मैथिली साहित्यकार अच्छेलाल शास्त्री जी की रचनाएं एवं उनका परिचय

लेखक परिचय

नाम: अच्छेलाल शास्त्री, जन्म तिथि : 02 फरवरी 1956 इस्वी, शिक्षा : शास्त्री। माता-पिता : स्व. कल्याणी देवी, स्व. विलट, काका-काकी : स्व. सुवंश आ स्व. रामरती देवी (इनरबा), पत्नी : श्रीमती उमा देवी, बहिन : श्रीमती कालिका, सीया, सीता आ रीता, पुत्र : ओऽम् प्रकाश, राम प्रकाश आ श्याम प्रकाश, भातीज : शंकर, पौत्र : गौतम, रोशन आ अभिनन्दन, पौत्री : स्वाती आ नन्दनी, पैतृक गाम : धवही लक्ष्मीपुर (नरहिया), जीविकोपार्जन : कृषि, कथा वार्ता, अन्य कार्य : आकाशवाणी, दूरदर्शन (बिहार), एफ.एम. (नेपाल) सँ वार्ता, कविता, पत्रिका- अर्चना, विदेह आ विदेह-सदेह आ मिथिला दर्पणमे रचना प्रकाशित। सांसद मंत्री एम.एल.ए. केर सुझावदाता। 1968 इस्वीसँ पर्यावरण रक्षार्थ रचनात्मक कार्य वृक्षारोपन आदि। संगोष्ठी कार्यक्रम : कवि सम्मेलन, कथागोष्ठी खासकए ‘सगर राति दीप जरय’मे नियमित रूपेँ सहभागिता।

प्रकाशित कृति : सद्य ‘सुनू देखू करू विचार’ काव्य संग्रह। अप्रकाशित कृति : 01. मिथिलाक महत्व, 02. मुक्तिनी, 03. आदर्श भारत- नाटक। 04. मिथिलाक पुकार- काव्य संग्रह। 05. उठू देखू चेत चलू, 06. आजादीक मतलव, कल्पनाक देशमे, 07. अतीत-वर्तमान- कथा संग्रह। 08. आजाद-भारत (पत्र संग्रह)

सम्पर्क : गाम- सोनवर्षा, पोस्‍ट- करहरी, भाया- नरहि‍या, जि‍ला- मधुबनी, (बि‍हार)

 

रचना

पाँच टा कविता 

 

हरबाह

चलल जोतए हरबाह खेत।

खेतक ताल मनहि अभिप्रेत।

कान्ह हर लऽ हाथ पेना।

हॉंकि बरद ओ गोला मेला।।

 

रमकल बरद खेतपर जाए।

बाटोमे किछु खाइतो जाए।

खेत पहुँच ओ बान्हि ऑंतर।

गीत गबैत जन चौरी-चॉंचर।

 

हरबाह छै हाथक कड़गड़।

जोति रहल अछि हर ओ तड़गड़।

जोड़-जोड़सँ गाबैत गीत।

चीरने खेतकेँ बीते-बीत।

 

हर जोतलासँ लागल भूख।

के बुझत आइ ओकर दु:ख।

हवा शान्त अछि रौद प्रचण्ड।

भूख प्याससँ अछि जरैत कण्ठ।।

 

तैयो धेने अछि हरक बानि।

छाता नहि अछि जे लैत तानि।

ऑंगनमे अछि रोटी पकैत।

हरबाह रहि-रहि बाट तकैत।

 

बुचनी माएकेँ लागल देरी।

की विधाता लगौलैन फेरी।

नेना दूध-भात लए कानए।

नून रोटीसँ ओ नहि मानए।

 

दुबर-पातर नहि छै बुत्ता।

फाटल-चीटल अंग छै लत्ता।।

गत्तर-गत्तर केर छै जागल हार।

जेना जरल अछि ओकर कपार।।

 

के देव! जन्म देलक तोरा।

छॉंछी भरि देतौ अंगोरा।

नेना सभ पसारने भाभट।

बुचनी माए मारलैन दू झापट।

 

दू चाट जखने लागल तानि।

बुचनी लेलैन जलखै-पानि।

हुचकैत पहुँचली ओइठाम।

बहैत खेतमे हर जैठाम।

 

देखू एहेन हरवाहक नेत।

चलल जोतए हरवाह खेत।

 

 

किसानक भेल पि‍सान

देखू सभ जन महग भेल समान

जखैन सभसँ सस्ता बि‍कैत धान।

कियो अछि चलैत चि‍बबैत पान

जखैन‍ अखैन किसान भेल पि‍सान।

 

खेल करैत अछि, बीचक दलाल

तेजगर चक्कूसँ करैत हलाल।

अछि भड़ैत दूनू जेबीमे माल

हाल देखि रहल छी सालक साल।

 

ठोकि रहल अछि सभ समस्‍या टाल

सभ दि‍न किसानकेँ बजरल ताल।

नै कहैत कियो किनको हाल

कहि‍यो दाही अछि कहि‍यो अकाल।

 

नै एकता जाधैर‍ किसानक भेल

चलैत रहत ताधैर‍ एहने खेल।

कृषि‍ लागतपर हुअए उचि‍त दाम

खुशी हुअए सभ लोक गामक गाम।

 

 

जखैन किसानपर अछि देशक ताज

सभसँ कमजोर किएक हुनक अबाज।

सरकारकेँ चाही वि‍शेष धि‍यान

सभ बात जानि रहला भगवान।

 

 

दू हजार दस श्रावणक दृश्‍य 

सुखि गेल पोखैर डाबर धार।

पूर्वा बहैत जाड़ बेजाड़।।

लागल दमकल फट-फट करैए।

चर चाँचर सभ छट-छट करैए।।

 

सगर डगर बाट गर्दा उड़ैए।

दूपहर चलब नै मन करैए।।

खेतक बीआ सुखल बीरार।

ने कादो ने होइत गजार।।

 

श्रावण लगैत बैसाक मास।

धान नै लागल देखू चास।।

बाधक बाध चरैत अछि माल।

की कहतैन‍ कियो हाल-चाल।।

 

अछि हवा शान्त रौद गुमार

केहेन अछि किसानक कपार

खेत लागल तागत सभ वुड़ल

दाहीपर सँ अछि रौदी घुरल

किसान पिसान दु:ख कियो बुझत।

 

किसान पि‍सान दुख नै बुझत।

अपना दि‍स तँ यौ सभकेँ सुझत।।

शीघ्र करू सरकार जोगार।

सुखि गेल पोखरि डाबर धार।।

 

 

समतुल वर्षा 

दुइ हजार ग्यारहमे अदरा पानि।

रौदीकँ मारलैन थापर तानि।।

सभ दिन कादो सभ दिन गजार।

सुखल नै खेत कादो बिरार।।

 

राति भरि बरसल दिनमे उबेर।

बुझाइ छल होएत खेत सबेर।।

खुशीमगन जन करैत खेत।

आन सालक हाल देखि चेत।।

 

जल भरल पोखैर डाबर धार।

जोरसँ बहैत पूर्वा वयार।।

बरसा बरसैत मुसला धार।

भागल रौदी बरसाकेँ पार।।

 

रौदी मारल जन आश धरैत अछि।

खरगर खेत चास रोपैत अछि।।

टुटल एन.एच जल मगन ठाम।

सीतामढ़ी सोनवर्षा गाम।।

 

होएत दाही जानि नहि जानि।

सुखार-दहारसँ होइत हानि।।

दिनमे नहि बरसा रौद घाम।

जन-मजदूर खुब करैत काम।।

 

खूब बरसल अदरा अन्त हथिया।

कोठी भरतै धानक पथिया।।

ऐ बेर भेल बरसा समतुल।

कहियो नहि उड़ल डगरपर धूल।।

 

की देखि रहल छी? 

गाम-गाममे अछि पसरल झगड़ा।

लोभी बैमान करैत अछि नखड़ा।।

घर बि‍गारू करैत देखू बखड़ा।

सभ किछु जानि रहल मैया सखड़ा।।

 

झगड़ घर बि‍गारू लगा रहल अछि।

बूतल आगि‍केँ सुनगा रहल अछि।।

फुसि गप कोना पतिया रहल अछि।

कनफुसकी कऽ ओ बतिया रहल अछि।।

 

की कही घर-घरमे अछि तँ यएह दुख।

देखि जड़ैत एक दोसरक सुख।।

सभटा खेला करैत टोल प्रमुख।

एक दोसरकेँ प्रगतिक खएबाक भुख।।

 

मूर्दाकेँ उखाड़ि गन्हका रहल अछि।

भायपर भायकेँ सनका रहल अछि।।

जन धन-क्षण कोना गमा रहल रहल अछि।

परि‍वारक प्रगति तँ जा रहल अछि।।

 

सभ परिवारमे राखू मिलान।

अलग-अलग नै बनाबू बथान।।

तीन-तीन मंजिल हुए मकान।

बाप-दादा संग सभ एक ठाम।।

 

देखू केना लोक करैत अछि।

अलग-अलग घर खेत भरैत अछि।।

उद्योग खेती सभ मिलि करैत 

फसल लगा काटि शहर रहैत।

 

शहर रहि लोक आबैत गाम।

देशोन्नति सभ मिलि करैत काम।।

– अच्छेलाल शास्त्री

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