प्रातः की किरणों का मधुर आलोक,
स्वर्णिम किरणों से भरा यह सोपान।
जैसे कमल जल में लहराए,
स्नेह से भक्त इसे अपनाए।
प्रकाशित होता एक नव रूप,
प्रभात का यह दिव्य स्वरूप।
शीतल, शांत, मन को भाए,
हर ओर बस उजाला छाए।
फिर आता संध्या का सौम्य काल,
लालिमा में बसी अनोखी चाल।
रक्ताभ किरणों की छटा निराली,
जगमग नभ में बिछी ये लाली।
आती है संध्या सजी सजाई,
स्नेहसिक्त यह धारा भाई।
सभी जन देते अर्घ्य का दान,
सूर्य को समर्पित तन-मन-प्राण।
सूर्य षष्ठी का यह पर्व महान,
सूर्यदेव से मिलती पहचान।
आस्था और प्रेम का संगम,
सभी का जीवन हो सुख-स्वर्गम।
– शिवेश पति त्रिपाठी