कि लोग बनना चाहे मेरे जैसा
मैं ऐसी हूं
मैं वैसी हूं
मैं जैसी भी हूं
मैं खुद के जैसी हूं!
मुझे नहीं बनना उसके जैसा
मुझे नहीं बनना इसके जैसे
मैं खुदको बनाना चाहती हूं, खुद के जैसा!!
मुझे नहीं चाहिए आसमां सी ऊंचाई
नहीं चाहिए धरती सी खुशहाली
ना सूरज सी रौशनी चाहिए
ना चांद सी खूबसूरती
मुझे नहीं चाहिए औरों सा दिखावटी गहना
मुझे नहीं आता बंद दरवाजा के पीछे, लहजे में रहना!
मुझे नहीं चाहिए ये अपने या ग़ैर ये बेमतलब के बैर
मुझे नहीं समझ आता ये झूठी दुनियादारी
ये मतलब की रिश्तेदारी
और जो नहीं है मेरे जैसा मैं क्यों बनू उनके जैसा ,
मैं तो खुदको बनाना चाहती हूं वैसा
की लोग बनना चाहे मेरे जैसा…
कि काश एक दिन मैं बन जाऊ वैसा
की सूरज से भी तेज रौशनी हो मेरी
और चांद से ज्यादा खूबसूरत जहां!!
***
ऐसा हो ही नहीं सकता
मैं अक्सर पापा से कहा करती हूं
की जब भी मेरे बारे में आपको कोई कुछ बोले
तो सही गलत का निर्णय लेने से पहले
एक दफा मुझसे पूछ लेना, पापा
पूछ लेना आप, कि मैं गलत हूं भी या नहीं
मुझपे भरोसा हो न हो
अपने दिए संस्कारों पे आप भरोसा करना
और मुझे भरोसा है कि
आप, मुझ पर भरोसा रखेंगे!
प्रिय पापा
आसमान में सितारें तो बहुत है
पर चांद का होना कुछ और है
मेरे जीवन में सहारे तो बहोत है
पर पापा, आपका होना कुछ और बात है!
की चांद में खुद कितने ही दाग क्यों न हो
वो आसमां को फिर भी रौशन रखता है
मेरे लिए वैसे ही है मेरे पापा
की सब कुछ खो के भी मुस्कुराते है वो!
वो थक के भी मुझे चलना सीखाते हैं
वो जानते है कि कब देनी है थपकी और कब थप्पड़
की उम्र हो चुकी है उनकी फिर भी
वो हैं हिम्मत से खड़े
मैं हूं उन्हीं के सहारे इस तरह से खड़े!
की मेरी मजबूती की नींव ओर हिम्मत वाला पॉवर बैंक है वो, वो है तो मैं ‘मैं’ हूं
वो न होते तो शायद मैं, मैं न होती
मेरे सपनों की उड़ान है मेरे पापा!
की इस कलयुग में भी
कोई शिद्दत से रिश्ता निभा रहें हैं
मुझे मेरे सपनों तक वो पहुंचा रहें हैं
अपने हिस्से की सारी खुशियाँ
मुझपें लुटा रहें हैं!
की उनकी परवरिश और
उनके संस्कारों ने मुझे दी है हिम्मत
हालातों से लड़ने की
हर मुश्किल से निकलने का ,
खुद के लिए लड़ने का और
हर सफर में आगे बढ़ने का!
और आखिर में
मैं बस इतना कहना चाहती हूं, कि
जब तक जीवन में आपका साथ है और सर पे आपका हाथ है
मैं हालत से हर मान लू
ऐसा हो ही नहीं सकता!!
– ज्योति दिनकर
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