” दुनियाँ अनमोल “
ज्ञानी कहते दुनियाँ गोल,
हम कहते दुनियाँ अनमोल।
यहां तरह – तरह की मिट्टी है,
यह कहता मेरा भूगोल।
कहीं रेत है कहीं है दोमट,
कहीं बलूइ कहीं जलोढ़।
कहीं है काली कहीं है पीली,
ये मिट्टी है अनमोल ।
कहीं पार्श्व है कहीं लाल है,
कहीं मरू कहीं नमकीन।
कहीं पीट है कहीं है चिकनी,
ये दुनियाँ की मिट्टी अनमोल ।
तरह – तरह के जीवों से,
भरी पड़ी है दुनियाँ सारी।
जल चर थल चर नभ चर से
सजी हुई दुनियाँ अनमोल ।
नदियां बहती लेकर लहरों को,
सागर की लहरों का शोर।
तरह – तरह के फल फूलों से,
श्रृंगार हुआ धरती का अनमोल ।
तरह – तरह की भाषा है,
तरह – तरह के रहते लोग।
सबके अपने धर्म अलग,
पुूजा करते सभी लोग।
– उत्तम कुमार तिवारी ” उत्तम “