हे प्रिये! तुम तो सावन की बौछार हो,
भोले से जो मिला तुम वो उपहार हो।
अनमनी बूँदों से हैं ये झरती सुबह,
प्रेम में बावला एक प्यारा- सा दिन।
रात में स्वप्न देखे जो खुली आँख से,
तुम बिना पूर्ण होने हैं कितने कठिन।
देह छूने से पहले ये छुआ तेरा मन,
तुम उसी मन के मेरे तलबगार हो।
हे प्रिये! तुम तो सावन की बौछार हो।
ये धरा धानी चूनर है ओढ़ हुऐ,
मेरा जीवन भी आ करके धानी करो।
कब तलक आँख में लालिमा ये रहे,
पुतलियों को तो अब आसमानी करो।
तुम पे ही है हमारी ये त्रिज्या टिकी,
तुम हमारी परिधि तुम ही संसार हो।
हे प्रिये! तुम तो सावन की बौछार हो।
ले करके आया हूँ चूँङी तुम्हारे लिऐ,
तुम कलाई में लो इनको धारण करो।
सोलह वर्षों का तप अब हुआ पूर्ण है,
अपने उपवास का अब तो पारण करो।
अब न सोचो- विचारो और स्वीकार लो,
प्रेम तुम हो मेरा तुम ही आधार हो।
हे प्रिये! तुम तो सावन की बौछार हो।
– शैलेश मिश्र
बहुत सुंदर रचना शैलेश भाई ,, अद्भुत,,,