मैथिली जगत के डॉ. योगानंद झा जी की रचनाएं

लेखक परिचय
डॉ. योगानन्द झा (11.01.1955) मैथिली भाषा-साहित्यक प्रतिबद्ध अध्येता, लेखक ओ साहित्यकार थिकाह। लोकजीवन ओ लोकसाहित्य, मैथिली शाक्त साहित्य, लोकसाहित्य ओ शब्द-सम्पदा, आलेख सञ्चयन, स्नेहलता, गहबर गीत, कथा-लोककथा, मैथिली लोककथा संचय, पार्थिवक सपना, नेपाली बेङक साहसिक काज, फकीर मोहन सेनापति, मंगल प्रभात, चतुर्दश सूत्र आदि हिनक प्रणीत, सम्पादित ओ अनूदित पोथी सभ छनि। पी.सी. रायचौधरी कृत ‘फॉक टेल्स ऑफ बिहार’क मैथिली अनुवाद ‘बिहारक लोककथा’पर साहित्य अकादेमी हिनका 2005 इसवीक अनुवाद पुरस्कार प्रदान कऽ समलंकृत कयने छनि।

 

आदर्शक उपस्थापन: ‘मौलाएल गाछक फूल’

श्रीजगदीश प्रसाद मण्डल बहुआयामी रचनाकार छथि। कथा, उपन्यास, नाटक आदि‍ विभि‍न्न विधामे प्रभूत रचना द्वारा ई आधुनिक मैथिली साहित्यमे बेछप स्थान बना चुकल छथि। ‘मौलाएल गाछक फूल’ हिनक औपन्यासिक कृति थिकनि। आदर्शवादी विचारधारासँ ओतप्रोत हिनक एहि उपन्यासमे मण्डलजीक उदात्त सामाजिक चिन्तनक प्रक्षेपण भेल अछि।
एहि उपन्यासक अधि‍कांश चरित्र उदार ओ सज्जन प्रकृतिक छथि। हुनका लोकनिक हृदय पवित्र छनि आ स्वार्थ ओ वासनासँ फराक रहि समाज उत्थानक हेतु चिन्तन करैत देखि पड़ैत छथि। स्वभावत: एहन चरित्र सबहक अनुगुम्फनसँ ई उपन्यास एक गोट परिष्कृत सामाजिक चिन्तनक मार्ग प्रशस्‍त करैत देखि पड़ैत अछि।
एहि उपन्यासक केन्द्रीय पात्र छथि रमाकान्त। उपन्यासक अधि‍कांश घटना हिनके परित: आघूर्णित होइत अछि। ई जमीन्‍दार छथि आ सुभ्‍यस्‍त सेहो। उदार विचार, इमानमे गंभीरता, मनुक्‍खक प्रति सिनेह हिनक चारित्रि‍क विशि‍ष्टता छनि। हिनकामे ने सूदि‍खोर महाजनक चालि छनि ने धन जमा कएनिहार लोकक अमानवीय व्यवहारे छनि। नीक समाजमे जेना धनकेँ जिनगी नहि अपितु जिनगीक साधन बुझल जाइत अछि, सएह रमाकान्‍तोक परिवारमे छनि। उपन्यासक आरम्भहिमे हिनक उदात्त चरित्रक परिचय भेटि जाइत अछि। गाममे अकाल पड़ि‍ जाइत छैक आ लोक सभ अन्न बेत्रेक मरब शुरू कऽ दैत अछि। मुदा रमाकान्त लग बखारीक बखारी अन्न पड़ल छनि। लोकक प्रति सहानुभूतिसँ द्रवित भऽ रमाकान्त अपन बखार फोलि दैत छथि आ काजक बदला अनाज कार्यक्रम शुरू कऽ अपन पोखड़ि‍केँ उरहबा लैत छथि। एहिसँ एक दि‍स जँ लोककेँ अकर्मण्‍यतापूर्वक खराती अन्न लेबासँ परहेज करबैत छथि तँ दोसर दि‍स अन्नाभावमे लोककेँ मरबासँ बचबैत छथि।
रमाकान्तक ई अवधारणा छनि जे संसारक यावन्‍तो मनुक्‍ख अछि सभकेँ जीबाक अधि‍कार छैक। सभकेँ सभसँ सिनेह होएबाक चाहिऐक। मुदा जाहि परिवेशमे हमरालोकनि जीबि रहल छी, जाहि ठाम व्यक्तिगत सम्‍पत्ति आ जवाबदेहीक बीच मनुक्‍ख चलि रहल अछि, ओहि ठाम सिनेह खण्डि‍त होएबे करतैक आ सिनेह खण्डि‍त भेने पारस्‍परिक द्वेष ओ लड़ाइ-दंगाकेँ कोनो शक्ति रोकि नहि सकैत छैक। तेँ नूतन समाजक निर्माणक हेतु, सामाजिक समरसता हेतु त्याग भावनाक आवश्‍यकता छैक आ छैक पारस्‍परिक सहयोग भावनाक विस्‍तारक आवश्‍यकता। तेँ ओ अपन दू सए बीघा जमीन गामक भूमिहीन परिवार सबहक बीच वितरणक निर्णय लैत छथि जाहिसँ गामक सभ व्यक्ति सुखी आ सम्‍पन्न भऽ सकथि। यद्यपि रमाकान्तक एहि प्रकारक अतिशय उदारता, जमीन्‍दारक प्रवृत्ति ओ समसामयि‍क यथार्थक दृष्टिञे सर्वथा अविश्वसनीय प्रतीत होइत अछि, तथापि ई उदात्त लेखकीय कल्पना उपन्यासकारक एहि उद्देश्‍यकेँ प्रतिपादि‍त करैत अछि जे यावत् समाजमे एक दि‍स अति विपन्न आ दोसर दि‍स अति सम्‍पन्न लोकक वास रहत, ताधरि सामाजिक समरसताक बात स्वप्‍ने बनल रहत।
रमाकान्तक उदारताक अतिरंजित वर्णन उपन्यासमे अनेक स्‍थलमे देखि पड़ैत अछि यथा ओ शशि‍शेखर नामक युवकक उच्‍च शि‍क्षाक हेतु सहायता प्रदान करैत छथि, गाममे स्‍कूल स्थापित होएबा काल शि‍क्षकक भोजनादि‍क व्यवस्थाक भार अपना ऊपर लऽ लैत छथि, टमटमबलाक दु:खिताहि घरवालीक इलाजक हेतु ओकरा पर्याप्‍त टाका दऽ सहायता करैत छथि, आदि‍।
एहि उपन्यासमे मण्डलजी मिथिलाक ग्राम्य जीवनमे पसरल धर्मभीरुताक समस्याक यथार्थवादी चित्रण कएलनि अछि। एहि समस्याक चित्रण हेतु ओ सोनेलाल नामक पात्रक अवतारणा कयने छथि। सोनेलालक पत्‍नी दु:खित पड़ि‍ जाइत छथिन। ओ हुनका अस्‍पतालमे देखएबाक हेतु अपन जमीन भरनापर दऽ दैत छथि। उपचार भेलापर हुनक पत्‍नी स्वस्‍थ भऽ जाइत छथिन। मुदा ताही क्रममे ओ साधु भण्‍डाराक कबुला कऽ लैत छथि। एहि कबुलाकेँ पूर करबाक हेतु साधुक दूटा दल निमंत्रि‍त कएल जाइत छथि। हिनका लोकनिक हेतु सोनेलाल पर्याप्‍त भोज्‍य पदार्थ जुटबैत छथि। मुदा साधुक दुनू दलमे एकटा वैष्‍णव सम्प्रदायक तथा दोसर कबीरपन्‍थी सम्प्रदायक रहैत छथि आ दुनू दल अपन-अपन साम्प्रदायि‍क अभि‍मानसँ ग्रस्‍त रहैत छथि जकर कारणेँ भण्‍डारामे अनेक विसंगति उत्‍पन्न होइत छैक। मुदा सर्वाधि‍क कष्टकर स्थिति तखन बनैत छैक जखन वैष्‍णव सम्प्रदायक महन्‍थ भण्‍डाराक बाद स्थानक हेतु एक सए एक, अपना हेतु एक सए एक, भजनिया सभक हेतु एकावन-एकावन आ भनसीयाक हेतु एकासी-एकासी टाका दक्षि‍णाक मांग कऽ बैसैत छथि। पराभवमे पड़ि‍तहुँ धर्मभीरु सोनेलालकेँ ओ रकम चुकता कऽ देबऽ पड़ैत छनि। तत:पर दोसर दल सेहो हुनका ओतबे दक्षि‍णा देबाक हेतु दबाब दैत छनि आ सेहो हुनका चुकता करऽ पड़ैत छनि। एहि तरहेँ धर्मभीरु लोक पाखंडी साधु समाज द्वारा कोना लूटल जाइत छथि, तकर वर्णन कऽ उपन्यासकार एहि समस्याक प्रति लोकदृष्टिकेँ सचेत करबाक उपदेश दैत छथि। अवश्‍ये दोसर मण्डली द्वारा दक्षि‍णाक रकम घुरा देलासँ सोनेलालकेँ थोड़ेक राहत भेटैत छनि आ ओहि मण्डलीक प्रति लोकजगतमे सहानुभूति जगैत छैक।

मिथिलाक अनेक लोकव्यवहार सेहो लोकजीवनक अभ्‍युन्नतिमे बाधक रहल अछि। एहू दि‍स मण्डलजी संकेत कएलनि अछि। एहि हेतु ई शशि‍शेखर नामक पात्रक अवतारणा कएलनि अछि। शशि‍शेखर कृषि‍ कओलेजमे प्रवेश पाबि‍ जाइत अछि। ओ एहि प्रवेशसँ अपन भावी सुखी जीवनक परिकल्पना कऽ अत्यन्त आनन्‍दि‍त होइत अछि। ओकर पिता खेत बेचियो कऽ ओकर पढ़ाइ पूरा करएबाक संकल्प लैत छथि। मुदा किछु दि‍नक बाद पिता बीमार पड़ि‍ जाइत छथिन। शशि‍शेखर खेत बेचियो कऽ हुनक इलाज करबैत छनि मुदा ओ कालकवलित भऽ जाइत छथिन। तत:पर अपन बूढ़ि माताक सेवा करैत शशि‍शेखर अपन आगूक पढ़ाइ कोना जारी राखि सकत ताहि बि‍न्दुपर विचार करैत खेते बे‍चि कऽ पिताक श्राद्धो कऽ लैत अछि। परिणामत: ओकरा कओलेज छोड़बाक बाध्‍यता होइत छैक। एहि तरहेँ मण्डलजी लोकजगतमे व्याप्‍त अन्धविश्वास ओ लोकव्यवहारसँ बचले उत्तर समाजक कल्‍याणक दि‍शानिर्देश करबैत देखि पड़ैत छथि। अन्तत: रमाकान्तक सहायतासँ शशि‍शेखरकेँ अपन पढ़ाइ पूर करबाक संबल भेटि जाइत छैक, मुदा श्राद्धादि‍क लोकव्यवहारक समस्याक प्रति जुगुप्‍साक भाव अवश्‍य उत्‍पन्न भऽ जाइत छैक।
अशि‍क्षा ग्राम्यजीवनक दैन्यक अन्यतम कारण अछि। एखनो मिथिलाक निम्‍नवर्गीय समाजमे शि‍क्षाक सर्वथा अभाव छैक जकर कारणेँ सामाजिक उन्नति बाधि‍त छैक। मुदा एहू समस्याक समाधान सामाजिक लोकनिक जागरूकतासँ सम्भव छैक। मसोमातक दान कएल जमीनपर विद्यालयक स्थापना, हीरानन्‍द द्वारा बौएलाल ओ बौएलाल द्वारा सुमित्राकेँ शि‍क्षि‍त कऽ ओकरा सबकेँ स्‍तरीय जीवन जीबाक चित्रण ‘मौलाएल गाछक फूल’ उपन्यासक एही उद्देश्यपरक दृष्टिकोणक परिचायक थिक।
आजुक ग्राम्य समाजक ई विडम्बना छैक जे पढ़ल-लिखल धि‍यापुता पाइ कमएबाक अन्ध दौड़मे शामिल भऽ गेल छैक। तेँ ओ सभ अपन गाम-समाजकेँ छोड़ि‍ हजारो मीलक दूरीपर नोकरी करऽ चलि जाइत छैक। परिणामत: बूढ़ माता-पिताक परिचर्या कएनिहार केओ रहि नहि पबैत छैक। पारिवारिक विघटनक फलस्वरूप सामाजिक जगतमे पसरल एहि विसंगतिक कथा रमाकान्त ओ हुनक डाक्‍टर पुत्र सबहक कथामे भेटैत अछि। मण्डलजी एहू विडम्बनासँ समाजकेँ बचबाक संकेत एहि उपन्यासक माध्‍यमे कएलनि अछि। हुनक भावना सुबुधक एहि उक्तिमे साकार भेल अछि- ‘आइक जे एकांगी परिवार अछि ओ कुम्‍हारक घराड़ी जकाँ बनि गेल अछि। बाप-माए कत्तौ, बेटा-पुतोहु कत्तौ आ धि‍या-पुता कत्तौ रहऽ लागल अछि। मानवीय सिनेह नष्ट भऽ रहल अछि।’ यद्यपि ई भावना कृषक युगीन होएबाक कारणेँ साम्प्रतिक यथार्थक दृष्टिञे पुरातन पद्धतिक अछि, तथापि एकटा वैचारिक द्वन्‍द्वकेँ ठाढ़ करैत अछि।
मण्डलजी रमाकान्तक दुनू डाक्‍टर पुत्रक मद्रासमे नोकरी करबाक लाथे किछु ग्रामेतर समस्या सबहक चित्रण सेहो कएलनि अछि। एहिमे सर्वाधि‍क प्रमुख अछि धनलिप्‍सामे व्यस्‍त समाजक बेचैनी। महेन्‍द्रक एहि कथनसँ ई प्रतिभासित होइत अछि जे ग्रामेतर समाजमे अत्यधि‍क सुविधा सम्‍पन्न लोकोक जीवन असामान्य भऽ गेल छैक- ‘अपनो सोचै छी जे एते कमाइ छी, मुदा दिन राति खटैत-खटैत चैन नहि भऽ पबैत अछि। कोन सुखक पाछू बेहाल छी से बुझिये ने रहल छी। टी.भी. घरमे अछि, मुदा देखैक समये ने भेटैत अछि। खाइले बैसै छी तँ चिड़ै जकाँ दू-चारि कौर खाइत-खाइत मन उड़ि‍ जाइत अछि जे फल्‍लांकेँ समय देने छिऐक, नहि जाएब तँ आमदनी कमि जाएत। तहिना सुतइयोमे होइत अछि। मुदा एते फ्रीसानीक लाभ की भेटैत अछि? सिर्फ पाइ। की पाइये जिनगी छिऐक?’
एतावता मौलाएल गाछक फूलमे लोकजीवनक विविध समस्या ओ तकर समाधानक मार्ग तकबाक प्रयत्‍न भेल अछि। ‘अपन जिनगीकेँ जिनगी देखैत, परिवार-समाजक जिनगी देखब जिनगी थिक।’ मण्डलजीक आदर्शवादी चिन्तनक रूपमे प्रतिफलित भेल अछि। प्राय: एही तथ्‍यकेँ ध्‍यानमे रखैत महेन्‍द्र द्वारा गामहिमे स्वास्‍थ्‍य केन्‍द्र स्थापनाक विचार अभि‍व्यक्‍त कराओल गेल अछि। ओतऽ ओकर परिवारक एकटा डाक्‍टरक नित्य मरीजक सेवा, ग्रामवासीक सेवाक हेतु उपलब्‍ध रहितैक।
सामाजिक समन्‍वयक प्रति पक्षधरता एहि उपन्यासमे भजुआक कथामे भेटैत अछि। जाति-पातिमे बँटल ग्राम्य समाजमे छूताछूत, ऊँच-नीचक विचार अदौसँ रहलैक अछि। गाँधीजीक स्वतंत्रता आन्‍दोलनक समय अछूतोद्धारक प्रति हुनक चेष्‍टा ओ स्वातंत्र्योत्तर कालमे समाजक बदलैत रीति-नीतिक कारणेँ यद्यपि ग्रामो समाजमे अस्‍पृश्‍यताक प्रति भाव बदललैक अछि तथापि सहभोजनक दृष्टिञे एखनो जाति-पातिक बीच दूरी बनले छैक। रमाकान्त द्वारा डोम भजुआक ओहि ठाम जाए भोजन करबाक कथाक माध्‍यमे मण्डलजी समाजक एहि समस्याक आदर्शपूर्ण समाधान देखौलनि अछि। अवश्‍ये एहिमे इहो संकेत देल गेल अछि जे समरसताक बाधक तथाकथित अस्‍पृश्‍य लोकनिक शुचिताक प्रति प्रतिबद्धताक अभाव रहलनि अछि। मुदा से अशि‍क्षाजन्य अछि तथा शि‍क्षा द्वारा ओकरो बदलल जा सकैत छैक।
मण्डलजीक एहि उपन्यासमे नारी विषयक चिन्तनमे प्राचीन भारतीय नारीलोकनिक आदर्शेक उपस्थापन भेल अछि। हिनक अधि‍कांश नारी पात्र यथा रधि‍या, श्‍यामा, सुगि‍या, सोनेलालक बहिन आदि‍मे पतिपरायणा भारतीय नारीक चित्रांकन भेल अछि। नारी-शि‍क्षाक प्रतिबद्धता सेहो मण्डलजीक एहि उपन्यासमे सुमित्राक माध्‍यमे अभि‍व्यक्त भेल अछि जे पढ़ि-लिखि कऽ नीक परिचारिकाक रूपमे गामक हेतु एकटा सम्‍पत्ति बनि जाइत अछि। सुजाता सेहो एहने नारी पात्र छथि जे श्रमिक परिवारमे जन्‍म लेलाक बादो महेन्‍द्रक सहायता पाबि‍ डाक्‍टरनी बनि जाइत छथि आ महेन्‍द्रक भावहु सेहो भऽ जाइत छथि। मुदा शि‍क्षि‍ताक संगहि मण्डलजी जाहि नारीस्वरूपक परिकल्पना एहि उपन्यासमे रूपायि‍त कएलनि अछि, से थिक नारीक सबला रूप। नारीक एहि स्वरूपक चित्रांकन सितियाक चरित्रमे भेल अछि। ओ नहि केवल अपन इज्जतिपर हाथ उठौनिहार ललबाकेँ थूरि कऽ राखि दैत अछि अपितु जखन ललबाक गामक लोक ओकरा गामपर आक्रमण कऽ दैत छैक, तँ नारीलोकनिक सेनानायि‍का बनि ओकरो सभकेँ परास्‍त कऽ दैत अछि।

स्वातंत्र्योत्तर भारतमे भ्रष्‍टाचार एक गोट कुष्ट रोगक रूपमे देखि पड़ैत अछि। एहिसँ राष्‍ट्रीय जीवनमे कुण्‍ठा अबैत छैक। मास्‍टरक बहालीमे हीरानन्‍दक आक्रोशक कारणक माध्‍यमे मण्डलजी सरकारी स्‍तरपर होइत भ्रष्‍टाचारक यथार्थकेँ अभि‍व्यक्ति प्रदान कएलनि अछि।
मिथिलाक आर्थिक समृद्धिक हेतु एहि ठाम जलकरक सदुपयोग करबाक चिन्तन सेहो एहि उपन्यासमे अभि‍व्यक्त भेल अछि। मौलाएल गाछक फूल’क भाषा अत्यन्त सरल, सहज ओ गमैया मैथिली थिक।
मण्डलजी अपन कल्पित संसारकेँ मूर्त्त, विश्वसनीय ओ सजीव रूपमे प्रस्तुत करबाक हेतु लेखनक अनेक प्रविधि‍केँ एहि उपन्यासमे समाहित कयने देखि पड़ैत छथि। अनेक ठाम हिनक नाटकीय भाषा-प्रयोग अत्यन्त तीव्रता ओ सहजताक संग भेल अछि, यथा-

की कहैले एलह?’

‘नत दैले एलौं।’

कोन काज छिअह?’

‘काज-ताज नै कोनो छी।

ओहिना अहाँ चारू गोरेकेँ खुअबैक विचार भेल’ इत्यादि‍।

अनेक ठाम ई संस्‍मरणात्मक भाषाक सुष्‍ठु प्रयोग कयने छथि यथा- ‘एहि गाममे पहिने हम्‍मर जाति नै रहए। मुदा डोमक काज तँ सभ गामेमे जनमसँ मरन धरि रहै छै। हमरा पुरखाक घर गोनबा रहै। पूभरसँ कोशी अबैत-अबैत हमरो गाम लग चलि आएल। अखार चढ़िते कोसी फुलेलै। पहिलुके उझूममे तेहेन बाढ़ि चलि आएल जे बाधक कोन गप्‍प जे घरो सभमे पानि ढुकि गेल। तीन-दि‍न तक ने मालजाल घरसँ बहराएल आ ने लोके। पीह-पाह करैत सभ समय बि‍तौलक। मगर पहिलुका बाढ़ि रहै, तेसरे दि‍न सटकि गेल।’ इत्यादि‍।
परिवेश ओ वातावरणक निर्माणक हेतु मण्डलजी अभि‍धा शक्तिसँ संपुष्ट भाषाक प्रयोग द्वारा सटीक ओ विश्वसनीय बि‍म्ब ठाढ़ करबामे समर्थ देखि पड़ैत छथि यथा- ‘दू साल रौदीक उपरान्त अखाढ़। गरमीसँ जेहने दि‍न ओहने राति। भरि-भरि राति बीअनि हौँकि-हौँकि लोक सभ बि‍तबैत। सुतली रातिमे उठि-उठि पानि पीबए पड़ैत। भोर होइते घाम उग्र रूप पकड़ि‍ लैत। जहिना कियो ककरो मारैले लग पहुँचि जाइत, तहिना सुरूजो लग आबि‍ गेलाह। रस्‍ता-पेराक माटि सिमेंट जकाँ सक्कत भऽ गेल अछि।’ इत्यादि‍।
पात्रक परिचय दैत काल मण्डलजी ओकर रूपरेखा, वेश-भूषा, आयु आदि‍क वर्णन अनेक ठाम ओहि पात्रक ठोस व्यक्तित्‍वकेँ अभि‍व्यक्त करबाक हेतु कएलनि अछि। मुदा एहि प्रकारक वर्णनक प्रति हुनक प्रतिबद्धता नहि देखि पड़ैछ। तथापि जतऽ कतहु ओ पात्रक मनोभावक वर्णन कयने छथि ओहि ठाम हुनक भाषा विश्‍लेषणात्मक प्रकृतिक देखि पड़ैत अछि जाहिसँ पात्रक हृदयगत भावक प्रति पाठककेँ सुनिश्‍चि‍त आकलनक अवसर भेटि जाइत छनि, यथा- ‘ब्रह्मचारीजीक बात सुनि रमाकान्तकेँ धनक प्रति मोहभंग हुअए लगलनि। सोचए लगलाह जे हमरो दू सए बीघा जमीन अछि, ओते जमीनक कोन प्रयोजन अछि। जँ ओहि जमीनकेँ निर्भूमिक बीच बाँटि दि‍ऐक तँ कते परिवार आ कत्ते लोक सुख-चैनसँ जिनगी जीबै लागत। जकरा लेल जमीन रखने छी ओ तँ अपने तते कमाइ छथि जे ढेरिऔने छथि। अदौसँ मिथिलाक तियागी महापुरुषक राज रहल। किएक ने हमहूँ ओहि परम्‍पराकेँ अपना, परम्‍पराकेँ पुन:र्जीवित कऽ दि‍ऐक।’
एहि तरहेँ ‘मौलाएल गाछक फूल’मे भाषाक कुशल ओ रचनात्मक प्रयोग भेल अछि जाहिसँ वर्णनमे सटीकता, सहजता, बि‍म्बधर्मिता, स्‍पष्टता ओ मनोवैज्ञानिक विश्‍लेषणक क्षमता प्रदर्शित होइत अछि। अपन गुणक कारणेँ मण्डलजीक कथासंसारमे विश्वसनीयता देखि पड़ैत अछि आ ओ अपन प्रौढ़ विचार ओ अनुभूतिकेँ पाठकीय मानसमे स्थानान्तरित करबामे सफल भेल छथि। अन्तत: महेन्‍द्रक उक्ति- ‘समाज रूपी गाछ मौला गेल अछि, ओहिमे तामि, कोड़ि‍, पटा नव जिनगी देबाक अछि जाहिसँ ओहिमे फूल लागत आ अनवरत फुलाइत रहत’मे उपन्यासक उद्देश्य स्‍फुट भेल अछि। स्वभावत: मण्डलजी एहि कृतिक माध्‍यमे ग्राम ओ ग्रामेतर जीवनक संगहि व्यक्ति, परिवार, समाज ओ राष्‍ट्रक अभ्‍युन्‍नतिक हेतु एकर प्रत्‍येक इकाइकेँ त्याग ओ समर्पणक भावनासँ ओत-प्रोत रहबाक आदर्श जीवन पद्धति अपनयबाक संदेश देलनि अछि। हिनक ई संदेश ‘सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे सन्तु निरामया:, सर्वे भद्राणि‍ पश्‍यन्तु मा कश्‍चि‍द् दु:खभाग भवेत्’क भावनाक पुन:उपस्थापन थिक।

ग्रामजीवनक सत्यक संवाहक: ‘अर्द्धांगिनी’

श्रीजगदीश प्रसाद मण्डल बहुआयामी रचनाकारक रूपमे मैथिली जगतमे प्रसिद्ध छथि। कथा-कविता-नाटक-उपन्यासादि विधाकेँ ई अपन स्वर्णलेखनीसँ सजबैत रहलाह अछि। हिनक समस्‍त रचना हिनका मिथिला-मैथिलक लोकजीवनक प्रत्यक्षदर्शी ओ व्याख्याताक रूपमे प्रस्तुत करैत रहलनि अछि। लोकजीवनक यथार्थकेँ यथावत् चित्रि‍त कऽ मानवीय संवेदनाकेँ उद्बुद्ध करब हिनक रचना सबहक प्रधान विशिष्टता रहलनि अछि। प्रतिभा, व्‍युत्‍पत्ति ओ अभ्‍यास एहि तीनू कारकसँ सम्बलित हिनक रचनावलीमे मिथिला-मैथिलक समस्या ओ तकर समाधानक दिशा भेटैत अछि। वर्त्तमान जीवनमे होइत नित्य नूतन परिवर्त्तनक खण्ड चित्रकेँ यथावत् प्रस्तुत करब हिनक कथाक विषय-वस्तु रहलनि अछि जकरा ई सहज रीतियेँ प्रस्तुत करैत रहल छथि।

मण्डलजीक कथा सभ मिथिलाक माटि-पानिक कथा थिक। हिनक कथा सभमे मिथिलाक ग्राम्य जीवनक आशा-निराशा, सुख-दु:ख, हर्ष-उल्‍लास आ जीवन-संघर्षक व्याख्या भेटैत अछि। मिथिलाक सामाजिक-आर्थिक ओ राजनीतिक जीवनमे होइत परिवर्त्तन सभकेँ सूक्ष्म मनोवैज्ञानिक विश्लेषण द्वारा ई अपन कथा सभकेँ प्रवाहमयता, रोचकता ओ विश्वसनीयताक संग प्रस्तुत करबामे सिद्धहस्‍त कलाकारक रूपमे प्रतिष्ठि‍त भेलाह अछि।

हिनक कथासंग्रह ‘अर्द्धांगिनी’ बीस गोट कथाक समुच्‍चय थिक। एहि कथा सभमे नोकरिहाराक जीवनक संत्रास, परिश्रमी कृषकक उल्‍लास, सांस्कृतिक पावनि-तिहारमे पैसल अन्धविश्वासक प्रति जुगुप्‍सा, ग्राम्य जीवनमे जातीय व्यवसायक महत्‍व, क्रमश: टुटैत सम्बन्ध-बन्ध, सामाजिक जीवनक विभिन्न समस्या आदिक सूक्ष्म विश्लेषणपूर्वक लोकमंगलक कामना देखि पड़ैत अछि। युगीन समस्याक कारण एवं तकर समाधानक प्रति चिन्तनशीलता हिनक वस्तु-विन्यासकेँ प्रेरक-प्रभावकारी बनौने रहलनि अछि जाहिमे परम्‍परित कथाधाराक आदर्शोन्‍मुख यथार्थवादी दृष्टि‍कोण स्‍पष्ट रूपेँ प्रस्‍फुटित देखि पड़ैछ। मिथिलाक लोकजीवनक उत्थानक प्रति सम्वेदनात्मक अभिव्यक्ति- कौशलक कारणे मण्डलजीक कथा सभ हिनका आधुनिक कथाकार लोकनिक अग्रि‍म पंक्ति‍मे ठाढ़ कऽ देलकनि अछि।
एहि संग्रहक पहिल कथा थिक ‘दोहरी मारि’। एहि कथामे पुरुष पात्र गुलाबक मनोवैज्ञानिक विश्लेषण भेल अछि। अवकाश प्राप्‍त प्रोफेसर गुलाब कतोक वर्षसँ डाइबीटीज ओ ब्‍लड-प्रेसर सदृश बिमारी सभसँ ग्रस्त छथि। गामक घर-घराड़ी पर्यन्त बेचि शहरमे बनाओल मकानमे पति-पत्नी एकाकी रहैत छथि। बेटा-पुतोहु परदेशमे रहैत छनि तेँ हिनका लोकनिक सुधि लेनिहार कियो नहि छनि। नागर जीवनक चाकचिक्‍यसँ सम्‍मोहित भऽ ई शहरी जीवनमे बसि तँ गेल छथि, मुदा चोरी-डकैती, लूट-पाट, अपहरण, गंदगी आदि समस्यासँ ग्रस्‍त शहरी जीवनक प्रति असौकर्य ओ ग्राम्य जीवनक सौहार्दपूर्ण वातावरणक प्रति आकर्षण जगैत छनि। हद तँ तखन भऽ जाइत अछि जखन पुत्र द्वारा ई समाद भेटैत छनि जे पौत्रक मूड़न घरपर नै भऽ कऽ वैष्‍णो देवीमे होयतनि, जाहि लेल हुनकोलोकनिकेँ ओही ठाम अएबाक आमंत्रण भेटैत छनि आ ओ अपनाकेँ अशक्‍य बूझैत छथि।
एहि‍ कथाक माध्‍यमे मण्डलजी साम्प्रतिक जीवनमे उपकल विस्थापनक समस्याक कारणे अवस्था-दोषग्रस्‍त बुजुर्ग पीढ़ीक व्यथाकेँ अभिव्यक्ति प्रदान कएलनि अछि। एहि समस्या सभक कारणे नोकरी-चाकरी भेला उत्तर लोक शहरमे बसि ग्राम्यजीवनक सौहार्दसँ तँ वञ्चि‍त होइते छथि संगहि वृद्धावस्थामे जखन परिवारोक लोक हुनक संग छोड़ि दैत छथिन तँ अपनाकेँ वंचित अनुभव करऽ लगैत छथि।
एही समस्याकेँ संग्रहक दोसर कथा ‘केना जीब’ मे सेहो उठाओल गेल अछि। एकर पुरुष पात्र अवकाशप्राप्‍त प्रोफेसर छथि। ई बेटाकेँ पढ़ा-लिखा कऽ विदेश पठयबामे सफल तँ होइत छथि मुदा बेटा विदेशी सभ्‍यता ओ संस्कृतिक रंगमे रमि जाइत छनि आ हिनका लोकनिक खोजो-पुछारि नहि कऽ पबैत छनि। परिणामत: दुनू परानी एकाकी जीवन बितएबाक हेतु बाध्‍य होइत छथि। एहन स्थितिमे हिनका लोकनिक लग एकमात्र अवलम्ब बचि जाइत छनि- जिजीविषा ओ संघर्ष। यैह जिजीविषा ओ संघर्ष करबाक मानसिकता एहि कथाक युग जीवनक अनुकूल संदेश थिक जे एकरा पूर्व कथासँ भिन्न आ स्‍तरीय बनबैत अछि। एहि कथाक वृद्ध दम्‍पत्ति कखनो हताश आ निराश नहि देखि पड़ैत छथि।
संग्रहक तेसर कथा ग्राम्य जीवनक परिश्रमी कृषकक गाथा थिक जे अपन परिश्रमक बलेँ अपन भाग्‍यविधाता बनल अछि। ‘नवान’ शीर्षक एहि कथामे मिथिलाक लोकजीवनक विभिन्न खण्डचित्र उपस्थित कएल गेल अछि यथा वृक्ष-लतादिक पहिल फड़ देवताकेँ चढ़ायब, गाय बिअएलापर महादेवकेँ दूधसँ अभिषेक करब आदि। ग्राम्य जीवनमे पसरैत जातीय ओ साम्प्रदायिक विद्वेष दिस सेहो एहिमे संकेत कएल गेल अछि। मुदा एहि कथामे मिथिलाक लोकजीवनक आर्थिक स्थितिकेँ बदहाल करएबला जाहि समस्यापर विशेष दृष्टि‍निक्षेप कएल गेल अछि, से थिक बाढ़िक समस्या। एहि समस्याक कारणे मिथिलाक ग्राम्य जीवनक आर्थिक व्यवस्था अस्‍त-व्यस्‍त भऽ जाइत अछि। तथापि एहि कथाक नायक आधुनिक वैज्ञानिक पद्धति अपनाए नव किसिमक धान उगबय लगैत छथि, तीमन-तरकारीक नगदी फसिल उपजाबय लगैत छथि आ नूतन नस्लक माल-जाल पोसि अपन जीवनकेँ खुशहाल बना लैत छथि। वस्तुत: एहि वैज्ञानिक पद्धति द्वारा मिथिलाक कृषक जीवनक समुन्नति भऽ सकैत अछि, से संदेश देब कथाकारक उद्देश्‍य छनि।

संग्रहक चारिम कथा थिक ‘तिलासंक्रान्तिक लाइ’। एहि कथामे ग्राम्यजीवनमे पसरल अन्धविश्वासपर प्रहार कएल गेल अछि। तिलासंक्रान्ति एकटा एहन पर्व थिक जे सोत्‍साह मिथिलाक घर-घरमे मनाओल जाइत अछि। एहि दिनसँ सूर्य उत्तरायण भऽ जाइत छथि आ क्रमश: शीत ऋृतु वसन्त आ गृष्‍म दिस बढ़ऽ लगैत अछि। मिथिलाक प्रशस्‍त भोजन चूड़ा-दही एहि दिन गरीबो-गुरबा धरि खाइते अछि। चूड़ा ओ मुरहीक लाइ, तिलबा आदि देवताकेँ चढ़ा प्रसाद रूपमे ग्रहण करब एहि पावनिक कृत्य होइत छैक। शीत ऋृतु रहलाक बादो मिथिलाक ग्राम्यजीवन एहि पर्वक ओरिआओनमे मास दिन पूर्वहिसँ लागि जाइत अछि। मुदा एहि पर्वक प्रसाद ग्रहण करबाक हेतु प्रात:स्नान जरूरी बूझल जाइत छैक। मिथिलामे ई अपवाद सेहो पसरल छैक जे एहि दिन जे किओ भोरे नदी वा पोखरिमे डूब दैत छथि हुनका नदी-देवता तत्‍काले लाइ धरा दैत छथिन। एही अपवादपर विश्वास कऽ गोपाल नामक एकटा नेना बारहे बजे रातिमे नदीमे डूब देबऽ चल जाइत अछि आ ठंढसँ ग्रस्‍त भऽ जाइत अछि। ग्राम्यजीवनक अन्धविश्वासी समाजकेँ एहि कथाक माध्‍यममे ई संदेश देल गेल अछि जे वस्तुत: ई पावनि प्रकृति-परिवर्त्तनपर आधारित अछि आ एहिमे बिनु पाखंड कयने लोककेँ अपन सामर्थ्‍यक अनुसार समयपर स्नान करबाक चाही, नहि कि अन्धविश्वासमे पड़ि रोगग्रस्‍त भऽ जएबाक चाही। हरड़ीवालीक उक्ति‍- “अहाँ जकाँ रातिमे कुकुर घिसियौने छलौं जे भोरे नहा कऽ पाक हएब” अन्धविश्वासक प्रति बेस प्रहार कएलक अछि। कथामे एहि पावनिक तैयारीमे जुटल लोकजीवन अत्यन्त सुन्‍दर चित्र भेटैत अछि।
पाँचम कथा ‘भाइक सिनेह’ भाइ-भैयारीक आपसी कलह ओ आत्यन्तिक प्रेमक कथा थिक। शिष्टदेव आ विचारनाथ दुनू भाइ एक दोसराक प्रति अगाध श्रद्धा, भक्ति ओ बन्‍धुत्‍वक भाव रखैत छथि मुदा देयादिनी लोकनिक बीच खट-पटसँ परिवारमे भिन्न-भिनाउज भऽ जाइत छनि। भिन्न-भिनाउजक मूलमे अर्थसत्तापर कबजा रहैत अछि। मुदा जखन दुनूक मनमे परस्‍पर प्रेमक भाव जगैत छनि तँ दुनू एक-दोसराक दु:ख बँटबाक हेतु तत्पर भऽ जाइत छथि। एहि कथामे कृषक जीवनमे पारस्‍परिक सहयोग, सद्भाव ओ शक्तिक अनुकूल श्रमपर आधारित संयुक्‍त परिवारक उपयोगिताक परम्‍परित अनुगायन देखि पड़ैछ।
संग्रहक छठम कथा ‘प्रेमी’ वस्तुत: प्रेमकथाक रूपमे लिखल गेल अछि मुदा एहि कथामे रचनाकारक उद्देश्‍य समाजिक जीवनमे व्याप्‍त दहेज प्रथाक कुरीतिकेँ समाप्‍त करबाक संदेश सएह अभिव्यक्‍त भेल अछि। पक्षधर आ ज्ञानचन्‍द दू गामक छथि। दुनूमे प्रगाढ़ दोस्‍ती छनि। ज्ञानचन्‍दक पौत्र परीक्षा देबाक हेतु पक्षधरक गाम अबैत छथिन जतए परीक्षावधि धरि ज्ञानचन्‍दक पौत्र लोचन आ पक्षधरक पौत्री सुकन्याक बीच संवाद होइत छनि आ दुनू परस्‍परानुरक्‍त भऽ जाइत छथि। लोचनकेँ विदा करबाक क्रममे सुकन्या ओकरे संग ओकरा घर धरि चलि जाइत अछि जे ओहि गाममे गुलञ्जरक वस्तु भऽ जाइत छैक। विजातीय रहलाक बादो पक्षधर आ ज्ञानचन्‍द पारस्‍परिक मैत्रीकेँ सम्बन्धमे बदलि एकटा आदर्शक स्थापना करैत छथि। पक्षधरक उक्ति- “जइ समाजमे मनुक्‍खक खरीद-बिकरी गाए-महींस, खेत-पथार जकाँ होइए ओइ समाजकेँ पञ्च तत्त्वक बनल मनुक्‍ख कहल जा सकैत अछि? जँ से नै तँ हमर कियो मालिक नै छी। कियो अगुँरी देखाओत तँ ओकर अगुँरी काटि लेबै।” मे दहेज प्रथाक समर्थक ओ प्रेम-विवाह, विजातीय विवाहक अवरोधक तत्वपर प्रहार कएल गेलैक अछि।
संग्रहक सातम कथा ‘बपौती सम्‍पत्ति’ कृषक जीवनमे जातीय व्यवसायक महत्त्वक अवधारणापर आधारित अछि। सम्प्रति कृषक-मजदूरक पलायनसँ गामक अर्थ-व्यवस्था चरमरा गेल अछि, तकरा सुधारबाक हेतु एहि कथामे चिन्तनक एकटा दिशा भेटैत अछि। कथानायक गुलटेन अपन पिताक सिखाओल व्यवसायसँ नीक जकाँ परिवारक परिपालन करबामे सक्षम अछि। तेँ कथाकारक उद्देश्‍य ग्राम्य स्वावलम्बनकेँ पुन:स्थापित करबाक हेतु मार्गदर्शन करब बुझना जाइत अछि।
आठम कथा ‘डंका’ लोकजीवनक अवमूल्यनकेँ रेखांकित करैत अछि। एकर मुख्‍य पात्र भैयाकाका गामक रक्षा करबाक संकल्प लऽ अपनो गाममे अखड़ाहाक प्रचलन शुरू करैत छथि जाहिसँ पास-पड़ोसक गाम किंवा जमीन्‍दारक पहलमान हुनकालोकनिकेँ अबल बूझि प्रताड़ित नहि कऽ सकनि। एहि तरहेँ समस्‍त समाजक हितकामनाक प्रति हुनका व्यग्रता छनि मुदा साम्प्रतिक जीवनमे स्वार्थक प्रवेशसँ ओ ई जानि विचलित भऽ जाइत छथि जे आब गाम-घरक लोकक कल्‍याणक गप्‍प तँ दूर, लोक अपनो सर-सम्बन्धीक खोज-पुछारि करबासँ कतरयबाक मूल्यरहित संस्‍कार पोसऽ लागल छथि। हिनक उक्ति- “माए-बाप, भाए-बहिन सबहक सम्बन्ध आ शिष्‍टाचार एहि रूपेँ नष्ट भऽ रहल अछि जे साधनाभूमिकेँ मरुभूमि बनब अनिवार्य छै” मे समस्‍त कथासार अभिव्यक्‍त भऽ जाइत अछि।
नवम कथा ‘संगी’ शिक्षा जगतमे भेल अध:पतनक कथा थिक जाहिमे स्‍कूल-कओलेजमे शिक्षाक व्यवसायीकरणक फलस्वरूप सामान्य जनसँ छीनल जाइत शिक्षाक समस्यापर विमर्श भेल अछि। एकर समाधानक हेतु दूटा संगी पारस्‍परिक परिणयपूर्वक क्रान्तिक शंखनाद करैत देखि पड़ैत छथि। कथाक घटनाक्रम आकस्‍मि‍कताक दोषसँ ग्रस्‍त बुझना जाइछ, जे प्रभावान्‍वतिकेँ कमजोर करैत अछि।
‘ठकहरबा’ पूर्णत: राजनीतिक कथा थिक। एहिमे स्वातंत्र्योत्तर भारतमे पुलिस ओ नेता लोकनिक भ्रष्ट चरित्र, मतदानमे गड़बड़ी आदिक चित्रण करैत लोकजगतमे क्रमश: पसरैत भ्रष्‍टाचारक अतिरेकक चित्रण भेल अछि, जाहिसँ कोनो वस्तुक विश्वसनीयतापर प्रश्नचिन्ह लागि गेल अछि। ई कथा लोकतंत्रमे लोक आ तंत्र दुनूक स्‍खलनपर सोचबाक हेतु विवश करैत अछि।
‘अतहतह’मे मिथिलाक वैवाहिक प्रथामे बरियाती पक्ष द्वारा सरियाती पक्षकेँ देखार करबाक हेतु खाद्य वस्तुपर जोर देबाक परिष्‍कारक रूपमे सरियाती पक्ष द्वारा तकर बदला लेबाक कथा कहल गेल अछि। एहि कथामे बरियाती पक्षकेँ पानिक संग दवाइ पिआय ओकरा सभकेँ देखार करबाक प्रयास कएल गेल अछि जे लोकसंस्कृतिक प्रतिकूल होएबाक कारणेँ प्रतीयमान नहि भऽ सकल अछि। अवश्‍ये एहिमे वर पक्षमे शराब पीबि कऽ बरियाती जएबाक आधुनिक प्रचलनक विरुद्ध आक्रोशक अभिव्यक्ति भेल अछि। मण्डलजीक ई कथा कन्यादान-वरदानमे दुनू पक्षक सम्‍मान रक्षाक पारस्‍परिक दायित्‍वक प्रति कान्तासम्मि‍त उपदेश दैत अछि।
बारहम कथा ‘अर्द्धांगिनी’ एहि पोथीक नामकरणक आधार बनल अछि। एहि कथामे अवकाशप्राप्‍त शिक्षकक अत्यन्त सूक्ष्म मनोविश्लेषण भेल अछि। अपन कमाइक बलें ओ आजीवन अपन पत्नीकेँ दासीसँ आगू बुझबाक हेतु तैयार नै होइत छथि मुदा जखन नोकरी समाप्‍त भऽ जाइत छनि तखन पत्नीक आवश्यकतापर ध्यान जाइत छनि आ अर्द्धांगिनीक महत्त्व बूझि पड़ैत छनि। लेखक नारीक सेविका स्वरूपकेँ मर्यादित कऽ ओकरा पुरुषक समानान्तर मूल्य प्रदान करबाक पक्षपाती छथि, जकर अभिव्यक्ति एहि कथाक लक्ष्‍य बुझना जाइत अछि।
तेरहम कथा थिक। ‘ऑपरेशन’ एहि कथामे मइटुग्गर नेनाक सामाजिक स्थितिपर विमर्श कएल गेल अछि। जखन कोनो नेनाक माय असमय कालकवलित भऽ जाइत छैक, तँ समाज ओकरा अलच्‍छ कऽ कऽ बूझऽ लगैत छैक आ ककरो ओकर शारीरिक ओ मानसिक विकासक चिन्ता नहि रहैत छैक। मुदा जँ ओहि बच्‍चाक पिता दोसर विवाह कऽ ओकर प्रतिपालनक हेतु, स्थानापन्न माताक व्यवस्था करैत छथि तँ वएह समाज बेर-बेर ई जनबाक प्रयास करैत अछि जे सतमाय ओकर पालन नीक जकाँ कऽ रहल छैक वा नहि। समाजक ई व्यवहार ओकर क्रूर मानसिकताक परिचय दैत अछि जाहिसँ नेना आ ओकर पिता आहत होएबाक लेल बाध्‍य होइत छथि। लेखक समाजक एहि विरूपित मानसिकतापर व्‍यंग्‍य करब एहि कथाक उद्देश्‍य रखलनि अछि। एही माध्‍यमसँ अस्‍पतालक दुर्व्‍यवस्था तथा प्राइवेट प्रैक्‍टि‍सक कारणपर सेहो विमर्श कएल गेल अछि।
चौदहम कथा ‘धर्मनाथ’ ढहैत जमींदार परिवारक गाथा थिक। एहिमे दहेज प्रथाक उन्‍मूलनक हेतु सामाजिक जागरण कथाकारक उद्देश्‍य बुझना जाइत अछि। एकर नायक धर्मनाथ जमीन्‍दार परिवारक छथि आ पिताक अमलदारी धरि हुनक परिवार दहेजक संपोषक रहल अछि आ खेत बेचि-बेचि कन्यादान करैत अपन कुलाभिमानक रक्षा करैत रहल अछि। मुदा ई मिथ्‍याभिमान जमीन्‍दारी उन्‍मूलनसँ क्षत-विक्षत भऽ गेल छैक आ धर्मनाथ एहि स्थितिमे नहि रहि पबैत छथि जे पुत्रीक विवाह जमीन्‍दारे परिवारमे करबाक हेतु धन जुटा पाबथि। अन्तत: ओ प्रो. रामरतन सन दहेजविरोधी व्यक्तिक सहायतासँ एकटा कर्मयोगी बालकसँ अपन बेटीक विवाह ठीक कऽ लैत छथि आ मिथ्‍या प्रतिष्‍ठाकेँ चुनौती दैत छथि। परिणामत: हुनक पिता अपन कुलाभिमानपर प्रहार होइत देखि मृत्‍युकेँ प्राप्त कऽ लैत छथि। धिया-पुताक थपड़ी बजा-बजा ई कहब जे- “बाबा मुइलाह- पूरी-जिलेबीक भोज खायब..” वस्तुत: परम्‍परा आ अन्धविश्वाससँ जकड़ल सामाजिक व्यवस्थाक विनाशक प्रति उत्‍सव थिक जे दहेज प्रथाक उन्‍मूलनकेँ संकेतित करैत ई ईंगित करैत अछि जे जँ लोक मिथ्‍याभिमानक त्याग नहि करताह आ दहेज देब-लेबकेँ सामाजिक प्रतिष्‍ठाक मानदंड बनौने रहताह तँ अध:पतन अवश्‍यम्‍भावी अछि।
‘सरोजिनी’ प्रेमविवाहपर आधारित कथा थिक। नायिका सरोजिनी जमीन्‍दार घरक कन्या छथि। हिनक भाय हृदयनारायण बिलैतिन कन्यासँ प्रेमविवाह कऽ लेने छथिन। इहो अपन बालसखा रमेशक संग विवाह कऽ लैत छथि। रमेश हिनके नोकर घूरनक शिक्षित पुत्र छथि। आर्थिक ओ सामाजिक दुनू स्‍तरपर असमान लोकक विजातीय विवाहक समर्थनक ई आधार जे “अपन मालिक हम स्वयं छी। अखन धरि जातिक पहाड़ जे अपना समाजमे बनल अछि, ओकरा मेटाएब। जे समाज भूखलकेँ ने पेट भरैत अछि, ने नाङटकेँ वस्‍त्र दैत अछि, ने बेघरकेँ घरे। एतऽ धरि जे मूर्खकेँ पढ़ा नहि सकैत अछि, लूटैत इज्जतकेँ बचा नहि सकैत अछि, ओहि समाजकेँ विरोध करबाक कोन अधिकार?”
कथा उपदेशात्मक प्रकृतिक अछि तथा सिने जगतक वस्तु जकाँ असहजतासँ प्रभावित बुझना जाइत अछि। तथापि कथाकार जातीय व्यवस्थापर आधारित वैवाहिक पद्धतिकेँ गुण ओ प्रेमपर आधारित करबाक समर्थन कऽ एहि प्रथामे युगानुरूप परिवर्त्तनक आकांक्षी बुझना जाइत छथि। विश्रृंखलित होइत वैवाहिक व्यवस्थाक प्रति समाजक ध्‍यान आकृष्ट करब एहि कथाक उद्देश्‍य बुझना जाइत अछि।
संग्रहक सोलहम कथा ‘सुभद्रा’ विधवा विवाहक समस्यापर आधारित अछि। दैवयोगसँ सुभद्राक पतिक देहान्त हवाइ दुर्घटनासँ भऽ जाइत छनि। ओ अभिशप्‍त जीवन बितएबाक हेतु बाध्‍य भऽ जाइत छथि। एकर कारण ई अछि जे ओ जाहि जातिसँ अबैत छथि ताहिमे विधवा विवाहकेँ मान्यता नहि छैक। कथाकार रूपलाल बाबा नामक एक गोट गाँधीवादी चरित्रक अवतारणा करैत छथि जे नारी-समुत्थानक प्रति समर्पित छथि। हिनक मान्यता छनि जे जहिना पत्नीक मुइला उत्तर पतिकेँ दोसर विवाह करबाक अधिकार छैक तहिना पतिक मुइला उत्तर पत्नीयोकेँ दोसर विवाहक अधिकार भेटबाक चाही। रूपलाल बाबा सुभद्राक पिताकेँ मनाय सुशील नामक युवकसँ ओकर विवाह सम्‍पन्न करबैत छथि। एहि तरहेँ समाजमे विधवाकेँ मान्यता भेटैत छैक। आदर्शवादी संकल्पनापर आधारित ई कथा वस्तुत: एहि सामाजिक समस्याक प्रति कथाकारक प्रगतिवादी मूल्यकेँ उद्घाटित करैत अछि।
‘सोनमा काका’ एहि संग्रहक सतरहम कथा थिक। ई कथा मानव धर्मपर आधारित अछि। एकर प्रधान पात्र सोनमा काका स्वयं पत्नीक बीमारीसँ त्रस्‍त छथि। ओकर इलाज करा जखन गाम घूमैत छथि तँ रामकिसुन नामक एकटा बिगड़ैल व्यक्तिक मृत्‍युक समाचार भेटैत छनि। ओ व्यसनक चक्रमे पड़ि ततेक निर्धन भऽ गेल छल जे ओकरा लेल कफनो धरिक उपाय नहि छलैक। सोनमा काका समाजक सहायतासँ ओकर संस्‍कार करबैत छथि आ ओकर अनाथ बालककेँ अपन बेटीक संग विवाह कराय ओकर जीवनकेँ सामान्य बनयबाक प्रयत्न करैत छथि। कथाकार एहि आदर्श पुरुषक स्थापना कऽ ई सिद्ध’ करऽ चाहैत छथि जे जँ समाज चाहय तँ केहनो पैघ समस्याक निदान भऽ सकैत छैक।
अठारहम कथा ‘दोती बिआह’ परित्यक्‍ताक पुनर्विवाहपर आधारित अछि। एकर प्रमुख पुरुष पात्र उमाकान्त छथि जे पचास वर्षक आयुमे पत्नीक देहावसानक कारणेँ एकाकी जीवन जीबाक हेतु बाध्‍य छथि। जीवन-संगिनीक अभावमे हिनक दिन काटब पहाड़ भऽ गेल छनि। दोसर दिस यशोदिया नामक एकटा युवती अछि जकर पति दिल्‍लीमे नोकरी करैत छलथिन मुदा शहरी चाकचिक्‍यमे पड़ि यशोदियाकेँ परित्यक्त कऽ कतहु पड़ा जाइत छथि। निस्‍सहाय यशोदिया गाम घूरि अबैत अछि आ हरिनारायण नामक एक गोट सम्‍भ्रान्त व्यक्तिक आश्रममे रहि जीवन-यापन करऽ लगैत अछि। हरिनारायण उमाकान्तक स्थितिकेँ परखि हुनका यशोदिया संग विवाह करा दैत छथिन जाहिसँ दुनूकेँ अवलम्ब भेटैत छनि आ दूटा उजड़ल परिवार बसि पबैत अछि। एहि कथाक माध्‍यमे कथाकारक ई उद्देश्‍य स्‍पष्ट होइत छनि जे मानव जीवनकेँ सन्तुलित रखबाक हेतु पति-पत्नीमे किओ जँ एकाकी जीवन जीबैत अछि, तँ ओ अनेक प्रकारक मानसिक व्यथामे पड़ल रहैत अछि जकर निदानक हेतु समतूल युगल बनयबाक हेतु प्रयत्न होएबाक चाही।
उनैसम कथा ‘पड़ाइन’ ग्राम्य जीवनमे पसरल अराजकताक कथा थिक जकरा कारणेँ बलगर लोक निर्बलकेँ सता कऽ ओकरा गामसँ उपटयबापर लागल रहैत अछि। एहि कथाक पात्र चेथरू महाजनी अत्याचार, खेत-पथारमे बेइमानी-शैतानी, चोरि, बलपूर्वक दोसराक जजाति नष्ट करब आ माय-बहिनिक इज्जतक संग खेलवाड़ करब आदिसँ त्रस्‍त भऽ गाम छोड़ि दैत अछि आ नेपाल जा कऽ बसि जाइत अछि। ओतऽ परिश्रमपूर्वक अर्जित धनसँ सम्‍पत्तिशाली बनि नीक जकाँ गुजर करऽ लगैत अछि। एहि कथामे कथाकारक उद्देश्‍य ग्राम्य जीवनक किछु समस्या सभकेँ इंगित करब बुझना जाइत अछि। मुदा आधुनिक परिप्रेक्ष्‍यमे एहिमे स्वभाविकताक अभाव बुझना जाइत अछि।
‘कतौ ने’ कथा संग्रहक अन्तिम कथा थिक जे वस्तुत: यात्रा-वृत्तान्त थिक। एहिमे जनकपुर यात्राक वर्णन आएल अछि। गामक एकटा टोली जनकपुरमे विवाह पंचमीक मेला देखबाक हेतु प्रस्थान करैत अछि। विवाह पंचमी दिन ई लोकनि धनुषा दर्शन करबाक हेतु जाइत छथि आ ओतए गाड़ी खराब भऽ जएबाक कारणेँ विवाह पंचमीक रातिमे पुन: जनकपुर घुमि नहि पबैत छथि, जाहिसँ हुनका लोकनिकेँ जनकपुरक कार्यक्रम देखबाक अवसर नहि भेटि पबैत छनि। अन्तत: हारि-थाकि कऽ सभ सोचैत छथि जे कतए एलौं तँ कत्तौ ने। दुर्योगवशात् मनोरथपूर्त्तिमे बाधा होएबाक एहि कथामे वस्तुत: जनकपुर यात्राक एक गोट मनोरम वृत्तान्त भेटैत अछि।
एहि तरहेँ ‘अर्द्धांगिनी’ कथा संग्रह मिथिलाक ग्राम्य जीवनक विभिन्न आयाम ओ समस्या तथा तकर समाधान सबहक आदर्शोन्‍मुख यथार्थवादी व्याख्या थिक।
एहि संग्रहक कथा सभ वर्णन-प्रधान देखि पड़ैत अछि। कथाकारक शैली एहन छनि जे ओ कोनो घटनाकेँ प्रस्तुत करबासँ पूर्व ओकर पूर्वपीठिकाकेँ ततेक सघन कऽ दैत छथि जे पाठक ताहिमे तल्‍लीन भऽ जाइत छथि। एहि प्रकारक वर्णन-विन्यास हिनक औपन्यासिक वृत्तिकेँ स्‍पष्ट करैत छनि जाहिमे वर्णनक हेतु पर्याप्‍त अवसर रहैत छैक।
मनोविश्लेषण मण्डलजीक कथा सबहक अन्यतम विशिष्टता थिकनि। ई जाहि कोनो पात्रकेँ प्रस्तुत करैत छथि तकर अन्तस्‍तलमे प्रवेश कऽ ओकर भावराशिकेँ अभिव्यक्‍त कऽ दैत छथि जाहिसँ पात्रक चरित्र स्वत: स्‍फुट होमऽ लगैत छैक। उदाहरणार्थ ‘बपौती सम्‍पत्ति’ कथामे गुलटेनक मानसिक स्थितिकेँ अभिव्यक्‍त करैत ई पाँती द्रष्टव्य अछि- “मनमे उठलै- पुरने कपड़ा जकाँ परिवारो होइए। जहिना पुरना कपड़ाकेँ एक ठाम फाटल सीने दोसर ठाम मसकि जाइत अछि, तहिना परिवारोक काज अछि। एकटा पुराउ दोसर आबि जाएत। मुदा चिन्ता आगू मुँहेँ नहि ससरि रुकि गेलै। चिन्ताक अँटकिते मनमे खुशी भेलै। अपनापर ग्‍लानि भेलै जे जाहि धरतीपर बसल परिवारमे जन्‍म लेबाक सेहन्ता देवी-देवताकेँ होइत छनि ओकरा हम मायाजाल किअए बुझैत छी। ई दुनियाँ ककरा लेल छै? ककरो कहने दुनियाँ असत्य भऽ जाएत? ई दुनियाँ उपयोग करैक छैक नहि कि उपभोग करैक।”
मण्डलजी कथाक भाषामे मैथिलीक गमैया बोली-वाणीक सहज स्वरूप अभिव्यक्‍त भेल अछि। ई पात्रानुरूप भाषाक प्रयोग कएलनि अछि जाहिसँ प्रत्‍येक पात्रक बौद्धिक ओ सामाजिक स्थिति स्‍पष्ट होइत चल जाइत अछि। हिनक कथा सभमे कथाकारक भाषा सेहो मैथिलीक लोकजगतक भाषाहिक अनुगमन करैत अछि जाहिमे सहजता अछि। ई कनेको कृत्रि‍म प्रयोगसँ ई बचैत रहल छथि। हिनक भाषामे तद्भव ओ देशज शब्‍दक प्रचुर प्रयोग भेल अछि। युग्‍म शब्‍दक प्रयोग हिनक भाषाकेँ लालित्य प्रदान करबामे आ ओकर प्रवाहमयतामे सहायक रहलनि अछि। उदाहरणक हेतु माल-जाल, लेब-देब, दोकान-दौरी, चट्टी-बट्टी, ताड़ी-दारू, छहर-महर, चोरी-डकैती, बाल-बोध, बेटा-पुतोहु, भोज-काज, अन्‍हर-बिहाड़ि, दार-मदार, सुक-पाक, भुखल-दुखल, चीज-बौस, घुसका-फुसका आदिकेँ देखल जा सकैछ।
मण्डलजी कथा भाषाक ई अन्यतम विशिष्टता थिकनि जे ई कोनो स्थितिकेँ पाठकक समक्ष अभिव्यक्‍त करबाक हेतु चमत्‍कारिक उपमानक प्रयोग करैत छथि जाहिसँ वस्तुस्थितिक स्‍पष्ट चित्र पाठकक सोझाँ आबि जाइत छनि यथा- “जहिना खढ़ाएल खेतमे हरबाहकेँ हर जोतब भरिगर बूझि पड़ैत छैक तहिना सुशीलक मन समस्याक बोनाएल रूप देखलक। जहिना पहाड़सँ निकलि अनवरत गतिसँ चलि नदी समुद्रमे जाय मिलैत अछि तहिना ने टटघरक ज्ञान उड़ि कऽ सर्वोच्‍च ज्ञानक समुद्रमे मिलत।” आदि।
एतावता कहल जा सकैछ जे मण्डलजीक कथा वर्णनक दृष्टि‍ञे मिथिलाक ग्रामजीवनक यथार्थवादी चित्र, घटनाक दृष्टि‍ञे आदर्शक प्रति अभिभूत, सूक्ष्म मनोविश्लेषणक प्रति प्रतिबद्ध तथा उद्देश्‍यक दृष्टि‍ञे लोक मंगलकारी अछि। मैथिलीक आधुनिक कथा लेखन हिनक रचना सभसँ सम्बलित भेल अछि आ एकर समाजोपयोगी तत्व सभ अनन्त काल धरि मिथिलाक लोकजीवनकेँ प्रेरित-प्रभावित करैत रहत।

– डॉ. योगानंद झा

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