ज़िंदगी अब किस तरह बसर होगी,
दिल नहीं लग रहा मोहब्बत में।
मुझे अब तुमसे डर लगने लगा है,
तुम्हें मुझसे मोहब्बत हो गई क्या।
शर्म, दहशत, शिक्षक, परेशानी,
नाज़ से काम क्यों नहीं लेती।
आप, वो, जी, मगर, ये सब क्या है,
तुम मेरा नाम क्यों नहीं लेती।
ये काफ़ी है कि हम दुश्मन नहीं हैं,
वफ़ा दारी का दावा क्यूं करें हम।
जमा हमने किया है गम दिल में,
इसका अब सूद खाए जाएंगे।
उस गली ने ये सुनकर सब्र किया,
जाने वाले यहां के थे ही नहीं।
सोचूँ तो सारी उम्र मोहब्बत में कट गई,
देखूं तो एक शख़्स भी मेरा नहीं हुआ।
मुद्दतों बाद इक शख़्स से मिलने के लिए,
आइना देखा गया, बाल संवारे गए।
मर गए ख़्वाब सबकी आंखों के,
हर तरफ़ है गिला हकीकत का।
चारसाजों की चारासाजी से,
दर्द बदनाम तो नहीं होगा।
हां, दवा दो, मगर ये बतला दो,
मुझ को आराम तो नहीं होगा।
अपना ख़ाका लगता हूं,
एक तमाशा लगता हूं।
अब मैं कोई शख्स नहीं,
उसका साया लगता हूं।
तू भी चलती थी तो वादे – शबा कहते थे,
पांव फैलाए अंधेरों को दिया कहते थे।
उनका अंजाम तुझे याद नहीं है शायद,
और भी लोग थे जो खुद को खुदा कहते थे।
Nice work
Awesome