मैं कैसा हूँ’ का जवाब
मैं सफलताओं का इन्तिज़ार कर रहा था
और एक असफल सरकार गिरने का भी,
पर जाने क्या हुआ ?
मेरे भीतर का आदमी गिर गया,
देश का समाचार सुनकर!
मैं चुप था कि उनकी चाल देख सकूँ
तभी बड़बोलों का एक झुण्ड आया,
और, मुझे गूँगा कहकर निकल गया।
मैंने “लोकप्रियता” को ड्योढ़ी पर रोक कर रखा
कहा : अभी बाक़ी है दुनिया का एक अध्याय,
तुम कल आना।
मैं प्रतीक्षा से पीड़ित नहीं हुआ,
जितना कि प्रधानमंत्री की भाषा से!
– पराग पावन