मैं क्लान्त पथिक हूँ प्रेम राह का कविता – जितेंद्र यादव ‘ नीरज ‘

मैं क्लान्त पथिक हूँ प्रेम राह का

हृदय को शीतलता दो तुम।

रूक जाऊँ न यहीं अभी मैं

पते की राह बता दो तुम।।

न जाने कितने आए और

कितने गए इधर से हैं।

पदचिन्हों का शेष मिटा न

वो अब कहाँ दिखा दो तुम।।

मै क्लान्त पथिक हूँ…….

अब भी न‌ए लोग आते हैं क्यों

इन दुर्गम राहों में।

पता नहीं पाते हैं कुछ वो

या बिक जातें हैं भावों में।।

मैं कहता हूँ कौन गया और

कौन बचा दिखलादो तुम।।

मैं क्लांत पथिक हूँ…..

मैं सच कहता हूँ या मिथ्या

ये सबको मालूम है गर।

तो किसने किसको छोड़ा है

ये सच सच बतला दो तुम।।

मेरी बातों को सुनकर ही

अब सबको सही बता दो तुम।।

मैं क्लांत पथिक हूँ…..

जितेंद्र यादव (नीरज)

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