वो सोचता है कि आदमी
डर जाता तो अच्छा।
तोहमत न लगता मर
और जाता तो अच्छा।।
तूफान का ताना बाना
खुद ही पहले बुनता है।
और चाहता है चुपचाप
गुजर जाता तो अच्छा।।
नदी के पेट में घर
बनाकर भी रहता है।
चाहता है बाढ़ का पानी
उतर जाता तो अच्छा।।
एक – एक करके उधेड़
देता है पहले पंख सारे।
फिर चाहता है चिड़िया की
जिंदगी संवर जाता तो अच्छा।।
पहले काले कारनामों की नई
इबारात लिखता है विकास,
फिर चाहता है कोई कुतर
चूहा जाता तो अच्छा।।
– राधेश विकास ( प्रवक्ता ) प्रयागराज