मैथिली साहित्य के प्रसिद्ध रचनाकार रामचंद्र राय जी की कहानियां

नशामुक्त गाम  

राजू सर अपने गामक मध्य विद्यालयमे प्रभारी प्रधानाध्यापक रूपमे कार्यरत छैथ। चटिया सभकेँ पढ़बै-लिखबैमे सभदिन सँ मनलग्गू आ तेज-तर्रार रहला अछि। अपने, अनुशासनक पालन करैत राजू सर विद्यालयक विद्यार्थी सभकेँ सेहो सदिखन अनुशासनक पाठ पढ़बैत रहै छैथ आ अपना गामक विकासक लेल सेहो सदिखन तत्पर रहिते छैथ।

हालक किछु बर्खसँ सामाजिक वातावरणमे जे परिवर्तन भऽ रहल अछि, किशोर आ युवाक दिशा जे बदैल रहल अछि तइसँ राजू सरजी खिन्न रहै छैथ। पहिले गामक बच्चा सभ साँझ पड़ैत-पड़ैत लालटेन नेसिकऽ दलान वा ओसरापर पढ़ैले बैस रहैत छल, मुदा आब ओ मोबाइलमे व्यस्त भऽ जाइत अछि।

राजू सर पनखौक आदमी छैथ। माने हुनका पान खेबाक हिस्सक छैन। मुदा विद्यालयक समयमे ओ कखनो आ कहियो ने पान खाइ छैथ। हुनकर मानब छैन जे पान-गुटखा खा कऽ चटिया सभक बीचमे नहि जेबाक चाही। राजू सर अपन अइ धारणापर सभ दिनसँ अडिग रहला अछि। हँ, तखन विद्यालयक कार्यसँ निवृत्त होइते हुनका मुँहमे पान चाहबे करिऐन। ओ कहै छैथ जे पेटमे अन्न रहए वा नहि मुदा मुँहमे पान रहलासँ मुहोँ लाल आ मनो लाल रहैत अछि।

एक दिन साँझुपहर चौकपर सँ पान खा कऽ राजू सर आबि रहल छला। रस्तामे महाकान्त आओर भोला भाय हुनका भेट गेलैन। हिनका देखिते ओ दुनू गोरे एक्के स्वरमे बजला-

“सर, अहींक इंतजार हम सभ कए रहल छेलौं।”

राजू सर बजला-

“किए? कोनो विशेष गप अछि की?”

दुनू गोरे बजला-

“सर, की कहूँ.. गामक स्थिति तँ बड़ खराप भेल चल जा रहल अछि। आब तँ ननकियो छौड़ा सभ देशी दारू पीब रहल अछि। गाममे तीन-तीन आदमी देशी दारू बेचि रहल अछि। तीनू दोकानदार तीन उमेरक अछि। जे जेहेन उमेरक अछि तेकरा लग तेहने उमेरसँ मिलैत-जुलैत गहिंकी दारू पीबाक लेल पहुँचैत अछि। पहिले बिहारमे दारू बन्न नहि छेलै तँ अइ इलाकामे एक्केटा गाममे बनौआ दारू भेटै छेलइ। ओतए गिनल-चुनल लोक पहुँचैत छल। मुदा आब दारू बन्न भेने सभ गामक गली-गलीमे चोरी-छिपे दारू भेटि जाइत अछि। तइमे अप्पन गाम तँ आब नाम कए रहल अछि। एना जे रहतै तँ गाम की विकास करत। से सर.. अहाँ सँ निवेदन अछि जे थानामे खबर दऽ कऽ गामसँ दारू बेचनाइ बन्द करबा दितिऐ।”

राजू सर सभ बात सुनिकऽ गम्भीरतासँ बजला-

“लेकिन एकर उठौनाबला गाहैंक तँ अहूँ दुनू गोरे छी। संग-संग गामक किछु मुँहपुरुख सभ बेचबै छथिन। आओर ओ सभ तँ रोजे ओइ अड्डापर जाइत रहै छैथ। हिनके सभक देखा-देखी ने आब नवतुरियो सभ पीनाइ शुरू कऽ देलक अछि।”

परदेशी नवयुवक सभ जखन गाम अबैत अछि तँ गुट बनाकऽ रोजे माछ-मासु आ मदिरा इत्यादिक पार्टी करैत अछि। जगह-जगहपर जूआक अड्डा बनल रहै छइ। गाछी-बिरछीमे दिन-राति पार्टी चलैत रहै छइ। ओ सभ तँ सोचैत अछि जे हम सभ तँ जे छी से छीहे, हमरासँ छोट सभ सेहो हमरासँ नीक नहि बनि जाए। एकरे नकल ई नवतुरिया सभ ने कऽ रहल अछि।

गामक अधिकांश बच्चाक पिता परदेश खटैत अछि आ माए गामपर रहै छइ। माएकेँ ई बच्चा सभ नहि गुदानै छै। आसानीसँ ठकि लइ छै। कहै छिऐ जे माए-बाप बच्चाकेँ जेहेन संस्कार देतै बच्चा तेहने ने बनतै। मुदा कोन माए-बाप चाहैत अछि जे हमर धिया-पुता नीक नहि बनए।

आइ ई नवतुरिया सभ गलत रस्तापर जा रहल अछि तँ एकर सभसँ पैघ दोखी समाजेक किछु दुष्ट प्रवृतिक लोक ने छैथ।

महाकान्त आ भोला भाय, दुनू गोरे सुनैत रहला। किछु कालक बाद भोला भाय बजला-

“हँ सर, से तँ ठीके कहै छिऐ अपने। मुदा एकर समाधान केना हएत?”

एकर समाधान थाना आ पुलिसकेँ कहने नहि हएत। किएक तँ ओ सभ सेहो एकरा सभसँ मिलल रहै छै। जे दोकानदार समयसँ सप्ताहिक नहि पहुँचाबै छै तकरे टा पकड़ैत अछि आ तेकरो लेन-देन भेलाक बाद छोड़ि दइ छइ।

दारू बेचनाइ बन्द करेबाक सभसँ नीक तरीका अछि जे गामक सभकियो दारू पीनाइ छोड़ि दिऐ। ने गाँहैक जेतै आ ने ओ बेचत। तेकर बादो ओ धन्धा बन्न नहि करत तँ ओकरापर सामाजिक दबाव देल जेतइ।

मुदा ई एतेक आसान काज नहि अछि। हँ, सर हम सभ साफ कऽ छोड़ि देब। जे सप्पत खुआ लिअ, कहियो नहि पीयब। गामक स्थिति देखिकऽ हमहूँ सभ आजीज भऽ गेल छी। सर, अहाँ कनी धियानसँ सोचियौ, कोनो ने कोनो रस्ता जरूर निकलतै।

राजू सर समाजक सुबेवस्था आओर कुबेवस्थापर चिन्तन-मनन करैत घर एला। हाथ-पएर धो कऽ एकटा पत्रिका लऽ पढ़ए लगला मुदा मने ने लागैन।

पत्नी पुछलकैन-

“मुँह किए लटकल अछि यौ, की सोचि रहल छी.? चाह पीयब, बनाबी?”

“हँ.. हँ.., जरूर.. जरूर.. बनाउ।”

राजू सर सोचए लगला। समाजक विकास लेल अर्थ जरूरी अछि, गाम घरमे रोजगारक घोर अभाव छै तँए लोक शहर धेने अछि। निचला तबका आ निम्न-मध्यवर्गीय परिवारक लोक घर-परिवारकेँ छोड़िकऽ शहर चलि जाइत अछि। तइमे किछु गिनल-चुनल लोककेँ नीक नोकरी भेट जाइ छै आ ओ अपना परिवारकेँ लऽ कऽ बाहरे रहए लगैत अछि आ ओतहि धिया-पुताकेँ पढ़ाबए लगैत अछि। ओतइ सभ किछु उपलब्ध रहने ओ परिवार आगू बढ़ि जाइत अछि। तहूमे सभ नहि, किछु भुतियेबो करैत अछि।

एमहर गाममे नवतुरिया आ नवयुवा सभ स्कूल आ कौलेजमे नाओं लिखबैत अछि तँ माए ओकरा होशियार बुझए लगैत अछि। आब बड़का मोबाइल सभकेँ चाहबे करी… गारजन जँ नहि कीनि देतै तँ ओ घरमे अठबज्जर कऽ देत। आब मोबाइल जीवनक अंग बनि गेल अछि। ई बच्चा सभ एकर सदुपयोग कम आ दुरुपयोग बेसी करैत अछि तइ कारणेँ अधिकांश युवा राहसँ बेराह भऽ रहल अछि। ज्ञान-विज्ञान आ टेक्नोलॉजीकेँ आगू बढ़ने विकास वा विनाश, शिक्षा-संस्कृतिक उन्नैत वा अवनैत दुनू भऽ रहल अछि। एहि चकाचौंधमे ई नवजेनरेशन जेना भुतिया रहल अछि। खाएर जे.. से..।

ओही दिन-रातिमे सुतैसँ पहिने राजू सर गामकेँ नशामुक्त करबाक संकल्प लेलैन। ऐगला दिन भने गामक किछु एहेन बेकतीसँ भेँट केलाह, जे नशा नहि करै छैथ, हुनका सभ लग अपन विचार रखलैन। ओ सभ कहलकैन-

“विचार तँ बड़ नीक अछि। मुदा अछि बड़ असम्भव।”

राजू सर बजला-

“अहाँ सभ सिरिफ साथ दिअ, असम्भवकेँ सम्भव कएल जा सकैत अछि।”

सभ कहलकैन- “ठीक छै, हम सभ अहाँक संग छी। ऐगला योजना बनाउ जे ई केना भऽ सकैत अछि।”

दू साए घरक बस्तीमे मात्र पाँच बेकती संग देबाक आश्वासन देलकैन। मुदा ई बुझि रहल छला जे ईहो सभ ऊपरे-ऊपरे कहला हेन। तथापि राजू सर खुशीए रहैथ जे किछुओ लोक तँ संग दइले तैयार भेला किने।

ऐगला दिन भने गामक मध्य सामुदायिक भवनपर सौंसे गामक बैसार करौलैन। बैसारमे राजू सर अपन विचार विस्तारसँ रखलैन। नशापानक कुप्रभावपर प्रभावी चर्चा केलैन। ग्रामीणसँ आग्रह आओर निवेदन केलैन जे ई काज छोड़ाएल जाए। अइसँ गामक नव जेनरेशन बिगैड़ रहल अछि।

बैसारमे चारू तरफ लोक कानाफुसी करए लागल। हिनका विचारकेँ जोरदार विरोध कएल गेल। एकटा पियक्कर पीबकऽ आएले रहए। ओ हिनकापर उनैट गेल- “हे यौ मास्टर साहैब, अहाँक काज छी धिया-पुताकेँ पढ़ौनाइ-लिखौनाइ। गामपर हुकुम चलौनाइ नइ। के दारू पीबैत अछि आ के नहि पीबैत अछि, के बेचैत अछि आ के नै बेचैत अछि, अइसँ अहाँकेँ कोन मतलब..?”

दोसर बेकती बजला-

“देश स्वतंत्र छै, जेकरा जे मन हेतै से से करत। केकरो खाइ-पीबैपर, बिजनीस-बेपारपर अहाँ रोक लगबैबला के..? बलौसँ अहाँ अपन बनल बनौल प्रतिष्ठाकेँ किए धुमिल करए चाहै छी।”

तेसर बेकती बाजल-

“अहाँ तँ पीबै छी नहि, तँए अहाँ की बुझबै एकर आनन्द। अपने जेकाँ सभकेँ नहि बुझियौ। अहाँकेँ सुधारलासँ समाज नहि सुधैर जेतइ।”

जेकरो किछु बजबाक अवगैत नहि, सेहो अपन दबल आवाजमे राजू सर पर टोन्ट कसए लागल। सभ उठिकऽ विदा भऽ गेल। बिना किछु निर्णय भेने चिन्तित मुद्रामे राजू सर घर आपस एला।

घरमे पत्नी सेहो झिड़की देलकैन-

“सौंसे गामकेँ सुधारैक ठीका अहीं नेने छी। किछु नै फुराइत अछि तँ नबावी करए लगै छी। छोड़ि दियौ गाम-समाजकेँ। जेतए जाइ छै, जाए दियौ। अनेरे दुनियाँ-संसारक टेंशन अपना ऊपर कथीले लइ छी।”

ओइ दिन राजू सरकेँ रातिमे नीन नहि होइन। अधरतियामे पत्नीकेँ बुझेबाक मन भेलैन। मुदा अपने मनमे भेलैन जे गामक सभकियो अइ विचारक विरूद्ध छैथ। कोनो पंचायत प्रतिनिधिकेँ कहबैन तँ सेहो संग नहियेँ देता। सभ तँ ओहन कुकृत्यमे डुमले रहै छैथ। पुन: मोन पड़लैन जे वर्तमान मुखिया तँ दारू नहि पीबै छैथ। काल्हि हुनका समक्ष प्रस्ताव राखब। ओ जरूर संग देता। जँ संकल्प लेलौं तँ हमरा चुप नहि बैसबाक चाही। अपन परियास अन्तिम-अन्तिम तक करैत रहक चाही।

राजू सर ऐगला दिन मुखियाजी लग जा कऽ प्रस्ताव रखलैन। ओ भरपूर सहयोगक आश्वासन देलकैन। तेकर बाद प्रखण्ड शिक्षा पदाधिकारी लग सेहो गेला। हुनका लग अपन बात रखैत राजू सर बजला-

“श्रीमान्, हम अपना विद्यालयक छात्र-छात्राक द्वारा विशेष नशामुक्ति अभियान चलाबए चाहि रहल छी। हम छात्र-छात्राकेँ जागरूक कए नशामुक्तिसँ जुड़ल ‘गीत’ आ ‘नारा’क संग सप्ताहमे एक दिन प्रभातफेरी निकालए चाहै छी, से हमरा कार्यालयी आदेश देल जाउ।”

प्रखण्ड शिक्षा पदाधिकारी हिनक प्रस्तावसँ खूब प्रसन्न भेला। आओर विद्यालयक पठन-पाठन प्रभावित केने बिना ई काज करबाक आदेश देलखिन। संगहि एकटा लिखित आवेदन सेहो जमा करबाक लेल राजू सर केँ कहलकैन।

राजू सर अपना विद्यालयमे गुणवतापूर्ण शिक्षाक संग नशमुक्ति अभियानसँ जुड़ल गीत, नारा आओर नुक्कर नाटकक तैयारी जोर-शोरसँ कराबए लगला। छात्र-छात्रा सभ सेहो बड़ उत्साहित छल।

ऐगले मास नशामुक्ति दिवस रहए। राजू सरकेँ मन कहलकैन जे किए ने ई अभियान शुरू करबाक लेल ओही दिनक चुनाव कएल जाए।

नशामुक्ति दिवसक भिनसरे पूर्ण तैयारीक संग प्रभातफेरी निकालल गेल। जे देखलक से दंग रहि गेल। ई कार्यक्रम तेतेक ने सफल भेल से गामे भरिमे नहि, पंचायतसँ प्रखण्ड तक चर्चाक विषय बनि गेल। गामक युवक सभ विडियो बना-बना कऽ सोशल मिडियापर वायरल केलक।

उत्साहित भऽ कऽ राजू सर आब सभ सप्ताहक सोम दिन प्रभात-फेरी निकालए लगला। संग-संग नशामुक्तिपर नुक्कर नाटकक आयोजन सेहो करए लगला। अभिभावक लोकनि अपना बच्चाकेँ प्रतिभाक प्रदर्शन देखि खुशीसँ झुमि उठला। कल्पनासँ बाहर छेलैन ई बच्चा सभ एहनो प्रदर्शन कऽ सकैए। राजू सरकेँ खूब जश भेटए लगलैन। मुदा राजू सर तँ एहेन जाहुरी छैथ जे कोयलाक खानसँ हीरा तलाशनाइ जनै छैथ।

ठीक एक मासक बाद आस्ते-आस्ते गामक माहौल बदलए लगल। दारू पियाकमे किछु कमी हुअ लगल।

ऐगला मास अभिभावक, शिक्षक मासिक गोष्ठीमे राजू सर छात्र-छात्राक माताक उपस्थितिपर सेहो बल दिअ लगला। परिणामस्वरूप शत-प्रतिशत माता उपस्थित भेली। एहि गोष्ठीमे विद्यार्थी सभक पठन-पाठन आ अनुशासनसँ लऽ कऽ नशामुक्ति अभियान तक पर जोरदार चर्चा कएल। राजू सर अभिभावक सभकेँ समझा रहल छला जे बिहार सरकारकेँ दारू बन्द करेबाक पाछू की उद्देश्य छल आओर लोक एकरा कोन तरहेँ लऽ रहल अछि। दारू पीने हानियेँ-हानि होइ छै, लाभ किछु ने। तेकर बादो लोक चोरा-नुका कऽ पीब रहल अछि। सालमे सैंकड़ो लोक जहरीला दारू पीब कऽ मरैत अछि। ई दारू देहमे अनेक तरहक बीमारीकेँ जन्म दैत अछि। दारू पीलासँ मोनमे नीक विचार तँ कखनौं नहि उत्पन्न होइ छै। अनेरे घरसँ लऽ कऽ टोल-पड़ोस तक हो-हल्ला, गारि-गरौऐल आओर मारि-पीट तक भऽ जाइ छइ। अइसँ असामाजिक वातावरणकेँ सेहो बढ़ावा भेटै छै आओर समाज उन्नतिक बदला अवनतिकक तरफ चलि जाइत अछि। आ सभसँ पैघ बात नव जेनरेशन बिगैड़ रहल अछि।

सुनै छिऐ जेतेकमे एक गिलास देसी दारू भेटै छै तेतबेमे एक लीटर दूध भेटै छै। तखन बताउ, एक गिलास दारू नीक आकि एक लीटर दूध नीक..?”

सभ कियो एक्के स्वरमे बजली- “सर, दूधे ने नीक।”

“तँए, हम अहाँ सभसँ हाथ जोड़िकऽ निवेदन करै छी जे हमरा एहि अभियानमे सहयोग करी। हमरा बिसवास अछि जे एक दिन सफलता जरूर भेटत।”

सभ महिला एक्के स्वरमे बजली-

“सर, हम सभ कियो अहाँक संग छी। अहाँ जे कहब, हम सभ करबाक लेल तैयार छी।”

बीचमे गामक जीविका दीदी सेहो छेली। ओ उठि कऽ बजली-

“आब हमहूँ सभ चुप नहि बैसब। काल्हियेसँ गाममे दारू बिकेनाइ बन्द भऽ जाएत।”

सभ कियो आपसमे विचार केलीह जे काल्हि की करबाक अछि।

ऐगला दिन सभ महिला एक जगह जमा भेली। जइमे गामक किछु आओर लोक शामिल भेला। सभ मिलिकऽ दारूक दोकानपर पहुँचली। गाममे तीन गोरे दारू बेचैए। तीनू दारूबेच्चाकेँ खूब बेइज्जत करैत महिला सभ चेतबैत कहलकैन-

“ई काज आइसँ बन्द भऽ जेबाक चाही, नहि तँ हम सभ मिलिकऽ अहाँ सबहक विरुद्ध बहुत आगाँ तक लड़ाइ लड़ब। अहाँ सभकेँ जहल भेजबा देब।”

दोकानदारक घरमे जेतेक दारू रहै, सभकेँ फोरि-भाँगि कऽ माटिक निच्चाँ गाड़ि देल गेल। गाममे अलगे माहौल बनि गेल। हिनका सभक उग्र रूप देख दारू पीबएबला सभकेँ सेहो सीटी-पीटी गुम्म भऽ गेलइ।

जीविका दीदीक नाम सुलोचना छिऐन। ओ बड़ हिम्मतवाली स्त्री छैथ। सभ कियो अइ काजकेँ सम्पन्न कए गामक सामुदायिक भवनपर बैसली। पंजीपर नशामुक्ति अभियान’क नामसँ एकटा समूह बनौली। अइमे गामक लगभग सभ परिवारसँ एक-एकटा महिला सदस्या बनली। आओर सर्वसम्मतिसँ ई निर्णय लेल गेल जे आइसँ गामक जइ परिवारक जे बेकती दारू पीने नजैर औता तिनका केश कटा, कारीख-चून लगा गाममे घुमाओल जाएत। सभ कियो अइ प्रस्तावकेँ समर्थन केलीह आ अपना संकल्पपर अडिग रहली। आस्ते-आस्ते ऐ तरहेँ गाम नशामुक्त भऽ गेल।

ऐगला बैसारमे समूहक सभ सदस्यक द्वारा ई निर्णय लेल गेल जे राजू सरजीक मेहनत आ अथक प्रयाससँ गाम नशामुक्त भेल अछि, तँए समूहक तरफसँ हिनका सम्मानित कएल जाए।

राजू सर लग ई खबर गेल तँ ओ अइ सम्मानक आनाकानी करए लगला। मुदा सबहक जोरपर हुनका तैयार हुअ पड़लैन।

ऐगला रवि दिन ओही जगहपर जैठाम राजू सर पहिल बैसार केने छला आ दुत्कारलो गेल छला ओही जगहपर। हुनका पुष्प मालाक संग पाँचो टुक कपड़ासँ सम्मानित कएल गेलैन। अइ कार्यक्रममे गामक अधिकाधिक लोक आओर छात्र-छात्रा सभ उपस्थित रहैथ। राजू सरजीक मनमे उठलैन, वास्तवमे नीक काजक परिणाम नीक होइ छइ। ❑

बहिनक बिआह  

सुजीत एकटा होनहार युवक। नमगर-छड़गर गोर रत-रत, एकहरा शरीर। नेनपनेसँ बड़ चंसगर। पढ़ै-लिखैमे अपना किलासमे कोनो चटियासँ कमजोर नहि। किलासमे सभ साल प्रथम अबैत छल। जखन ओ आठम वर्गमे पढ़ैत रहए, तखने पिताजीक देहान्त भऽ गेलइ। सुजीतक माँ कोनो तरहेँ सुजीतकेँ मैट्रिक करा देलकै लेकिन आगू पढ़बाक कोनो आशा नहि रहि गेलइ। जँ घरक स्थिति नीक रहितै आ आगू पढ़बाक अवसरि भेटितै तँ ओ बहुत आगू बढ़ि सकैत छल।

सुजीत पाँच भाए-बहिनमे सभसँ छोट। दू बहिनक बिआह पिताजीक जिवितेमे भऽ गेल रहै आ तेसर बहिनक बिआह जइ साल ई मैट्रिकमे पढ़ैत रहए तही साल भेल रहइ। एहि बिआहमे बहिन-बहिनोइक नीक योगदान रहलइ। माए किछु करजा-बरजा लऽ तेसर बेटीक बिआहसँ मुक्त भेली।

आब सुजीतपर परिवारक भार आबि गेल छेलइ। तीन बेकतीक परिवार। जमीन-जत्था नहियेँ सन। माए केकरो खेत-पथारमे बोइनो-बुता करितै से गाममे आब खेतियो-पथारी चौपट्टे सन भऽ गेल रहइ। सुजीत जेठ बहिनोइक संग नोकरी करए दिल्ली निकैल गेल। ओ अपना जीवनमे कहियो शहरक मुँह नहि देखने छल। ट्रेनक सेहो ई पहिल अनुभव छेलइ। गाड़ीमे बैसल-बैसल सुजीतक आँखिक आगू कखनो माइक चेहरा तँ कखनो बहिनक चेहरा आबि जाइ। थोड़ेकालक बाद कुहेस फाटए लगइ तँ कखनो भविष्यक चिन्ता सताबए लगइ। सोचैत-सोचैत सुजीतकेँ झपकी आबि गेलइ। ट्रेनमे बैसले-बैसले नीन मारलक। भक खुजलै। फेर चिन्तामे सुजीत डुमि गेल। मनमे उठलै, बेसी पढ़ल-लिखल छी नहि। आ ने बेसी उमेर भेल अछि जे नीक काजो पकड़ाएत। जन-मजदूरमे खटए पड़त। कहियो मेहनतबला काज केलौं नहि। बुझाइत अछि कोनो होटले-तोटलेमे कप-प्लेट धुअ-माँजए पड़त।

खाएर जे करए पड़त से करब। दोसर कोनो रस्तो तँ नहियेँ अछि। जँ नीक काज भेट जाएत तँ जी-जाँतिकऽ पाँच बरख करब। तहीमे करजो सठि जाएत। माए-बहिनकेँ महिने-महिने खर्चा पठा देल करबै। बाँकी रूपैआ जमा करब ताहीसँ छेाटकी बहिनक बिआह करब। तेकर बाद अपन दुनियाँ लेल सोचल जेतइ।

दिल्लीमे किछुए दिनक बाद एकटा कोठीमे सुजीतकेँ काज भेटि गेलइ। कोठीएमे खाना-पीना आ रहनाइयोक बेवस्था रहइ। खूब जतनसँ सुजीत काज करए लागल। काज तँ खूब करए पड़ैत रहइ। साँझ तक खटैत-खटैत चूर-चूर भऽ जाइ छल, मुदा बेचारा करितए की। एतेक कम उमेरमे परिवारक भार एकटा होशियारे बच्चा ने उठा सकैत अछि। सुजीतकेँ काजमे मन लागि गेलइ। कोठीमे बन्हौटा भोजन भेटै छेलइ। शरीर सेहो नीक होमए लगलै। छबे मासमे सुजीतक दोहारा देह भऽ गेने सुन्दरतामे चारि चान लागि गेलइ।

कोठीमे झाड़ू-पोछा लगेबाक लेल एकटा लड़की अबैत छेलइ। ओकर नाओं रूणा रहइ। उमेर सोलह-सतरह बरख होइत हेतइ। गेहुमा रंग आकर्षक चेहरा। आर मुस्कान तँ एहन जे कियो मोहित भऽ सकैत छल। सबहक नजैरसँ बँचिकऽ रूणा कखनो काल सुजीतकेँ देखि अपन मधुर मुस्कान छेाडए लागल। ओकर चालि-चलैनसँ किछु दिनक बाद सुजीतकेँ बुझाए लगलै जे ई छौड़ी हमरा चाहि रहल अछि। मुदा हमरा अखन प्रेम-प्यारक चक्करमे नहि फँसवाक अछि। फेर बहिनोइक कहलाहा बात मोन पड़लै जे आबैत काल ट्रेनमे कहने रहथिन-

“हे शहरक लड़की सभसँ बँचिकऽ रहब। एतए लड़की-लड़काक बीच खुलेआम प्यार चलै छइ। जेकरा जेहेन आमदनी रहै छै तेकरा तइ हिसाबसँ कइएक टा यार-यारी भेट जाइ छै। किछु लड़की बिहारी लड़काकेँ अपना जालमे फँसा कऽ बिआह करबाक लेल मजबूर कऽ दइ छइ। ओ प्रेमक तेहेन ताना-बाना बुनैत अछि जे बिआहसँ पहिने अपना प्रेमीकेँ गॉड आ बिआहक बाद डॉग बुझए लगै छइ।”

ई बात सोचैत-सोचैत सुजीतकेँ अप्पन माए आ बहिनक चेहरा मोन पड़ए लगलै। सोचलक हम जे एतए प्रेम-प्यारक चक्करमे पड़ब तँ हमर माए-बहिनक की हालत होएत।

 

एकर किछु दिनक बाद एक दिन फुटेकमे रूणा सुजीतसँ मोबाइल नम्बर मंगलकै। मुदा सुजीत अप्पन नम्बर नहि देलकै। रूणा बाजल-

“दो न यार, क्या हो जाएगा?”

“क्या करेगी मेरा नम्बर लेकर?”

“कभी-कभार बात करेंगे।”

“नहीं, मैं किसी लड़की से बात नहीं करता। बात ही करना है तो तीन साल बाद करना।”

रूणा अप्पन चौअनियाँ मुस्की दैत बाजल-

“ठीक है, मैं इंतजार करूँगी।”

आब तहियासँ बेर-बेर सुजीतकेँ रूणाक चेहरा याद आबए लगलै। ओकर मोबाइल नम्बर मांगबाक तरीका, सुन्दर आवाज आ मुस्की हँसी ‘ठीक है मैं तीन साल इंतजार करूँगी’ ई सभकिछु सिनेमाक दृश्य जकाँ मनमे अबै आ चलि जाइ।

सुजीत तँ रहए युवे ने…। मन कने आगू-पाछू हुअ लगलै मुदा कोनो तरहेँ मनकेँ मनौलक। सोचलक जे एहि साल तँ नहि होएत मुदा ऐगला साल तक पहिने बहिनक बिआह कऽ लेब पछाइत किछु सोचब।

देखिते-देखिते दिल्लीमे सुजीतकेँ साल भरि समय केना बितलै से पतो ने चललै। माए फोन केलकै-

“बौआ, छठिमे छुट्टी लऽ कऽ गाम जरूर अबिहह।”

सुजीत जवाब देलकै-

“नइ माँ, रेखा ले लड़का देखही आ ऐगला साल तक रेखाक बिआह कऽ ले। एक्के बेर हम बिआहेमे एबौ।”

 

सुजीतक माएकेँ बेटाकेँ देखबाक इच्छा चरमपर चढ़ि गेल रहैन। मुदा बेचारी की कऽ सकैत छल। घरक प्रति बेटाक चिन्ता देखि माइक मन विह्वल भऽ गेलइ। आँखिसँ टप-टप नोर खसए लगलै। अनायास मुहसँ निकैल गेलै-

“हे भगवान! सबहक बेटा एहने होइ।”

सुजीत खूब धूम-धामसँ रेखाक बिआह करबाक सपना संजोने छल। किएक तँ बहिनकेँ ई कखनो ने बुझि पड़ए जे बाबू नहि छैथ, हम बपटुग्गर छी। हम कोनो चीजक कमी नहि रहए देबइ।

रेखाक बिआहक लेल माए तत्पर भेली। कइयेक जगहसँ देखा-सुनी हुअ लगलै। होइत-हवाइत ऐगला साल तक घनश्यामपुर गामक राकेशक संग रेखाक बिआह ठीक भेल। दहेजमे दू लाख रूपैआ नगद, दू भरि सोन आ एकटा अपाची गाड़ी गछल गेलइ।

सुजीतकेँ अपना माएसँ फोनपर सदैत सम्पर्क बनल रहैत छल। फोनेसँ बहिनक बिआहक सभ ओरियान गामपर करबा लेने छल। कपड़ा-लत्ता, गहना-गुरिया दिल्लीएमे कीनि लेलक। सुजीतक मालिक-मलिकानि सुजीतकेँ खूब मानै छेलइ। बियौहती बरक वास्ते सोनाक चेन आ औंठी मालिक कीनि देलके। अबैत काल मलिकाइन एक लाख रूपैआ नगद देलकै आ कहलकै-

“नीकसँ बहिनक बिआह करिकऽ आ तँ तोहर तनखा आरो बढ़ा देबउ।”

मालिक बिहार सम्पर्क क्रान्तिमे दरभंगा धरिक टिकट एक महिना पहिनहि कटा देने रहइ। सुजीत खूब खुशी-खुशी गाम विदा भेल। दूटा दोस्त दिल्ली स्टेशनपर गाड़ीमे चढ़ेबाक लेल आएल रहइ। बहिनोइ आओर आओर बाँकी दोस्त कहलकै-

“अहाँ ताबे चलू हमसभ बिआहक दिन लगिचाकऽ आएब।”

सुजीत गाड़ीमे बहिनक बिआहसँ सम्बन्धित केतेको तरहक बात सोचि रहल छल। चोरी-चपाटीक डरसँ गाड़ीमे कखनो सुतबो नहि कएल। माए-बहिनसँ रातिमे केतेको बेर फोनसँ गप केलक। मोबाइलपर गेम खेलाइत-खेलाइत केना राति बीति गेलै से पतो ने चललै। समयसँ सकुशल दरभंगा स्टेशनपर उतरल। सुजीतकेँ बुझा रहल छेलै जे दरभंगा आबि गेलौं तँ घर आबि गेलौं। सामान बेसी रहै तँए कुलीक मदैतसँ सभ चीज लऽ कऽ स्टेशनसँ बाहर भेल।

ऑटोसँ सभ सामान लऽ बस पकड़ैले दिलीमोड़ लग एन.एच. 57क पुलक निच्चाँ ऑटोबला उतारि देलकै। खुदरा करेबाक उद्देश्यसँ बगलक एकटा दोकानपर एकटा स्प्राइट बोतल किनलक। पान खेलक आ ओही दोकानदार लग ठाढ़ एकटा अनठिया सुजीतसँ पुछलक-

“सर, अहाँ केतए जाएब?

ओ कहलकै- “केतए केर गाड़ी चाही अहाँकेँ?”

सुजीत बाजल-

“हमरा मधुबनी जेबाक अछि।”

ओ कहलकै-

“अहाँ ओइ गेट लग चलि जाउ, ओतहि बस भेट जाएत।”

सुजीत लग एकटा बड़का ट्राली बैग, एकटा बैग हाथमे आ एकटा बैग पीठपर टांगल रहइ। सुजीतक सुन्दर शरीर नीक परिवारक सदस्यक सूचना दऽ रहल छेलै जे शहरसँ कमाकऽ गाम जा रहल अछि।

सुजीत सभ सामान लऽ बस पड़ावक मुहाँनपर पहुँचल आ अखियासए लगल। जे बस एहि रस्ते निकलत। एतए भेटत तँ भेटत वा नहि भेटत तँ पड़ावक भीतर तँ भेटबे करत। सुजीत ई सभ सोचिये रहल छल कि दोसर अनठिया बेकती आबि कऽ पुछलकै-

“सर, कहाँ जाएब?”

सुजीत झट-दे बाजल-

“बाबूबरही।”

“बाबूबरही! बाबूएबरही तँ हमरो घर अछि। बाबूबरहीमे केतए?”

सुजीत अप्पन गामक नाओं बाजल-

“दुदाही।”

“अच्छा, रामेश्वर बाबूकेँ तँ चिन्हते हेबैन। हुनका परिवारसँ हमरा दोस्तियारे चलैत अछि।”

सुजीतकेँ खुशी भेलै जे अपना तरफ-के एकटा बेकती भेट गेला। उत्सुकतासँ सुजीत पुछलक-

“अहाँ, इमहर केतए घुमि रहल छी?”

“धूर्र! की कहूँ। हमरा भौजीकेँ डिलेवरी छेलैन्ह। हुनके लऽ कऽ डाक्टर लग आएल रही। हुनका पाँच दिनक वास्ते भर्ती हुअ पड़लैन आब आपस गाम जा रहल छी।”

“बसेसँ जाएब किने?”

“नहि, हम स्कार्पियो लऽ कऽ आएल छी। हे देखै छिऐ एन.एच.पर लागल अछि। खालीए जा रहल छेलौं तँ मनमे भेल जे देखिऐ अपना तरफ-के कियो हेता तँ नेने जेबैन। चलू अहाँ चलब तँ।”

सुजीत सोचलक संयोग नीक अछि। गाम लगहक गाड़ी भेट रहल अछि। किएक ने अहीसँ चलल जाए। दुनू गोरे मिलि कऽ सामान सभ गाड़ीक डिक्कीमे रखलक। गाड़ीमे एकटा महिला आ एकटा पुरुष सेहो बैसल रहइ। सुजीत गाड़ीमे बैसल। माएकेँ फोन लगा सभ बात कहैत बाजल जे एक-डेढ़ घन्टामे पहुँच जेबौ।

माए खुशी-खुशी बेटाक लेल नीक-नीक तीमन-तरकारी आ तरूआ-बघरूआक ओरियान करए लागल।

 

एन.एच.57 पर गाड़ी आस्ते-आस्ते चलि रहल छल। किछु किलोमीटर आगाँ चलिकऽ गाड़ी एकटा दोकानपर रूकल। ड्राइवरकेँ बगलमे बैसल बेकती एकटा स्प्राइटक बोतल निकालक आ चलती गाड़ीमे सभकियो पीलक। सुजीतसँ सेहो स्प्राइट पीबाक लेल आग्रह कएल गेल। ओ पीबैसँ आनाकानी करए लगल। लेकिन बेसी आग्रह केलाक बाद सुजीत अनजान, अल्पकालीन मित्रक प्रेमपूर्ण सोभाव आओर आग्रहकेँ ठुकरा नहि सकल। कनीकालक बाद सुजीतकेँ आँखि झाँपए लगलै। बेहोश हुअ लागल आ बुझि गेल जे हम नाशाखुरानीक गिरोहक शिकार भऽ गेलौं अछि। नि:सहाय छल किछु करियो ने सकैत छल।

ठीक एक घन्टाक बाद सोशल मीडियापर सुजीतक फोटो वायरल भेल। सकरीक आसपासमे एन.एच.सँ निच्चाँ एकटा छोट-छीन सड़कक कातमे सुजीतक देह लहुलहुआन भेल बेहोसीक हालतमे पड़ल छलइ। डरसँ देहमे कियो भिड़बे ने करइ। पुलिस आबिकऽ अस्पतालमे भर्ती करा देलकै।

सोशल मिडिया पर गामक लोक आओर सम्बन्धी सभ चीन्हि गेल जे ई दुदाही गामक सुजीत छी। सभ चिन्तित भऽ गेल। सुजीतक माए-बहिनकेँ जखन पता चललै तँ ई सभ हाकरोस करए लगली। माए उठा-उठा देह पटकए लगली। दाँती-पर-दाँती लागए लगलै आ आँखिक आगू चौन्ह आबए लगलै। लोक सभ बोल-भरोस दैत रहइ।

तैबीच गामक किछु युवक चारि चक्का गाड़ीसँ सकरी अस्पताल विदा भेल। सुजीतक माए नहि मानलखिन। ओहो गाड़ीमे बैस गेली। अस्पताल पहुँच बेटाक हालत देखि

माए बदहवास भऽ गेली।

सुजीत जखन होशमे आएल तँ माएकेँ हाथ पकैड़ कऽ कहए लगल-

“माँ, रेखाक बिआह…। केना हेतइ…। हे भगवान…!” ❑

      – रामचंद राय

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