जब चुनाव का शंख बजा था – राघवेंद्र सिंह राघव, हास्य व्यंगकार

जब चुनाव का शंख बजा था
राजनीति का मंच सजा था
ताल ठोंकते थे प्रत्याशी
उत्साहित थे भारत वासी
बात हो रही हर इक घर में
लोकतंत्र के इस सागर में
अपना सारा भारत अबकी
जमकर खूब लगाए डुबकी
अटकल का बाजार गर्म था
लोकतंत्र का यही धर्म था
बैठ नीम की सघन छांव में
छिड़ी थी’ चर्चा मेरे गांव में
अपना नेता कौन बनेगा
अपने मन की कौन सुनेगा
किसे जिताएं किसी हराएं
किसको अबकी सबक सिखाएं
करें मंत्रणा झगड़ू – झुल्लन
साथ हैं उनके चतुरी – बुद्धन
बुद्धन बोले अबकी बारी
बात मानना यार हमारी
संविधान का यही तकाजा
लोकतंत्र में जनता राजा
इक अच्छे उम्मीदवार को
पढ़े लिखे ईमानदार को
सहज,सरल जो मिलनसार हो
जिसमें उन्नति का विचार हो
उसको कुर्सी पर बैठना
बस उसको ही जीत दिलाना
झगड़ू बोले बात सुनो अब
अपना नेता यार चुनो अब
वो नेता किस बात का होगा
जो ना अपनी जात का होगा
जय का लगे उसी को टीका
हो जो अपनी बिरादरी का
जात का जिसमें जज़्बा होगा
देश पे उसका कब्ज़ा होगा
अपनी बिगड़ी बात बनेगी
अन्य जाति पर धाक जमेगी
झुल्लन बोले देखो भैया
होगी पार उसी की नैय्या
जो युवाओं की नब्ज़ पकड़ ले
मोह पास में उन्हे जकड़ ले
नेता वो कहलाए जुझारू
जो पिलवाए जम कर दारू
गांव के अपने युवा है फक्कड़
ख़ूब नशेड़ी बड़े पियक्कड़
जो ज़्यादा दारू बांटेगा
मौज बाद में वो काटेगा
उसकी दौड़े जीत की गाड़ी
जो प्रति महिला बांटे साड़ी
महिलाएं भी गुण गाएंगी
जिससे वो साड़ी पाएंगी
और पुरुष जो यदि बच जाएं
उनको एक हजार थमाएं
चतुरी ने चातुर्य दिखाया
कौन हो नेता ये समझाया
भाषण बाजी में जो हिट हो
रंग बदलने में गिरगिट हो
सच से जिसकी चलाचली हो
जो स्वभाव से बाहुबली हो
बड़े बाप का जो मुंडा हो
जो गुंडों का भी गुंडा हो
नेता अपना भौकाली हो
उसके मुंह पर बस गाली हो
ले दे कर जो काम करा दे
मौका पड़ने पे हड़का दे
बुद्धन भाई बुरा न मानो
क्या चाहे जनता पहचानो
नीति- प्रीति या सदाचार का
सहज सरल ईमानदार का
राजनीति में काम नही है
अक्षरस: ये बात सही है
बुद्धन बगले झांक रहे थे
ज्ञान का’ चूरन फाँक रहे थे
बहुमत पड़ा बुद्धि पे भारी
उस नेता ने बाजी मारी
ज़हर था जिसमें जातिवाद का
उत्प्रेरक था जो विवाद का
सबसे पहले उस नेता ने
वोट खरीदे जिस क्रेता ने
अपना असली खेल दिखाया
झगड़ू झुल्लन को लड़वाया
चतुरी यूं गुमराह हो गए
नेता के चरवाह हो गए
बुद्धन की भी खड़ी है खटिया
उनकी है’ इक जवान बिटिया
बुद्धन को दिन रात ये डर है
नेता की बिटिया पे नज़र है
इसीलिए हे मतदाताओं
बड़े- बुजुर्गों , बहनों- मांओ
ऐसे लोगों को पहचानो
नेता – चोर का’ अंतर जानों
गलत वोट यदि दे आओगे
पांच साल बस पछताओंगो
नेता चुनना सोच समझ कर
जात में फंसना नही उलझ कर
लालच दे चाहे जो जीतना
पैसे दारू पर मत बिकना
जिसे जिताओगे शिद्दत से
बहन बेटियों की इज़्ज़त से
वो नेता खिलवाड़ करेगा
लूट आपको ज़ेब भरेगा

 

 – राघवेंद्र सिंह ‘ राघव ‘

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