लड़कियां कविता – पल्लवी मंडल बिहार

लड़कियां

जब भी वो हँसती है अल्हड़ की तरह

लोग उसको पागल कह देतेहैं

और जब चुप रहती है,

तो बेचारी…

गर बोलने लगे वो बेबाकी से

तो इसपे टिप्पणी कर देते

“ज्यादा पढ़ लिख ली है। ”….

गर जानने की उत्सुकता में पूछा उसने कभी कुछ

“तुम नहीं समझोगी” ये कह कर चुप करवाया गया

न जाने उसको किन-किन बातों के लिए

रुलाया गया !

फिर भी ठाना उसने तितलियों सा उड़ना

पर….

जब भी वो उड़ना चाही तितलियों सा

लोगों ने उसके पारंपरिक पायल को दिखाया….

इस मोड़ पे घरवालों ने भी नहीं है साथ निभाया

संभाला पढ़ी लिखी लड़कियों को किताबें कलम और डायरियों ने।

जो पढ़ न पाई किसी कारण वश उसको

संभाला मटमैली चादर की सिलवटों के

संग सौंधी सी खुशबू वाले तकियों ने!

खटकती ही हैं लड़कियां आज भी…

ना ही लोगों ने अपना नजर बदला ना ही अपने नजरियों को !!

 

पल्लवी मंडल 

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