संस्थापक का परिचय:

संस्थापक अभय प्रताप सिंह रायबरेली जिले के छोटे से गांव बेनीकोपा ( कबीरवैनी ), ग्राम बेनीकामा के रहने वाले हैं। अभय की पूरी पढ़ाई गांव के ही एक विद्यालय से हुई है और विद्यार्थी जीवन में उनका आधिकांश समय गांव में ही बीता है।

” अगर दूसरों के सपनों को पूरा करना है तो खुद के सपने का बलिदान देना ही पड़ेगा। ऐसा मानना है संस्थापक अभय प्रताप सिंह जी का। अभय जी हमेशा शिक्षा का सम्मान करते हैं और यही कारण है की उनकी लेखनी अधिकांशतः शिक्षा और विद्यार्थियों के इर्द – गिर्द ही घूमती है।

संस्थापक अभय जी का जन्म 1998 में हुआ। वो अपनी प्रारंभिक शिक्षा एस. वि. एम. भीलमपुर , एस. बी. एस. स्मारक आई. सी. डी. एस. गौरा रायबरेली और जी. बी. एच. बी. बी. महाविद्यालय जगतपुर से प्राप्त की है। इसके साथ – साथ उन्होंने अलग – अलग क्षेत्रों में भी कई अन्य डिग्रियां भी प्राप्त की और कई सारे कौशल सीखे।

कपड़े, जूते या कोई भी चीज़ मैं बाद में खरीद लूंगा, अभी मुझे किताबें खरीदनी हैं। पुस्तकों के प्रति इन्हीं लगाव के कारण अभय जी पहले रायबरेली और उसके बाद दिल्ली भी पढ़ाई करने गए। उनका ये भी कहना है कि ” जितना मुझे दिल्ली ने सिखाया है शायद ही मैं कहीं सीख पाता। “

पढ़ने के साथ – साथ लिखते रहने की आदत मुझे उत्साह प्रदान करती है। वो अपनी लेखनी की शुरआत 2016 में भले ही किए लेकिन कुछ ही सालों में वो अपनी लेखनकौशल से लेखनकला से लोगों के दिलों में जगह बना लिए और उनके द्वारा लिखे रचनाओं को खूब सराहा गया। इसी बीच अभय जी कई किताबें भी लिखे जो काफ़ी लोकप्रिय रही।

 

अभय जी अपने संघर्षों का जिक्र करते हुए बोले कि, लोगों को लगता है की मैं बहुत संघर्ष किया हूं जबकि मैं कभी संघर्षों के राहों पर तो रहा ही नहीं, संघर्षों के कांटों पर तो चला ही नहीं। अगर मेरे इस जीवन में, असल मायनों में कोई संघर्ष किया है तो वो है, वह दूध वाला जो मुझे अंजान शहर में वक्त पर दूध दिया, वो ढाबे वाले जहां मैं खाना खाता था, चाय पीता था, वो सफ़ाई वाले जो मुझे बीमारियों से बचा रहे थे। यहां तक मेरे जीवन का हर वो सक्श जो मेरे जीवन को अंजान शहर में, अंजान लोगों के बीच आसान बनाया है, मेरी नज़रों में वो संघर्ष किए हैं। मैं तो कुछ किया ही नहीं। असल मायनों में तो संघर्ष मेरे घर के लोग किए हैं जिसमें वो भाई शामिल है जो वक्त पर पैसे भेजा, वो मां शामिल है, जो कैसे भी करके घर चलाई हो पर कभी मुझसे कोई जिक्र नहीं की, वो बाप शामिल है जो हर बार बोलता है कि तुम खुद का ख़्याल रखना, यहां की चिंता मत करना, यहां सब ठीक है, वो बहनें शामिल हैं जो कहती थी कि तुमको किस बात की परेशानी है ? सब तुम्हारे साथ हैं, जब तक तुमको लगे करो नहीं तो बिना एक सेकेंड सोचे घर वापस आ जाना, वो दोस्त शामिल हैं जो मेरे लिए वैशाखी का काम कर रहे थे। थोड़ी मुस्कान के साथ, मैं संघर्ष नहीं किया हूं।

मैं हर संभव प्रयास करता हूं कि मैं लोगों की जितनी मदद हो पाए करूं, मैं जितना लोगों के साथ अच्छा हो पाए करूं इसलिए सालों की मेहनत, सालों का लेखनकला, आज़ का लेखनशाला है।