..….”अस्मत”……
हर तरफ एक कोहराम मचा है,
लगता है हर दिल में आग लगा है।
नरभक्षी जैसे झपट रहे एक दूसरे पर,
मानो इंसान के अंदर का जानवर जगा है।
सभी शामिल हो गए फरेबी भीड़ में,
अब किसी का साफ नहीं गिरेबान बचा है।
अपने ही अपनों का हक़ खाने लगा है,
दिलों में साजिशों का मकां आलीशान बना है।
हाल तक पूछने की फुर्सत नहीं होती अब,
मगर हर घर दुश्मनी का दस्तरखान सजा है।
तहफ़्फ़ुज़ का एहसास तो रहा ही नहीं बाकी,
अब हर रास्ते पर इंसान रूपी शैतान खड़ा है।
हर गली नुक्कड़ पर लुट रही अस्मत नारी की,
आजकल इन्हीं खबरें से अखबार भरा है।
– आश हम्द, पटना