लड़कियाँ हौसले बुलंद करें न कि गुहार लगाएं,
जरूरी है कि, बेटियां अब हथियार उठाएं।
चढ़ के दरिंदो के वक्ष पर, आँखों को नोच कर,
हाथों को तोड़ – तोड़ कर, गर्दन को मरोड़ कर।
खून को निचोड़ कर अब जीत की हुंकार लगाएं,
जरूरी है कि बेटियां अब हथियार उठाएं।
मुण्ड काट असुरों का सकल विश्व साफ करें,
चामुंडा का रूप ले समरांगण हाहाकार मचाए।
जरूरी है की बेटियाँ अब हथियार उठाएं,
ज़रूरी है की बेटियां अब हथियार उठाए।
– दिव्या दीक्षित