महासागरों में छिपे: गुमनाम योद्धा, हिंदी कविता – प्रतीक झा

महासागरों में छिपे: गुमनाम योद्धा

मैं बात करूंगा उनकी आज,
जिनके जीवन से अनजान हैं लोग,
जो सागर की गहराईयों में,
सहते हैं त्याग और वियोग।

 

न कोई खबर, न कोई पुकार,
चुपचाप फर्ज़ निभाते हैं,
परमाणु पनडुब्बी में बंद,
दुनिया से दूर चले जाते हैं।

 

कहाँ किसी ने जाना उनको,
जीवन उनका संघर्ष भरा,
घर-परिवार से दूर सभी,
उनका त्याग था सच्चा खरा।

 

समुद्र की गहराईयों में,
वीर नायक हमसे दूर,
प्राकृतिक हो या युद्ध का कहर,
हर पल संकट में घिरे ज़रूर।

 

जब सोचता हूँ उनके बारे में,
मन पीड़ा से भर जाता है,
कब छूटेगा वह बंधन उनका,
जीवन कब मुस्काता है।

प्रार्थना है मेरी सब से,
राजनेता अहंकार छोड़ें,
हथियारों का हो नाश सदा,
युद्ध की ज्वाला ना फिर मोड़ें।

आओ मिलकर संकल्प करें,
परमाणु का अंत करें सदा,
वो नायक जो गहराई में बंद,
जीवन में पाएं खुशियों का धरा।

– प्रतीक झा ‘ओप्पी’
शोध छात्र
इलाहाबाद विश्वविद्यालय, प्रयागराज

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