मैथिली साहित्यकार डॉ शिव कुमार प्रसाद की रचनाएं और जीवन परिचय

लेखक परिचय

नाम: डॉ. शिव कुमार प्रसाद

राष्ट्रीयता : भारतीय

जन्म स्थान : सिमरा, झंझारपुर, मधुबनी, बिहार।

माता : स्व. यमुना देवी, पिता : स्व. निर्धन प्रसाद।

शैक्षणिक योग्यता : स्नातकोत्तर (हिन्दी)

पटना विश्वविद्यालय, पटना। बी.एड, पी-एच.डी।

व्यवसाय : एसोसिएट प्रोफेसर एवम् अध्यक्ष- हिन्दी विभाग, हरि प्रसाद साह महाविद्यालय- निर्मली, (भू.ना. मण्डल विश्वविद्यालय, मधेपुरा- बिहार)

कृति : 1. भाव-अनुभाव (हिन्दी काव्य संग्रह),

2. पघलैत हिमखंड (अनुदित काव्य संग्रह, यंत्रस्त),

3. अनुचिन्तन (मैथिली प्रबन्ध-निबन्ध संग्रह),

4. आलेख प्रकाशित- हिन्दी साहित्येति इतिहास में ऊर्दू साहित्य।

5. मैथिली और हिन्दी साहित्य में नागार्जुन का योगदान।

पता : ग्राम+पोस्ट- सिमरा, भाया- झंझारपुर,

जिला- मधुबनी, (बिहार), पिन- 847404

 

 

 

रचनाएं

तोड़ि ले सिनेह आइ

नुनूक दुलारसँ

बहिनक मनुहारसँ

सखी बहिनपा

खढ- खड़िहानसँ

आँगन दलानसँ

चुल्हि-चिनवारसँ

माटि आ गोबरक

ढ़ौरल देवालसँ

काकीकेर छातीक

हहरैत सिरहानसँ

भौजक अखियासैत

ननैदक सनोमानसँ

भाइकेर दुलार फेर

बापक सिनेहसँ

मायकेर फाटैत

छातीकेर भाथी

झहरैत मेघसन

आँखिक टघारसँ।

अदौसँ टूटैत रहलै

अहिना सिनेह सूत

बेटी जे भेलै ओकर

घर कहाँ बनलै

जनमसँ बापक घर

विवाह बाद वरक घर

बेटाक घर संगे

लेबैत साटैत टाट जकाँ

टाटीये पर जेतै।

अपनहि करी उपाय

नहि अछि मुक्ति

मानव दानव सँ

किनका लग

हम जाय

पुरुष जनानी

ऊँच नीच सभ

अपने लेल

करथि उपाय।

अपनहि लेल

सभ बाट बनाबथि

अनका पर धरि पैर

पैरक तर सँ

तकैत अकिंचन

रहलहुँ सदैत

निरुपाय।

जिनका सेवल

गाछ बुझि हम

केलनि ओ एकहि काम

अपन बेगरता

देखैत रहलाह

हमरा बेर

परथि वेराम

परल छी जुग जुग

सँ निरुपाय।

 

 

जमीला

1.

अगियाएल मन कन घमले छेलै कि कनियाँ बिअनि नेने ठाढ़। सुमनजी तम-तमा गेला। अबते जँ पत्नी बिअनि नेने ठाढ़ भेली कि बुझू जे हुनक चरखा शुरू। शुरू भाइए गेली-

“अँए यौं! आर कियो नोकरी करै छै कि नहि। हमरा तँ लगैत अछि जेतेक दरमाहा अहाँक औपिसमे अबै छै सभटा अहींकेँ भेटि जाइत अछि…।

…हे कियो काज नइ देत।”

सुमनजी की बजता। सभ दिन एके खिस्‍सा। ऑफिसमे सभ काज करै छै मुदा सुमनजीक कुशल, कर्मठ आ दृढ़ व्‍यक्‍तित्‍वक सोझा सबहक माथ झूकले रहै छै। चामक पूजासँ कामक पूजा पैघ होइ छै। ऐ बातक प्रत्‍यक्ष प्रमाण सुमनजी छथि। हुनक सहकर्मी संगे-संग हुनक पदाधिकारीओ सुमनजीकेँ सम्‍मान दइ छथिन। मुदा पत्नी लेल धैनसन।

सुमनजी बजला-

“हे यै, एक गिलास जलो तँ नेने अबितौं! के काज देत। यै, जिनगी भरि तँ अहाँ आ अहाँक बाल-बच्‍चा लेल कमा-कमा कऽ देलौं से तँ एक गिलास पानियोँ नदारत अछि। फेर आनसँ हम की आशा करब।”

पत्नी मुँह फुलौने घरसँ निकलि बेटीपर फुफकार छोड़ऽ लगली कि तावत रस्‍तापर हो-हल्‍ला हुअ लगलै।

सुमनजी कपड़ो ने बदलने रहथि। ओ ओहिना दरबज्‍जा दिस विदा भऽ गेला। पत्नी सेहो पाछू-पाछू दरबज्‍जापर एलखिन। बीच सड़कपर सौंसे टोलक जनानी-पुरुखक करमान लागल छल। बीचमे कोनो जनानी कानि-कानि कऽ नगरक लोककेँ बिखैन-बिखैन गारिसँ असिरवाद दैत अल्‍ला निसाफ करतौ, अल्‍ला निसाफ करतौ…। कहैत बीच सड़कपर पड़ल छल।

सुमनजी चकित। ई अल्‍लावाली स्‍त्री केतएसँ टोलपर आबि गेल। कोनो चोरनी ने तँ छी…।

…ई सोचिते छला कि पत्नी हाथ पकड़ि कहलखिन-

“चलू-चलू, कथीले गारि सुनब। ई छुतराही केकरो ने छोड़तै। जे जेहने करम करत ओकरा ओहने ने फल भेटतै।”

सुमनजीकेँ किछु भाँज नै लगलनि। परंच ई अबस्‍स बुझना गेलनि जे कोनो विशेष बात अबस्‍स छइ। ओ चुप-चाप पत्नी संग अँगना आबि गेला। ऑंगन अबिते बेटी माएपर बाजलि-

“एतेकाल फुफकार कटै छेलेँ जे एक लोटा पानियोँ ने बाबूकेँ देल होइ छौ, हम पानि लऽ कऽ ठाढ़ छी आ दुनू गोरे तमाशा देखऽ चलि गेलेँ।”

सुमनजी बेटीक बात सुनि झमा कऽ खसला। कियो कम नहि। जल की पीता। बेटी दिस तकैत हतास् भेल अपन कोठरी दिस विदा भऽ गेला। मन तँ भेलनि जे बेटीक हाथसँ लोटा लऽ जुमा कऽ बाड़ीमे फेकि दी, मुदा फेर अपनाकेँ रोकला आ ओहिना बिछौनपर निढ़ाल भऽ पड़ि रहला।

बेटी टेबुलपर लोटा रखि चलि गेलनि। पत्नी पतिक मुँहक भाव देख नेने छेलखिन। भयसँ हुनका लग नहि एलखिन। हुनका बुझबामे कनिको भाँगठ नै रहलनि जँ अखन अगर लगमे जेबनि तँ निश्चित लोटा पानि समेत बाड़ीमे चलि जेतै।

सुमनजी बहुत सोझ आ शान्‍त बेकती। किनको किछु अधला नै करता। किनको श्राद्ध आकि बिआहमे मदति करैले सदिखन तत्पर। हुनका लेल कियो आन नहि। बाल-बच्‍चा तँ हुनक प्राण। मुदा जखन क्रोध अबै छन्‍हि तँ कियो हुनका सामने जाइक साहस नइ कऽ सकैत अछि। एकटा माए आ बाबूएजी एहेन छथिन जिनका सोझा सुमनजीकेँ कोनो वश नइ चलै छन्‍हि। अपन जनमदाताक प्रति हुनका अगाध श्रद्धा छन्‍हि।

सुमनजीक भाव-धारा पुन: रस्‍ता दिस बहऽ लगल। की बात छिऐ..? ओ जनानी के..? किए सौंसे टोलक लोक जमा भऽ ओइ अवलाकेँ मारि रहल अछि..? ओ कोन कारणे ‘अल्‍ला’केँ गवाही रखि सैंसे टोलसँ लड़ैले तैयार अछि..? जरूर कोनो असाधारण बात अछि। पुन: सभ बातसँ अलग सिरमापर माथ देने छतकेँ निहारऽ लगला।

पत्नी चुप-चाप तावत् टेबुलपर चाह आनि कऽ रखि देने छेलखिन। हुनकर मुँहक भाव सेहो बदलि गेल छेलनि। सुमनजीकेँ कहलखिन-

“कपड़ो ने बदललौं। चाह पीब लिअ, फेर कपड़ा बदलि लेब। अलगनीपर सभटा कपड़ा राखल अछि।”

पुन: अलगनी दिस तकलथि तँ ओइपर गमछा नइ छेलै। ओ पुन: घरसँ बाहर निकलि गमछा नेने घरमे एलखिन। तावत् सुमनजी बिछानसँ उठि चाह पीबै छला।

पत्नी गमछा बिछानपर राखि पान लगबऽ लगलखिन। सुमनजी बिछानसँ उतरि कपड़ा बदलैमे व्‍यस्‍त भऽ गेला। पत्नी पानो लगबै छेलखिन आ कनडेरीए आँखिए पतिपर तकितो रहथिन। पति चुप-चाप कपड़ा बदलैत रहला। पत्नी पतिकेँ किछु बतबैले उताहुल छली मुदा साहसे ने होइ छेलनि। ओ सोचि-विचारि कऽ पतिक हाथमे पान दैत बजबाक असफल प्रयास केली मुदा पति केर भाव नै पाबि चुप-चाप घरसँ निकलि गेली।

सुमनजी कपड़ा बदलि पुन: अपनेसँ पान लगा खा लेला आ चुप-चाप आँगनसँ बाहर निकलि गेला। रस्‍तापर तमाशा समाप्‍त भऽ गेल छेल। ओ टहलैत खेत दिस निकलि गेला। 

 

2.

बाधमे दोसर गामक एकटा किसानसँ भेँट भऽ गेलनि। हिनका देखिते ओ प्रणाम करैत पुछलखिन-

“की यौ सुमनजी, अहाँ तँ खेत-पथार बिसरिये गेलौं। कहियो देखबो ने करै छी। आ लोक खेत दिस एबो किए करत। दू सालसँ एकटा अन्न केकरो खेतमे नै उपजि रहल अछि।”

सुमनजी ओइ किसानकेँ थाहैत लगमे जा बजला-

“कहू-कहू की हाल अछि खुशी भाइ। खेती-पथारीक की हाल अछि?”

खुशीलाल बाजल-

“की हाल रहत। कहुना अहुबेर चिचोरि-मिचोरि कऽ धान रोपि देलिऐ। आशा तँ नहियेँ अछि। तैयो रोपि देलिऐ…। हम सभ आब नोकरीओ तँ कऽ नइ सकै छी।”

पुन: फुसफुसा कऽ बाजल-

“सुमनजी, एकटा बात पूछी?”

खुशी भाइक फुसफुसाहटिपर सुमनजीक कान ठाढ़ भेलनि। सहटि कऽ खुशीलालक लग आबि पुछलखिन-

“की बात यौ!”

खुशीलाल ओहिना फुसफुसाइत बाजल-

“अहाँ टोलमे सुनलौं जे मुसहरवाक बेटा एकटा जोलाहिनसँ बिआह कऽ गामपर अनलक अछि।”

सुमनजीकेँ धक् दऽ मोन पड़लनि। ओ… जनु एकरे झगड़ा होइ छेलै…। खुशीलालकेँ कहलखिन-

“अँए यौ, अहाँकेँ ई बात बूझल अछि? हमरा तँ किछु ने बूझल अछि! अखनो रस्‍तापर हल्‍ला-गुल्‍ला होइ छेलै। वएह-वएह ओकरे झगड़ा होइत हेतैक।”

खुशीलाल बातकेँ आगू बढ़बऽ लागल। सुमनजीकेँ असली बात बुझबामे आबि गेलनि। अपन गामक निन्‍दाक बात सोचैत सुमनजी खुशीलालकेँ कहलनि-

“छोड़ू ऐ बात सभकेँ। केकरा की कहबै। और सुनाउ बाल-बच्‍चा केना अछि। की कऽ रहल अछि। यौ सुनलौं अहाँ-कनियाँकेँ मन खराप भऽ गेल छल। ठीक भेली किने।”

खुशीलाल अपन घरवालीक बात सुनिते बाजल-

“यौ सुमनजी, ओ पूर्वजन्‍मक पुनेक कारण बँचि गेली। नइ तँ मरबामे कोनो भाँगठ नहि रहि गेल छेलनि। काल्हि आऊ ने, देखियो लेबनि।”

सुमनजी ‘हूँ-हूँ’ करैत घर दिस घूमि गेला। गाम-घरक कोनो बात छपित रहि केना सकैत अछि…।

दोसर दिन सुमनजीकेँ छुट्टीए रहनि। घरसँ चाह पी कऽ एकटा मित्रक घरपर विदा भेला। रस्‍तेमे एकटा दरबज्‍जापर परचित-अपरचित सबहक अड्डा जमल छल। सुमनजी सेहो धरा गेला। एकटा नेताजी सेहो हुनका सबहक बीच विराजमान रहथिन। बैसला बाद पुन: चर्चा शुरू भेल।

मुसहरबा गामक एकटा किसान छल। विधाता ओकरापर दहिन छेलखिन। मात्र आठे-गोट बेटा देलखिन। आरो होइतै तैयो ओकरा खुशीए होइतै। जर-जमीन तँ मुसकिलसँ दू बीगहा छै। दोसर-तेसर गिरहतक जमीनमे बटाइ करि कऽ गूजर-बसर करैत अाबि रहल अछि। एक जोड़ा बरद, दूटा भैंस, गाए, बकरी सभटा आमदनीए। जखनि समरथ छल, केहनो काजकेँ किछु ने बुझै छल। घरवाली सेहो विधाता दहिन भऽ कऽ देलखिन। हऽर-कोदारि छोड़ि एहेन कोनो काज नै अछि जे ओ नहि कऽ सकैए। तेहने काया, तेहने रंग आ तेहने रूप। जखन मुसहरबाकेँ दुरागमन भेल रहै ओही समए ओकर पत्नीकेँ देखबा लेल ओकरा अँगनाक टाटमे केतेक भूर भेल से गनब कठिन छल। मुसहरबाक माए सभ दिन दसटा गारि दऽ टाटक खरही सभकेँ ठीक कऽ दैत रहए, मुदा दोसर दिन फेर ओहिना-क-ओहिना।

गेल जवानी फेर ने लौटए। अठ-अठटा बेटाक जनम दइवाली जनाना आ पुरुखक धीरे-धीरे परिवारक लगाम ढील होइत गेलै। एकटा, दोसर, तेसर पुतोहु तक तँ कहुना मुसहरबाक कनियाँ बेटा-पुतोहुकेँ बान्‍हि कऽ रखलक मुदा चारिम पुतोहुकेँ अबिते वेचारी हाफऽ लगली। जखन छोटकीक मुहसँ लुत्ती-उड़ए लगै, तँ मात्र मुसहरबे दुनू परानी नहि समुच्‍चा परिवारक लोक तेना ने दगैत छल जे सभटा मलहमो जरि जाइ छेलै।

एक दिनक बात छी। सुमनजी मुसहरबाक पड़ोसीक ओइठाम कोनो काजे गेल छला। बैसले छला कि मुसहरबाकेँ अँगनासँ वएह लुत्ती उड़ब शुरू भेल। लुत्तीक जवाब आगि-अँगोरासँ देल जाइत रहै। आब लुत्ती आ अँगोरामे अपन घरकेँ के कहए जे पास-पड़ोसक संगे संग एक-एकटा जाति-अजातिक संग कोन-कोन सम्‍बन्‍ध ने उजागर होमए लगल। मुसहरबाक अँगनामे तिल रखैक जगह नहि। अचानक कुट्टा-कुट्टी शुरू भेल। तीन दियादिनी एक तरफ, छोटीक असगरे एक तरफ। अँगनामे ठाढ़ पुरुख-पात्र लाजे ओतएसँ भागल। धरहरिया करैवाली सभ थाकि कऽ कात भऽ गेल। गइ सँइकटनी, गइ बपडाही, गइ सौतिन, आर की की नहि…।

आइ मुसहरबाक परिवारक गाड़ीक कनैल, पालोक संग-संग चक्का, धूरी सभटा टुटि-फुटि कऽ नाश भऽ गेलै। मुसहरबा जीविते अछि। पत्नीओं जीविते छै। बेरा-बेरी बेटा-पुतोहु भीन होइत गेलै। आइ सभसँ बुरबक बेटा-पुतोहुक संग कहुना जिनगी काटि रहल अछि।

मुसहरबाकेँ बेटाक विषयमे सोच छेलै जे भगवान बेटा दइ छथिन तँ हम रोकैबला के। जीतै तँ बोइन कऽ कऽ खेतै। सभटा बेटा ठीके बोइन कऽ कऽ जीब रहल छै। कियो पंजाब, तँ कियो दिल्‍ली आ कियो गामेमे। मुदा पुछैबला कियो ने।

एकटा बेटा परसाल गामेमे रहि एकटा भट्ठापर ईंटा बनबऽ गेल। ओतै एकटा जनानी जमीला सेहो रेजाक काम करैत छेलै। छौड़ा देखऽमे सुन्‍दर, लम्‍बा आ मजगूत देहक छेलै। धीरे-धीरे दुनूक बीच पेंच फँसि गेलै। ओकर नाओं रखि दियौ ‘पंचा’। तँ पंचा आ जमीलाक बीच शारीरिक सम्‍बन्‍ध भेलाक कारणे ओकरा गर्भ भऽ गेलै। जखन मामला उजागर हुअक स्‍थिति भेलै तँ दुनू परा कऽ बाहर भागि गेल। ओतै गर्भपात करबा कऽ दुनू फेर कामो-काज करए लगल।

पंचाकेँ दूटा बाल-बच्‍चा भऽ चुकल छेलै। जमीलाकेँ सेहो तीनटाबाल-बच्‍चा। जमीलाक घरबला एक-दू बर्ख पहिने छोड़ि कऽ भागि गेल छेलै। ओअपन माइक संगे रहैत छल। आब दुनू बेक्‍ती भट्ठापर कमाइत छल। दुनू अपन-अपन घरपर बाल-बच्‍चा लेल रूपैआ-पैसा सेहो पठबैत छल। ऐ क्रमे एक-डेढ़ बर्ख भऽ गेल। दुनूकेँ अपन-अपन बाल-बच्‍चाकेँ देखना बहुत दिन भऽ गेल छेलै।दोसर जमीला जेतेक पाइ कमाइ छल ओ बैंक वा पोस्‍ट-ऑफिससँ भेजैले पंचाकेँ दइ छेलै।

फोनपर जमीला जखन पाइ दऽ पुछै छेलै तँ बड़की बेटी कोनो बेर सही कोनो बेर कम बतबैत छेलै। धीरे-धीरे जमीला बूझि गेल जे ई मुनसा हमर पाइ अपन घरपर पठा दइए, या रखि लइए। आब ओ पंचापर गाम जेबा लेल जोर देमए लगल। पंचा कहुना-कहुना ओकरा पोल्हबै छल मुदा जनानीओं कम खेलल नहि छल। अन्‍तमे दुनू गाम लेल विदा भेल। दुनूमे शर्त भेलै जे हम ने तोरा ओइठाम जेबो आ ने तों हमरा ऐठाम जेमे। दुनू गोटे अपन-अपन बाल-बच्‍चाक संगे दस दिन-मास दिन रहि फेर घूमि जाएब।

गाम एलापर बात बिगरि गेलै। जमीला गामपर आबि कऽ जे पाइ-कौड़ीक हिसाव केलक तँ पता चललै जे ओकर कमेलहा ५५-६० हजार रूपैआ पंचा बेइमानी कऽ लेलकै। ओ जनानी पहुँचल पंचा गामपर आ एमहर पंचा घरसँ फरार। टोलपर मेला लगि गेल। जमीला पहिने तँ पाइक बात कहलकै। फेर पंचाकेँ अपन घरवला घोषित कऽ देलकै। पंचाक अँगनामे ढुकि एकटा घरक ओसरापर जा कऽ बैसि रहल। पंचाक भौजाइ संगे-संग सौंसे गामक जनानी एक दिस आ पंचाक तथाकथित मुसलमानि पत्नी एक दिस। आब जमीला कहै-

“जाबत मुनसा गामपर नहि औत ताबत हम ऐ ओसरापरसँ नहि उतरब।”

पंचाक घरवाली आ बाल-बच्‍चा संगे-संग आन भाए-भौजाइकेँ पहपटि भऽ गेल। की करी की नै। भरि दिन जमीला ओसारपर बैसल रहल आ अँगनामे रहनिहार सभटा धीरे-धीरे अँगनासँ बाहर भऽ गेल।

पंचाकेँ सेहो खबरि कएल गेल मुदा ओ किए औत। साँझ भेलापर जमीला जे से बजैत अपन घरपर चलि आएल। गामक लोक सेहो निसाँस छोड़लक। रातिमे मुसहरबापर पंचायत बैसल।

“तोहर बेटा मियनि संग बिआह केलकौ तँए नै एलौ। बेटाकेँ बजा। कोनो बात अबस्‍स छै।”

मुसहरबा कहलकै-

“हौ पंच सभ। तों सभ हमरा किए कहै छह। पंचाकेँ भीन भेना सात बरख भऽ गेलै। आब ओ हमरा बसमे अछि? ओही छौड़ाकेँ पुछहक। हम तँ नचार छी। कहुना जीबै छी। ओकर घरवाली छै। कहक पुछतै।”

पंचाक घरवाली एतेक लोकमे की बजतै। गुड़क मारि धोकरे जनै छै। ओकरा छाती अपने हहरै छै। तीनिटा धिया-पुता। तहूमे एकटा बेटी। सौतिन मुसलमानि। ओकरा आँखिक नोर नइ सुखा रहल छै। जे से बाल-बच्‍चाकेँ ताना मारै छै। नवकी माए एलौ रौ? की सभ अनलकौ? पंचैतीमे सभ मुसहरबाकेँ दोमैत रहल। ओ सभ बात सुनि कऽ चुप्‍पे रहल।

पंचाक घरवाली अपना माए-बापकेँ फोन करैलक। सभटा बात कहलकै। भाए सभ ओकर पीट्ठा-पहलवान। बहिनकेँ ढाढ़स देलकै। भोरे दूटा भाए एलै। सभटा बात सुनलकै। गौआँकेँ फेर बैसार भेल। बैसार शुरूए भेल छेलै कि पंचाकेँ ओ नवकी कनियाँ फेर दरबज्‍जापर पहुँचगेलै। पंचाक सार संगे-संग सभटा नवतुरिया पंचैती छोड़ि जमीलाकेँ घेर लेलक। ओकरा एक आदमी पुछलकै-

“तों हिन्‍दू बनबीही तँ पंचा राखि लेतौ।”

ओ जनानी कहलकै-

“एनुका चान ओनए किए ने चलि जेतै मुदा हम हिनू नइ बनबै।”

एतबा बात निकलिते पंचाक सार चटाक् दऽ जमीलाकेँ मुँहपर थापड़ मारि देलकै। थापड़ लगिते जनानी जमीनपर बैसैत-बैसैत ओंघरा गेल। किछु आदमी पंचाक सारकेँ अलग केलक। ताबत् लोक देखलकै जे जनानी बेहोश छै। पंचाक घरवाली दौग कऽ पानि अनलक आ ओकरा मुँहपर हाथसँ छिच्‍चा देबए लगलै। थोड़ेकालमे ओइ जनानीकेँ होश एलै। साड़ी खुलि गेल रहै ओकरा देहमे लटपटबैत गारि दैत ओ थाना जाइक बात कहैत विदा भऽ गेल।

थानाक नाओं सुनिते टोलबैया अपन-अपन अँगना दिस विदा भऽ गेल। मुसहरबा अँगनाक जर-जनानी सभटा अपन-अपन नहिरा दिस विदा भेल। पंचाक सार सेहो अपन बहिन आ भगिनीकेँ लऽ विदा भऽ गेल। एकटा बेटा जे बारह-तेरह बर्खक रहए ओकरा माल-जाल देखैले छोड़ि देलकै। मुसहरबा दुनू परानी टुकुर-टुकुर देखि रहल अछि। सुनि रहल अछि। ओइ मादे बलु सोचितो हएत। अँगनामे मात्र दूटा पोता छै। बेटो सभ किछ-मिछ खा कऽ बाध-बोन दिस टरि गेल। 

 

3.

कथा अनसोहाँत तँ ने लगैए? चलू कथा तँ बड़ ओझराएल अछि मुदा ओ ओझरीसँ निकालि कऽ हमहूँ निस्‍तार पाबए चाहै छी।

जमीला ठोकले थाना पहुँचल। संगमे माए आ एकटा छोटका बेटा सेहो रहै। सभटा खिस्‍सा कहैत ओ दरोगाजीकेँ पंचाक गामपर जेबाक जिद्द करऽ लगलै। जनानीबला बात। दरोगा ओइ जनानीकेँ टोलक चौकीदारकेँ बजबेलक। पंचाक गामक चौकीदारकेँ बजा पंचाक घरसँ बजबैले पठेलक। जखन जमीलाक बारेमे चौकीदारसँ दरोगा जिज्ञासा केलक तँ ओ साफ-साफ दरोगाजीकेँ बता देलकै जे ई जनानी ओही लाइक अछि।एकरा संगे जे भेलै से उचिते भेलै। ऐ जनानीक इहए धंधे छै।

दरोगाक सामने अपन चरित्रपर चौकीदार द्वारा देल गवाही ओकरा उत्तेजित कऽ देलकै। ओ दरोगाकेँ सोझहेमे गारि दैत चौकीदार दिस झपटल। मुदा ओकर माए आ बेटा कहुना ओकरा रोकलक। तावत पंचा गामक चौकीदार सेहो घूमल। पंचाकेँ भागब आ गामक खिस्‍सा कहैत ओ सेहो अपन विचार दरोगाजी लग रखलक। सभ बात सुनि दरोगाजी जमीलाकेँ दोसर दिन थानापर एबाक बात कहि डॉटि-डपैट कऽ कहुना घर पठेलक। दरोगाजीकेँ बुझैमे बहुत किछु आबि गेलनि। मुदा पंचोकेँ दोख तँ छइहे।

दोसर दिन जमीला भिनसरे थानापर पहुँचल। दरोगाजीकेँ पंचा ओइठाम चलऽ लेल जोर देमए लगलै। ऐ बीचमे पंचाक तरफसँ कियो दरोगाजीकेँ दुआ-सलाम कऽ कऽ सम्‍हारि गेल छल। दरोगाजी एमहर-ओमहर करैत जखन एक घण्‍टा बिता देलखिन तँ जनानी अचानक थानाक ओसरापर चढि ओइठाम राखल दू-तीनटा प्‍लाष्‍टिकक कुर्सीकेँ उल्‍टैत दरोगेजीकेँ धमकी दैत कहलकै-

“अगर अहाँ नइ जाएब तँ हम अखने डी.एस.पी. पुलिस लग जाएब। अहाँ हिन्‍दू छी तँए हिन्‍दूक पक्ष लइ छिऐ।”

एकटा सिपाही ठेंगा लऽ ओकरा दिस हूरकल मुदा दरोगाजी रोकि देलखिन। फेर किछु सोचैत सिपाही सभकेँ संग लगा जनानीकेँ गाड़ीमे बैठा पंचाक घरपर विदा भेला।

पंचा नइ छल। टोल-पड़ोसक धिया-पुता संग पुरुख-जनानीक भीड़ लागि गेल। दरोगाजी दू-चारि आदमीसँ पूछ-ताछ केलखिन। कियो जनानीक पक्षमे नइ ठाढ़ छेलै। सबहक सोझामे दरोगाजी अल्‍लावाली जनानीकेँ पुछलखिन-

“तों की चाहै छेँ?”

ओ कहलकै-

“पंचाकेँ हमरा अपना घरमे बौह बना कऽ राखऽ पड़तै।”

बिच्‍चेमे एक आदमी बाजल-

“हँ रखतौ मुदा तोरा हिन्‍दू बनऽ पड़तौ, दोसर बात तों अपन बाल-बच्‍चाकेँ एतए नहि आनि सकै छें। तेसर बात जँ तोरा पंचा घरवाली बनेतौ तँ तों जिनगीमे कहियो जोलहटोली नहि जा सकै छेँ। छौ मंजूर तँ दरोगाजीकेँ सामने कागज बना। हम सभ तोरा पंचा संग रखैले तैयार छियौ।”

सुमनजी ऐ कार्यक्रमक दर्शक छला ने सलाहकार। मुदा समाजमे ऐ तरहक घटनासँ अत्‍यन्‍त चिन्‍तित छला। दस आदमी। दस तरहक बात। मुदा ऐ तरहक घटना समाजक संस्‍कृतिक लेल स्‍वास्‍थ्‍यप्रद नहि। दरोगाजी जमीलाकेँ पुछलखिन-

“जब तों दुनू समाजकेँ बन्‍हनकेँ तोड़ि ऐ तरहक कर्म केलहिन तखन दुनू गोरे सजाक भागी छेँ। तों धर्म नहि छोड़बिही, बाल-बच्‍चाकेँ नइ छोरबिही।जखन तों जोलहटोली जेबे करबिही तखन बिआह सम्‍बन्‍ध केना भऽ सकै छौ?”

समाजक लोककेँ दरोगाजी कहलखिन-

“अहींक समाजक पंचा छी। अहाँ ओकरा बजा समाधान करू। जावत् ओ नहि अबैत अछि तावत् एकर समाधान नहि होएत।”

फेर जमीला दिस घूमि कऽ कहलखिन-

“जे तोरा संग रहतौ ओ भागल छौ। तों ओकर पता कर। दुनू गोरेक कारणे अगर समाज परेशान हेतौ तँ तोरा दुनूकेँ समाजो दण्‍डित करतौ। आ सरकारो समक्ष दण्‍डित हेमेँ।”

जमीला बाजल-

“हमरा पंचासँ मतलब अछि। हम पंचाकेँ कारणे बौआइ छी। समाज हमरा किए मारत? समाज निर्णए करऽ पड़तौ।”

दरोगाजी दू दिनक समए दऽ चलि गेला। गेला बाद जमीलाकेँ कहल गेल, जे काल्हि भिनसरमे तूँ आ। अपना संग जेकरा आनबाक हउ सेहो नेने आ। पंचैती हेतौ। पंचा जेतए नुकाएल छल ओकरा समाद दऽ बजाएल गेल।

आइ दुनू समाजक बीच पंचा आ जमीला दुनू बैसल अछि। पंचा समाजक सामने जमीलाक कथनकेँ स्‍वीकार केलक। समाजक एकटा आदमी ओकरा दू-चािर थापड़ मारबो केलकनि। मुदा आर लोक बीच-बँचाउ केलक। बादमे पंचाकेँ पूछल गेल जे ओ की चाहैए।पंचा चुप। जमीला चुप। अन्‍तमे पंच निर्णए देलक-

“दुनू जे काज केलेँ से अनुचित अछि। तीन-तीनटा बाल-बच्‍चा रहैत तोरा सबहक कर्म नींदनीय छौ। तों दुनू धर्म समाज, जाति आ परिवारक विध्‍वंसक छेँ। पति-पत्नीक रूपमे तोरा दुनूकेँ रहब सम्‍भव नहि।”

पंचाक पत्नी आ बाल-बच्‍चा जमीला आ ओकर तीनटा बाल-बच्‍चाकेँ स्‍वीकार नहि कऽ सकैत अछि। धर्म आ जातिपर सेहो एकर प्रभाव पड़तै। तँए अगर पंचा मुसलमान भऽ जमीलाक संग चलि गेल तँ ओकर बाल-बच्‍चाक भार के लेतै? तोरा दुनूक ऐ सम्‍बन्‍धसँ धार्मिक विवाद भऽ सकैत अछि। मुदा हम सभ से नै होमए देलिऐक।

समाजक निर्णए भेलै जे तों दुनू काल्हि भोर होइसँ पहिने गाम छोड़ि दे। जमीला पंचाक घर भविसमे कहियो ने आबि सकैत अछि। पंचा कहियो जमीलाक घर नइ जा सकैत अछि। गामक बाहर तों भलहिं पति-पत्नी बनि रह मुदा गाममे दुनू संग-संग पएर नहि राखि सकै छेँ। अगर समाजक बात नहि मानमें तँ आगू तों सभ अपन बाल-बच्‍चाक संग अपनकेँ जातिसँ बहिस्‍कृत बूझ।

कागतपर हिन्‍दू आ मुसलमान दुनू तरफसँ पाँच-पाँच आदमी चारि फर्द कागत बनेलक। चारू फर्दपर पाँचो पंचक संग जमीला आ पंचासँ निशानक संग संग सही कएल गेल। दूटा फर्द पंचा आ जमीलाकेँ देल गेलै। एकटा पंचाक गामक पंच रखलक। पंचा आ जमीला चुपचाप कागत लऽ ओतएसँ विदा भऽ गेल।

आइ धरि पंचा गाम नहि आएल। ओकर बाल-बच्‍चाक संग पत्नी पंचाकेँ भेजल पाइ अथवा अपने बुतापर जीब रहल अछि।

जमीला आइ धरि गाम नहि घूमल। जमीलाक बाल-बच्‍चा सेहो जमीला अथवा अपन नाना-नानीक संग जीब रहल अछि।

            – डॉ. शिव कुमार प्रसाद

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