मैं स्त्री हूं
मैं,
स्त्री हूं!
हूं मैं स्त्री।
जी,हां! वही स्त्री जो,
भूमंडल की वाटिका है
जन्म दात्री है,गृह पालिका है।
काँटों भरा जीवन, संघर्ष मेरा,
सजाती, संवारती, घर – द्वार तेरा।
कष्टों को सहती हूं
हर घर में रहती हूं,
धैर्य धरणी रमणी हूं,
भावों भरा मन मेरा
आशा की रोशनी हूं।
हाँ,मैं स्त्री हूं, हूं मैं स्त्री।
अबला नहीं अब मैं
चलती राह अकेली हूं,
अपनों की पहचान मुझे
परायों को भी परखी हूं,
हिम्मती कदम बढ़ाती हूं।
हाँ,मैं स्त्री हूं, हूं मैं स्त्री।
कब तक रहती वेदना त्रस्त?
सहती कब तक संताप तेरे?
तुमको खटका हिम्मत मेरा
रूढ़िवादी जंजीरों को तोड़ा,
दुनिया दे रही अधिकार मेरा।
हाँ,मैं स्त्री हूं, हूं मैं स्त्री।
अब मेरी भी हस्ती है
है अपनी पहचान मेरी
परचम लहरा दुनिया में
फिर भी हूं मैं करुणामयी,
कहते सब हैं कल्याणी हूं।
हाँ,मैं स्त्री हूं, हूं मैं स्त्री।
– परिणीता कुमारी (पटना)
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