ख़ुद से करने हैं कुछ सवाल मुझे,
मेरी तस्वीर से निकाल मुझे।
अब भी रखते हैं पुर – मलाल मुझे,
तेरी निस्बत के माहों शाल मुझे।
सर्द मौसम पसंद था उस को,
उसने कोहरे की भेजी शाल मुझे।
कोई ताबीर कर रिहाई की,
ग़मे – फ़र्कत से अब निकाल मुझे,
अश्क सदके में बांट देती हूं,
हिज़्र रखता है माला – माल मुझे।
– तारा इक़बाल
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