लेखक परिचय
नाम: दुर्गानन्द मण्डल
जन्म: 02 जनवरी 1965
जन्म स्थान: गाम- गोधनपुर, पोस्ट– सुखेत, भाया- झंझारपुर, थाना- झंझारपुर, जिला- मधुबनी, पिन कोड- 847404
पिताक नाओं: स्व. रामदेव मण्डल
माताक नाओं: श्रीमती भालसरी देवी
मातृक: भगवतीपुर बिरौल, जिला- मधुबनी।
शिक्षा: एम.ए; बी.एड; एल.एल.बी. (ललित नारायण मिथिला विश्व विद्यालय- दरभंगा)
जीविकोपार्जन: अध्यापन, प्रभारी प्रधानाध्यापक
रुचि: साहित्य पढ़ब-लिखब।
साहित्य लेखन: 2007 ईस्वीसँ।
साहित्यिक कृति:
(1.) कथा कुसुम (लघु कथा संग्रह)
(2.) चक्षु (आलोचना)
सम्पर्क-
हरि-ओम डिजिटल एक्स-रे, सुभाष चौक निर्मली, जिला- सुपौल। पिन- 847452.
रचना –
दू टा कथा (कहानी)
बिआहक पहिल साल गिरह
राधा आ मोहन दुनूक बिआहक पहिल साल गिरह। दुनू परानीक मनमे उठैत खुशीक कोनो सीमा नहि। दुनूक बीच प्रेम एतेक जे साल केना बितल से बुझिए ने पेलक। परिवार छोट भेने जीवन जेतबए सुखमए तेतबए सरस सेहो। मोहन बैंकक कर्मचारी। तँए पटनेमे जमीन लऽ मकान बना, जेबा-एबा लेल नैनो गाड़ी सेहो कीनि लेलक। भिनसरसँ लऽ कऽ जाधैर ऑफिस जाइ छला ताधैर राधाक मदमस्त जुआनी देखि समय केना बित जाइ छेलैन से पते ने चलैन। मुदा दस बजे धरि तैयार भऽ ऑफिस जरूर चलि जाइ छला। दिन भरिमे ऑफिसोसँ एक-आध बेर राधाकेँ फोन कऽ हालि-चालि जरूर पुछि लइ छेलखिन। पाँच बजे ऑफिस बन्न भेला पछाइत किछु ने किछु सनेस लऽ मोहन घर चल अबै छला। राधा ताधैर बाट तकैत रहै छेली। जाधैर गाड़ीक हौरन नै बाजि उठै छेलैन। ऐ तरहेँ दुनू परानी लेल सभ दिन होली आ राति दीवाली रहै छल। देखैत-देखैत साल बित गेल आ आबि गेल बिआहक पहिल साल गिरह।
दुनू परानी आपसमे विचारलैन जे बिआहक पहिल साल गिरह छी, तँए ऐ शुभ अवसैरपर अपना दोस्त सभकेँ एकटा शानदार पाटी देल जाए। पाटीमे खेबाक-पीबाक पुरकस इंतजाम छल। रवि दिन रहलाक कारणे पाटियो समैसँ शुरू भेल ओइ दिन तँ राधा आ मोहनक सुन्दरते अपूर्व छल। दुनू परानी फिल्मी हिरो-हिरोइन जकाँ लगै छला। साँझ पड़िते दोस्त-दोस्तिनी सभ आबए लगलैन। सभसँ उपहार लऽ राधा डैनिंग हॉलमे रखि-रखि आबैथ। पाटीमे कोनो वस्तुक कमी नै छल। सभ कियो खूब खेलक-पीलक आ नाच-गान करए लगल। मोहनकेँ दोस्तक बीच रहैत-रहैत पीबैक चस्का लगि गेल छेलैन। तँए आइ मोहनो खूब पीलैन।
पीला पछाइत राधाकेँ डाँरपर हाथ दऽ दोसर हाथ पकैड़ ओहो नाचए लगला। नाच-गान खतम भेला बाद सभ दोस-दोसतिनी अपन-अपन घर गेल। मुदा ओही दोसक बीच मोहनक एकटा अभिन्न दोस अरूण जेकरा पीबैक हिस्सक नहि, ओ जलखै मात्र केला पछाइत अपन घर चलि गेल।
“राधा हे राधा, देखू अहाँले मोहन केते बेकरार अछि। आउ अहाँ तँ हमर जान छी। हमर परान छी, आउ ने।”
कहैत मोहन उठै काल पलंगसँ टकरा गेला। राधा दौग एली देखली जे मोहन तँ किछु बेसीए पीब लेने छैथ। मोहन बजला-
“ओह राधा, छोड़ू ने ई गप-सप्प। प्लीज एमहर आउ ने। हमरा आब अहाँ एना जुनि तड़पाउ। ओह राधा, अहाँ केते सुन्दर छी। मन होइए अहाँकेँ हम देखिते रही। किछु बाजी अहाँ हम सुनिते रही।”
गीत गबैत मोहन राधाकेँ अपना बाँहिमे कसि पलंगपर ओंघरा देलखिन। प्रेमक सागरमे डुमए चाहलक। मुदा सागरमे डुमैसँ पहिने एना भेलै, मोहन औक करए चाहलक। राधा हाँइ-हाँइ मोहनकेँ उठाबए चाहलक। ताबए तँ मोहन पलंगेपर बोकैर-बोकैर भरलक। सौंसे घर गंधसँ भरि गेल। नाके ने देल जाइ। शराबक निशाँमे मोहन बेसुधि। कनीए कालक बाद मोहनकेँ फेर मन भेलै जे औक हएत। निशेमे मातल मोहन जाकि पलंगसँ उठल आकि पलंगेपर खसि पड़ल, कपार फुटि गेलै, शोनितक टघार चलए लगलै। राधा जेना-तेना मोहनक माथसँ बहैत शोनितकेँ रूमालसँ पोछि-पाछि माथकेँ बान्हि देलक।
मुदा एतबोपर मोहनक मन थीर नै भेलइ। पेटमे दर्द उठलै। दरदे छड़पटाए लगल। ओही अवस्थामे मोहन एकबेर फेर औक केलक। मुदा ऐबेर खुने केलक। समुच्चा घर खुने-खुनामे भऽ गेल। मोहन खून बोकैर रहल छल। तथाइपो ओकर दर्द कम नै भऽ रहल छेलइ। एमहर असगरे राधा की करती। राधाकेँ मोन पड़लैन अरूण। अरूण मोहनक दोस जे शराब नै पीब अपना घर चलि गेल छल। अरूण… अरूण… अरूण… हल्ला करैत राधा अरूण दुनू परानीकेँ बजौलक। अरूण दुनू परानी दौगल राधा ऐठाम आएल। मोहनक हाल देखि दुनू परानीकेँ होश उड़ि गेल। अरूण बाजल-
“भौजी, मोहन भैयाक हाल ठीक नै छैन। हम गाड़ी निकालै छी अहाँ दुनू गोरे भैयाकेँ पकैड़ बाहर लाउ।”
गाड़ीक पैछला दरबज्जा खोलि, सीटपर मोहनकेँ पाड़ि राधा आ अपन पत्नीक संग अरूण अस्पताल दिस विदा भेल। अरूण तीव्र गतिसँ गाड़ी चला रहलए अपना धुनिमे। जे जल्दीसँ जल्दी अस्पताल पहुँच जाइ। बाटमे मोहनकेँ बड़ी जोड़सँ दर्द भेलै आ हिच्की उठलै दर्दसँ छटपटाइ-कछमछाइत एकबेर फेर खूब नमहर खूनक औक भेलइ। किछुए कालक पछाइत मोहन कालकलवित भऽ गेल।
राधाकेँ शंका भेलइ। ओकर करेज भालरि जकाँ काँपि उठलै। जोरसँ कानए लगल। अरूण बोल-भरोस दैत अस्पताल पहुँचल। अरूण आ पूजा दुनू परानी मोहनकेँ स्ट्रेचरपर लादि डाक्टर लग लऽ गेल। डाक्टर साहैब आला लगा नारी देखि तजबीज करैत बजला-
“माफ करू, ई आब नै छैथ।”
सुनिते राधा पछाड़ खा मोहनक मृत शरीरपर गाछ जकाँ खसली। पूजा कनैत राधाकेँ सम्हारैत बजली- “दीदी, उठू होश करू। की करबै धैरज राखए पड़त। जिनगीकेँ जीबए पड़त।”
पूजा उठौलैन। राधा उठली। मुदा फेर पछाड़ खा मोहनक शरीरपर खसि पड़ली। जोर-जोरसँ कनैत राधा मोहनक देहकेँ डोलबैत बाजलि-
“स्वामी यौ स्वामी, अहाँ केतए चलि गेलौं यौ स्वामी? उठू ने अहाँ तँ कहैत रही जे मोन होइए अहाँकेँ हम देखिते रही। देखू ने हम छी अहाँक राधा। उठू ने। उठू ने। देखू ने। अहाँक राधा…।”
अहुरिया कटैत राधाकेँ देखि अरूण बाजल-
“भौजी, उठू होश करू। आब ओ घुरि नै औता।”
ई कहैत अरूण एकबेर राधाकेँ सम्हारि उठौलक। मुदा राधा पुन: पछाड़ खा स्वामी-स्वामी कहैत मोहनक मृत शरीरपर खसि बेहोश भऽ गेलि।
के… मोहनक राधा…।
असली हीरा
मनमोहन गाम। गदाल बश्ती। एकसँ एक पहुँचल चोर गाममे। इलाकामे मनमोहन गामक पहिचान चोरबे गामसँ होइए। गामक विशेषता चोरि अछि। पढ़ल-लिखल तँ कम्मे मुदा एकसँ-एक बीहर चोर सभ। जेना हमरा लोकनिक खेती अध्ययन आ अध्यापन छी तहिना ओकरा सबहक खेती चोरि अछि। ओना ई फराक बात, ओ सभ एतेक गरीबो नै अछि जे बिनु चोरि केने जीब नै सकैए। मुदा ओ सभ अपन धन्धा बुझैए। भरि दिन सूतब आ रातिमे चोरि करब, ई ओकर सबहक धन्धा अछि। ओही गामक करिया नामी चोर छल। करियाक नाओंए सुनि इलाका थरथरा जाइ छल। चोरिए टा नै अपितु राहजनी, छीना-झपटी, खून-खराबा इत्यादि करब ओकर दिनचर्या छल।
एक दिनक गप छी। ओइ गाम दऽ ओम शान्ति पंथसँ जूड़ल व्रह्मकुमार दुर्गा भाय जा रहल छला। हुनका संग यज्ञक सेवार्थ किछु कैंचा आ गरदैनमे हीराक हार छेलैन। चलैत-चलैत झलफल भऽ गेल तात् केतए-ने-केतएसँ ओइ करियाक नजैर दुर्गा भायपर पड़ल। करिया देखलक, सोचलक। ई श्वेत वस्त्रधारी कोनो महात्मा छी। एकरे घेरल जाए आ संगमे जे किछु हेतै से छीनि लेल जाए। दुर्गा भाय बढ़ल जा रहल छला। करिया आगू बढ़ि दुर्गा भाइक कनपट्टीमे औजार सटा रूकैले कहलकैन। दुर्गा भाय रूकि गेला। करिया दुर्गा भाइक सभ किछु छीनि लेलक। अन्तमे ओकर नजैर हीराक हारपर पड़लै। बाजल- “महात्माजी, ई हीराक हार लाबह?”
दुर्गा भाय कहलखिन- “सुनह, ई तँ नकली हीरा छी। असली हीरा तँ तोरा लगमे छह। ओकर खोज करह ने। ई नकली हीरा कथीले लेबह।”
करिया तँ अवाक्। सोचए लगल। हमरा लग असली हीरा भऽ नै सकैए। मनमे उपकलै। ई महात्मा ठकैए। बाजल-
“हे महात्मा, हम असली-नकली नै बुझै छी। तूँ ई हीरा लाबह।”
दुर्गा भाय अपन गरदैनसँ हार निकालि करियाकेँ दैत बजला-
“हे सुनह, अखनो कहै छिअ। ई नकली हीरा छी। असली हीरा तँ तोरा अपने छह। ओकरा खोजह।”
करियाकेँ ई बात ठहकलै। आब तँ करिया खसल दुर्गा भाइक पएरपर- “से नै तँ बाबा तूँ हमरा बता दैह जे असली हीरा छै केतए?”
दुर्गा भाय बजला- “ओइ हीराकेँ खोजैले तोरा ई धन्धा छोड़ए पड़तह। दोसर गप तूँ जे करिहह से करिहह मुदा झूठ नै बजिहह।”
करिया घुमि घर आएल। मुदा दुर्गा भाइक बात ओकरा माथमे रहि-रहि कऽ घूमए लगलै। आखिर असली हीरा हमर केतए हरा गेल! फलस्वरूप करिया चोरि केनाइ छोड़ि देलक। झूठ सेहो बाजब बन्न केलक। ई बात काने-कान पसरए लगलै। जे कियो सुनै जे करिया चोरि केना छोड़ि देलकै तँ लोककेँ आश्चर्य लगै। करिया आब ने तँ चोरि करए आ ने झूठ-फूस बाजए। आब तँ संगतिया सभकेँ किछु ने फुड़इ। ऊहो सभ सोचलक। से नै तँ सरदार चोरी छोड़िए देलकै तँ हमहूँ सभ चोरि छोड़िए देब आ झूठ नै बाजब। सभ सएह केलक। चोरि करब आ झूठ बाजब छोड़ि देलक। कनीए दिन पछाइत सबहक सोझहा भूखमरी आबि गेल। सबहक धिया-पुता भूखे टौअए लगल। करियाक संगैतया सभ लगमे आबि पुछलक-
“से नै तँ हम सभ तँ चोरि छोड़िए देलौं। मुदा बाल-बच्चा तँ भुखे टौआइए। आखैर एकर उपए की हेतै?”
करिया बाजल-
“अच्छा ठीक छइ। एते दिन जे भेलै से भेलइ। जँए एते दिन निमलह तँए तूँ सभ हमरा चौबीस घन्टाक समय दैह।”
तोहर सबहक दूख दूर भऽ जेतए। करिया भरि दिन गुनधुनमे लगल रहए जे की करी की नहि? अन्तमे विचारलक, से नै तँ अपने राजक राजाकेँ सातटा लाल छइ। आनठाम चोरि नै कऽ ओही लालकेँ चोरा लाबी। करिया भरि दिन गुनधुनमे पड़ल रहए। भगवानकेँ यादि करैत रहए। हे परमात्मा आइ हमरा लग कोनो उपए नै अछि तँए हम चोरि सन ई पाप करब। जनिहह तोँ।
भरि दिन गमौला पछाइत करिया भगवानकेँ सुमरि विदा भेल राजाक ओइठाम। नीसोडण्ड राति। राजा निसभेर सूतल। पहरू सभ पहरा दैत। दोग देखि करिया भगवानकेँ सुमरि सिंहद्वार फाँनि भीतर गेल। दुहारिएपर सिपाही टोकलकै- “है, के छिअह?”
करिया बाजल- “चोर।”
सिपाही सोचलक। चोर केतौ कहत जे हम चोर छी। से नै तँ ई रजेकेँ कोइ छी। एकरा भीतर जाए दइ छिऐ। करिया भीतर गेल। दोसर फाटकपर दोसर सिपाही। ऊहो पुछलकै- “हे के छिअ?”
बाजल- “चोर।”
किएक तँ दुर्गा भाय कहने रहथिन। जे करिहह से करिहह मुदा झूठ नै बजिहह। तँए ओकरा जे पुछै, ओ सही बात कहि दइ हम छी चोर। ऐ प्रकारे करिया सातो फाटक टपि गेल। पहुँच गेल राजमहल। राज निसभेर सूतल।
करियाक नजैर तिजोरीपर पड़लै। चोर तँ रहबे करए। जुति-फाँति लगा तिजोरी खोललक। देखलक जे तिजोरीमे सातटा लाल छइ। सोचलक। एते लालसँ हमरा कोन काज। करिया ओइ सातो लालमे सँ चारिटा लऽ तीनटा छोड़ि देलक आ विदा भेल। ताबत राजाकेँ नीन टुटलै। नजैर करियापर पड़लै। पुछलक- “हे, के छिअ?”
कहलकै- “हम छी चोर।”
“केतए आएल छह?”
करिया बाजल- “चोरी करैले।”
“चोरी केलह?”
कहलकै- “हँ।”
“कथी?”
“अहीं खजानामे सात गो लाल छल। हम चारि गो चोरेलौं आ तीनटा छोड़ि देलौं।”
ई बात सुनि राजा सोचलक। ई चोर नै भऽ सकत। चोर केतौ ई कहत जे हम छी चोर। आ तीनटा छोड़िओ देत। बाजल- “अच्छा, जाह।”
सिपाही सभ किछु देखि रहल छल। करिया अरामसँ चोरि कऽ लाल लऽ घुमि घर आबि गेल।
परात भने सौंसे गाम घोल भऽ गेल जे राज दरबारमे चोरि भऽ गेल। समुच्चा राजमे ढोलहो पड़ि गेल। करियो ऐठाम खबैर गेल। करिया अपन संगतियाक संग राज-दरबारमे उपस्थित भऽ गेल। दरबार लगल। दरबारमे पुछल गेलै-
“गत राति जे राजमहलमे चोरि भेल से चोर के?”
तही बीच राजा मंत्रीकेँ कहलक- “मंत्रीजी, राति जे चोरि भेल से देखू गऽ सातो लालमे कएटा चोरि भेल आ कएटा अछि।”
मंत्री सोचलक चोरी तँ भेबे केलइ। जेहने एकटा तेहने सातटा। बँचल तीनू लालकेँ मंत्रीजी अपना घर रखि आएल। दरबारमे सभसँ पुछल गेलइ। अन्तमे करियाकेँ सेहो पुछल गेलइ। करियाकेँ दुर्गा भायबला बात तँ मने रहै जे जे करिहह से करिहह मुदा झूठ नै बजिहह। करिया बाजल-
“जी सरकार, चोरि हम केलौं।”
राजा आगू पुछलकै-
“की चोरि केलह?”
करिया कहलकै- “ई गप तँ हम रातिए कहलौं। हम छी चोर। चारि गो लाल चोरेलौं।”
“तों जे चारिटा लाल चोरेलह तखन तीनटा की भेल?”
करिया बाजल-
“से हम नै कहब जे आरो लाल की भेल। हम जे चारिटा लाल चोरेलौं से हमरा संगेमे अछि। जँ लेब तँ लऽ लिअ। मुदा ई चोरी हम अपना पेट खातिर नहि, अपन जाति-समाजक पेट खातिर केलौं।”
राजा अकचका उठला। चोरी ई केलक मुदा अपना खातिर नै अपन जाति-समाजक खातिर। से की? करिया फरिछा कऽ सभ खिस्सा राजा साहैबकेँ कहलक। राजाकेँ बिसवास भऽ गेल।
आब राजा लगला ओइ तीनू लालक खोजमे। मोन पड़लैन जे मंत्रीजीकेँ देखैले कहने रहथिन। मंत्रीजी ओइ तीनू लालक संग पकड़ा गेला। सभा लगले रहए। तुरंते मंत्रीजीकेँ जहलक सजा भऽ गेल। एमहर, करियाक सत्यवादी विचारसँ प्रेरित भऽ राजा मंत्रीक पद लऽ देलखिन। वेतनादिक रूपमे करियाकेँ जाति-समाजक लेल सालो भरिक खर्चा उठौलक। ऐ प्रकारे राजाक संग राजाक प्रजागण आनन्दमय जीवन जीबए लगल। चारूकात खुशहाली पसैर गेलइ। सभ चोर चोरि छोड़ि अपन उचित काज-उदम लागि गेल। केकरो कोनो तरहक दुख-तकलीफ नहि। कथुक कमी नै रहलै। समय बितैत गेल। राजा अपन समय नजदीक अबैत देखि आ करियाक इमानदारीक प्रभावसँ प्रभावित भऽ अपन एकमात्र कन्याक हाथ करियाक हाथमे दऽ चारूधामक यात्रापर निकैल गेल।
समय बितैत गेल। मनमोहन गामक आ करिया समाचार पत्र-पत्रिका आ समाचारमे सेहो आएल। वर्त्तमान सरकारक धियान सेहो मनमोहन गामपर गेल। सरकार सभकेँ इण्दिरा अवास दऽ लाल कार्ड बना जेकरा परिवारमे जेहेन लोक छेलै तेकरा तेहने नोकरी दऽ ओइ गामकेँ आदर्श गाम बना देलक। आइ ओ मनमोहन गाम एकटा आदर्श गामक रूपमे जानल जाइत अछि। आ करियाकेँ ई बात सेहो बुझबा जोगर भऽ गेल, ओ जे भरि जीवन चोरि केलक ओ हीरा आ सत् जानि परमात्माकेँ पहचानि सत्मार्गपर चलब ओइ हीरामे कोन छल नकली हीरा आ कोन छल असली हीरा।