिते रहए कि चन्दू मालिक रबियाक दरबज्जापर एला। शिबु काकाकेँ देख बजला-
“गोर लगै छी काका।”
शिबु काका अकचकाइत बजला-
“नीके रहअ बौआ चन्दु। आबह, बैसह। बहुत दिनपर भेँट भेलह, हाल-चाल कहअ।”
चन्दु मालिक बजला-
“सभ ठीके अछि काका, भगवानक कृपा आ अहाँ सबहक दयासँ दनदनाइ छी।”
शिबु काका बजला-
“केमहर आइ चान उगल जे तूँ एमहर घुमै छह?”
चन्दु मालिक बजला-
“यौ काका, लोकेक मुहेँ प्रसंशा सुनि एलौं हेन। लगधग महिना दिन पूर्व पोता भेल। की कहब, जखन पोताकेँ बजरूआ खाँटी करुतेल लगा कऽ जाँतैए तँ बच्चा फकसियारी काटि कनैए। अपनो छगुन्ता होइए, तखन अपनो तेल लगा देखलौं तँ सौंसे देहमे लहरए लगल। आँखिमे भकभका कऽ लागल।”
शिबु काका बजला- “हौ चन्दु, घरमे ढेरक-ढेर सेरसो उपजल हेतह, अखने लऽ आनह, तुरन्ते रबिया पेर देतह। ओ शुद्ध कंचन तेल कथी-ले लगेलासँ लहरत आकि देहे लसियाएत।”
रबियाक माए घरेसँ सुनै छेली। मालिक पोताक नाओं सुनि ओ रौतुका कौल्हुक ठोपारीबला तेल एक बाटी नेने एली आ बजली-
“अखने ई तेल नेने जाथु, पोतोकेँ आ अपनो लगा कऽ देखिहथिन।”
चन्दु मालिक तेल देख सुघिं प्रसन्न भेला। घर पहुँचते पोताकेँ तेल लगबैले कहलखिन। पोताकेँ तेल लगा-लगा जेते जॉंतए पोता तेते हँसए। कथी-ले एकोबेर चूँ-चाँ करत।
चन्दु मालिक ओइ तेलमे सँ कनी तेल लऽ अपना माथपर लगा मुँह-हाथमे सेहो लगेला। बड़ नीक तेल, ने कोनो झॉंस आ ने एकोरत्ती लहैर। तखने दस सेर सेरसो लऽ पेरबए विदा भेला। सभ कियो वएह तेल आँसए आ तीमनो-तरकारी करए। लगबैयो आ खाइयोमे बड़ सुन्दर लागल।
चन्दु मालिक प्रसन्न भऽ सोचए लगला जे एतेक सुन्दर काज लोक छोड़ि किए देलक?
चन्दु मालिक सौंसे गामक लोककेँ दुपहरियामे अपने दरबज्जापर बैसा कऽ कहलखिन-
“जेहेन समय भऽ गेल अछि तइमे शुद्ध खाद्य भेटब कठिन अछि। मनुखकेँ अपन काजपर भरोस करए पड़त। तखने शुद्ध चीज-वौस प्राप्त हएत। सभ कियो अपन-अपन गाए-महींस पोसू तखन शुद्ध दूध-दही आ घी मिलत। अपन हाथक कुटल-पीसल चाउर-चूड़ा-आँटा इत्यादि उपयोग करू। अपनासँ सेरसो-तोड़ीक तेल पेराउ तखने शुद्ध तेलसँ भेँट हएत। शुद्ध खाद्य खेलासँ निरोग काया रहत। आइ जे एते रंग-बिरंगक रोग-व्याधि पनैप रहल अछि एकर कारण ईहो सभ अछि जे शुद्ध खाद्यसँ हम-सभ दूर भऽ रहल छी। अपना हाथे काज केलासँ बेकारी सेहो दूर हएत। अपन पूर्वज लोकैन अहिना जीबै छला। ऐ सभ काजसँ एक-दोसराक सहयोग होइए आ समाजमे एकता आ प्रेम सेहो बढ़ैए। लोको स्वावलम्बी आ आत्मनिर्भर बनि असली जिनगी जीबैए। जहिना गाममे रबिया-बुधना काठक कौल्हु बैसा अपन रोजगार ठाढ़ केलक आ अपना मेहनतक बदौलत जिनगीकेँ खुखहाल बनौलक तहिना गाम-समाजमे तेतेक रंग-रंगक काज अछि जइमे लोक मेहनत करए तँ गाम-समाज खुशहाल भऽ जाएत। गामक लोक जे कमाइ खातिर घर छोड़ि बाहर जाइए से ने जाए पड़त।”
चन्दु मालिकक बात सुनि लोक सभ काज करैक संकल्प लेलक। सभ कियो थोपरी बजा चन्दु मालिककेँ बातकेँ सम्मान केलक।
शिबु काका रबिया-बुधनाकेँ कमासुतनी लड़की खोजि बिआह कराए देलखिन। दुनू भाँइ मिलि आब कौल्हुक जगह लोहोबला तेलपेरा मशीन कीनि लेलक। आब काजो बढ़ि गेल छेलइ। दुनू पुतोहुओ घरक काज सम्हारि लेली।
– राम विलास साहु