कविताएं पुस्तक भ्रमण और ब्रह्माण्ड से

1 – मैंने बदलाव देखा है

कुछ को खुशहाल ,तो कुछ के,

छालों से भरे उनके पांव देखा है।

कुछ के घर इतना की लुटा रहे हैं, वो

कुछ के घर मुट्ठी भर अनाज देखा है।

मैंने बदलाव देखा है।

 

कुछ के घरों में है सब कुछ,

कुछ को थोड़े समानों के लिए परेशान देखा है।

कुछ के प्रति इनका सम्मान चुकता ही नहीं,

कुछ के प्रति तिरस्कार देखा है।

मैंने बदलाव देखा है।

 

कुछ के पास है ही नहीं, कोई,

कुछ के घर जीवन उद्धार देखा है।

कुछ के पास थोड़ा भी समय नहीं,

कुछ पास इतना की, अपमान देखा है।

मैंने बदलाव देखा है।

 

यार अभी, कुछ के घर तो किताबें ही नहीं,

कुछ के घर किताबों का भंडार देखा है।

कुछ को बहुत प्यार है उसकी जिंदगी से,

कुछ को उन्हीं की हाथों बर्बाद करते देखा है।

मैंने बदलाव देखा है।

 

कुछ के पास नहीं है तन ढकने को कपड़े

कुछ के पास दिखावे वाला बुखार देखा है।

कुछ के पास इतना भी नही की जरूरतें पूरी हों,

कुछ के घरों पैसों का अपमान देखा है।

मैंने बदलाव देखा है।

 

कुछ करते हैं सम्मान अपनों का,

कुछ के तो सम्मान में भी अपमान देखा है।

कुछ करके भी नहीं बताता किसी से

कुछ तो करते भी नहीं बस हा, हा कार देखा है।

मैंने बदलाव देखा है।

 

कुछ को कड़ी धूप में नंगे पैर तो,

कुछ के यहां ब्रांडों का भंडार देखा है।

कुछ नहीं करते हैं , कुछ भी,

कुछ को कुछ करने के लिए परेशान देखा है।

मैंने बदलाव देखा है।

 

कुछ चुरा कर रखते हैं चीजों को,

कुछ को सबकुछ कुर्बान करते देखा है।

कुछ के घरों में संस्कारों की कमी है,

कुछ के घर चरणस्पर्श वाला प्यार देखा है।

मैंने बदलाव देखा है।

 

कुछ के मुख से बस कड़वे शब्द ही निकलते हैं,

कुछ की बोलियों में, मैं मिठास देखा है।

कुछ के घरों में नहीं हैं एक भी समान,

कुछ के घरों में मशीनों का भंडार देखा है।

मैंने बदलाव देखा है।

 

कुछ, कुछ भी नहीं करना चाहते,

कुछ की आंखों में कुछ करने की भूख देखा है।

कुछ देखते रहते हैं समानों को,

कुछ को बनता खरीददार देखा है।

मैंने बदलाव देखा है।

 

कुछ सो जाते हैं सुकूं से सड़कों पर,

कुछ को नींद न आने से बीमार देखा है।

कुछ तो हस्ट पुष्ट हैं इस जीवन से,

कुछ के पास बीमारियों का भंडार देखा है।

मैंने बदलाव देखा है।

 

कुछ कर देते हैं भला मुफ़्त में लोगों का,

कुछ को बस पैसों के प्रति, प्यार देखा है।

कुछ के प्रति देखा हूं अनेकों दुवाएं,

कुछ के प्रति ढेर सारे श्राप देखा है।

मैंने बदलाव देखा है।

 

कुछ को वो, दे रहे थे दर्ज़ा भगवान का,

कुछ लोगों के प्रति गालियों की बौछार देखा है,

कुछ सह जाते हैं हर दुःख,परेशानी,

कुछ को हर पल बस परेशान देखा है।

मैंने बदलाव देखा है।

 

2 – बताता हूं

अच्छा, बुरा कुछ दृश्य दिखाता हूं,

सबक – ए – जिंदगी, हालात बताता हूं।

थोड़ी दिक्कतें क्या हुईं? वो चले ही गए,

इन बहरूपियों की पहचान बताता हूं।

 

कुछ ने बोला था, तू कर ही क्या लेगा?

मैं हार के पीछे की अंहकार बताता हूं।

ये संघर्ष नहीं, बस इम्तिहान था मेरा,

जो बदला था, वो बदलाव बताता हूं।

 

हां, नहीं था मेरे पास उस वक्त कुछ भी,

मैं फटी हुई कमीज़ की पहचान बताता हूं।

मैं, गिरा, संभला, खड़ा हुआ, फिर चला,

देर से मिली परिश्रम का फ़ल बताता हूं

 

तुम हंसे थे न, मेरे ऊपर, मैं याद हूं ?

तुम्हारी लहज़ा तुम्हारा मिज़ाज बताता हूं।

क्या – क्या बोले थे यार उस दिन तुम?

तुम्हारे प्रेम में जलन की बू थी,मैं बताता हूं।

 

बस समय ही तो बदला था न, प्रकाश,

मैं,कुछ शरीफों की शराफत बताता हूं।

झुकी पगड़ी कुपित कर,गर्व हुआ उन्हें,

अशक्त थे वो, मैं उनकी दशा बताता हूं।

 

3 – अच्छा है

तुम्हारी शान, मान, तुम्हारा सम्मान अच्छा है,

बोली गई कड़वी बातें तुम्हारा, पहचान अच्छा है।

बताए भी, जताए भी, सब कुछ इस जिंदगी में,

तुम करो तो सब सही, मेरे में बस भाग्य अच्छा है।

 

तुम्हारी की हुई मेहनत भी, संघर्ष बताती है,

जिंदगी की इस मोड़ का इम्तिहान अच्छा है।

तुम्हें मैं चलना सिखाया, मैं ही गलत हो गया,

पता नहीं क्यों, कैसे? पर ये बदलाव अच्छा है।

 

ये, बोली गई मीठी बातें, बहुत कुछ बताती हैं,

बच कर चलना है तुमसे, ये सबक अच्छा है।

और हां, क्या तुम खुद को भूप समझते हो ?

तुम्हारी बदली इंसानियत, मेरा ईमान अच्छा है।

 

तुम तो बातें भी किया करते हो उनसे हमारी,

उन, अपनों में भी, मेरा पहचान अच्छा है।

नहीं चाहिए अच्छा घर, कपड़े और मकान,

मेरे इस घर के विनोदी चेहरों का साथ अच्छा है।

 

सुना है, तुम, सुगंधित बातें करते हो उनसे,

कागज़ी फूलों में खुशबू ढूंढना, कला अच्छा है।

मेरे प्रति कुछ ज्यादा तनाव नहीं होता, तुमको,

इस अपनत्व से भी अधिक बहकाव अच्छा है।

 

चिल्लाते, बताते रहे अपने बारे में तुम सबको,

दिखावे से कोसो दूर, ये शांत स्वभाव अच्छा है।

बहते रहे नदियों की तरह, तुम इधर से उधर,

मैं ठहरा ही सही, पर , मेरा ठहराव अच्छा है।

 

Part 1st,

इसे भी पढ़ें …https://www.lekhanshala.com/hindi-kavitaaen-pustak-bhraman-aur-brahmand-se-by-abhay-pratap-singh-raebareli/

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Pradeep Kumar

Nice