खुद की मुलाकात
खुद से खुद कि गर मुलाकात हो जाती,
सच कहता हूँ कि ये जिंदगी संवर जाती।
नज़रों ने देखी है दिल में जमाने की रंगत,
दिल भी होता रंगीन तो जिंदगी संवर जाती।
कोशिशों के बाद भी दिल से मैल गई नहीं,
हो जाती सोच निर्मल तो जिंदगी संवर जाती।
हिम्मत ही हुयी नहीं खुद को परखने की,
चाहत भी हुयी होती तो जिंदगी संवर जाती।
रही हो मिठास भले अल्फाज़ में ज़ुबान की,
दिल में भी अगर होती तो जिंदगी संवर जाती।
आ गए अब तो खाई के आखिरी छोर तक,
पहले ही समझ लेते गर, तो जिंदगी संवर जाती।
भरता ही रहा उम्र भर फटी झोली को मैं,
जमीं पर भी नज़र होती तो जिंदगी संवर जाती।
– मोहन तिवारी, मुंबई