मैं अपने लिए बस तुझे ढूंढती हूं हिंदी कविता – सपना राजपूत

सारे जहाँ में, मैं इक तेरा शहर ढूंढती हूं,

पागल हूं मैं कुछ पल सूंकू की, हवा ढूंढती।

 

नही है कोई सा भी रोग मुझको,

मैं बस दिल के दर्द की दवा ढूंढती हूं।

 

मैं जानती हूं, तू मुझसे मिलेगा नही कभी,

मैं फिर भी तेरे घर का पता, ढूंढती हूं।

 

सारी ख्वाहिशों ने तोड़ दिया है अब दम,

मैं अपने लिए जीने की वजह ढूंढती हूं।

 

छुपकर देख सकूँ तेरी बीबी बच्चों को तेरे आंगन में,

मैं कोई ऐसी दीवार कोई ओट, ढूंढती हूं।

 

पहचान को छुपाए रहूं, तेरे आस-पास मैं सदा,

रहने को तेरे घर के सामने ही एक जगह ढूंढती हूं।

 

मेरे खुद के वजूद का तो मुझे कुछ पता नहीं,

मैं अपने लिए बस तुझे ढूंढती हूं।

– सपना राजपूत

Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments