माना की शुरुआत कर दिया था मैं अपनी मंजिल का,
पर, संदेहों के घेरों में भी खूब जकड़ा हुआ था मैं।
दिल तो बार – बार बोल रहा था कि भाई, आगे बढ़,
नकारात्मकता ज्यादा थी, दिमाग बेचारा हारा था।
कब तक बैठता है, आखिर हाथों पर हांथ रखकर,
रास्ते बहुत थे मेरे पास, बस ये कदम बढ़ाना था।
छोटे – छोटे सफलताओं से ही, मंज़िल मिलती है मुझे,
बस मेरा मकसद ही आप सभी के साथ जुड़ना था।
वो दिन याद है मुझे, जो काटे नहीं कट रहा था,
उसी दिन ही मैं इतिहास अध्ययन परिवार बनाया था।
भरोसा भी था मुझे, और लोग हमसे जुड़ते चले गए,
देखते ही देखते इस परिवार में हजारों लोग हो गए।
इतिहास अध्ययन परिवार मेरा ही नहीं तुम्हारा भी है,
हर रोज़ मेहनत कर, बस अब सफ़लता दिलाना है।
– अखिलेश पांडेय