लहर लहर शब्दों की चलकर,
भावों के फिर बने समंदर,
उठते , गिरते ज्वारों में जब,
एक कहानी बन जाती है,
कवि की कविता कहलाती है।
चांदनी रात में दो दिल चहके,
बगिया में फिर भंवरे बहके,
पुष्पों में जब ठंडी ठंडी,
पुरवाई खुल के गाती है,
कवि की कविता कहलाती है।
घुमड़ घुमड़ घर मेघा आए,
मन के बिछड़े मीत मिलाए,
चमक, कड़क कर जब ये बिजली,
काली बदरी छुप जाती है,
कवि की कविता कहलाती है।
– वर्षा सक्सेना