काँटो का इशारा हो गया गज़ल – प्रदीप प्यारे

ग़ज़ल

उस हसीं का जब नजारा हो गया,

दिल बहुत बेकल हमारा हो गया।

 

जिन्दगी मुझको हसीं लगने लगी,

कोइ जब जान से भी प्यारा हो गया।

 

प्यार में धोके मिले इतने कि , फिर

अपना भी व्यवहार न्यारा हो गया।

 

आसतीं के साँप सब अपने हुए,

घर यूँ सांपो का पिटारा हो गया।

 

मां दुखी रहती है केवल इसलिए

दूर नज़रों से दुलारा हो गया.

 

उसके नखरे जब जियादा बढ़ गए,

फिर मोहब्बत में खसारा हो गया।

 

जिन्दगी से फिर न कुछ शिकवा रहा,

जब गरीबी में गुज़ारा हो गया।

 

थे नशे में प्यार के हम चूर जो,

एक – ब – एक उसका उतारा हो गया,

 

ज़ख्म गुल देने लगे ‘ प्यारे’ मुझे,

जब कि काँटो का इशारा हो गया।

प्रदीप प्यारे

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