हमारा शौर्य
पार्थ बनकर चक्षु पर चिड़िया की हमने लक्ष्य साधा,
और पाने प्रेम को सागर में हमने सेतु बांधा।
इस धरा पर चंद्र भी हैं और चाणक्य चोटियां,
जानता है विश्व अपनी घास की वह। रोटियां।
जब कन्हैया हम बनें तो प्रेम का दर्शन कराया,
और जब माधव बने तो फिर सुदर्शन को चलाया।
बन सत्यवादी घाट पर हम सत्यता को ले अड़े थे,
और जब रावण बने यमराज चरणों में पड़े थे।
इंद्र को भी जीत लें है इंद्रजीतों की कहानी,
और हम कैसे भुला दें वृद्ध ज़फ़रों की जवानी।
यह हमीदों की धरा अशफाक से दिल भी मिलेंगे,
इस धरा पर चंद्रशेखर और बिस्मिल भी मिलेंगे।
– अंकित यादव अंकुल
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