लेखक परिचय
नाम: डॉ. राम अशीष सिंह
जन्म तिथि: 5 जून 1950
माता-पिता: स्व. कौशल्या देवी एवं स्व. सूर्य नारायण सिंह
पत्नी: श्रीमती प्रभा देवी
पुत्र: ई. विकास कुमार (BHEL), डॉ. आकाश कुमार सिंह (onco-surgeon)
पैतृक ग्राम: बिरौल, पोस्ट+थाना: बिरौल (दरभंगा)
वर्तमान पता: वार्ड नं.: 06, प्रोफेसर्स कोलोनी, निर्मली
शैक्षिनिक योग्यता: एम.ए. (अंग्रेजी साहित्य), पी.एच.डी.
वृति: 1973 सँ 2015 तक निर्मली कॉलेज, निर्मली (एच.पी.एस. कॉलेज, निर्मली) मे अंग्रेजी साहित्यक अध्यापन, 2009 सँ 2015 तक निर्मली कॉलेज, निर्मलीमे प्रधानाचार्य पदपर आसीन।
शोधकार्य: ‘The Central Ethos of R.K. Narayan’s Major Novels’ नामक शोध-पुस्तक लेखनपर पी.एच.डी. उपाधि, श्री राम सुदिन यादवक शोध-ग्रन्थ ‘Contributions of Wilfred Owen to Modern poetry: A critical Re-assessment’ एवं श्री वीरेन्द्र प्रसाद यादवक शोध-ग्रन्थ ‘A Comprehensive critical study of Voice of Feminism in the American women poets During 20th century’ क शोध निर्देशन आ पर्यवेक्षण।
अन्य शैक्षणिक कार्य: अद्यतन पठन-पाठन। शोध-पत्रक निर्देशन, पत्र-पत्रिकामे लेख आ जोर्नलमे शोध-पत्र प्रकाशन, हिन्दी आ अंग्रेजी भाषा शुद्धिकरणक सहयोगात्मक कार्य।
अन्य अभिरुचि: नगरक साहित्यिक, सांस्कृतिक गतिविधिमे सक्रिय सहभागिता, शैक्षनिक संस्थानक वहुविध आयोजनमे मुख्य अतिथिक रूपमे अभिप्रेरणात्मक वक्तव्य, निर्मली सार्वजनिक पुस्तकालय सेवा सदनक सक्रिय सदस्यता, राष्ट्रीय वरिष्ठ नागरिक संघ, निर्मली इकाईक अध्यक्षक दायित्व आ विभिन्न शैक्षनिक एवं शिक्षानुषांगिक गतिविधिमे विशेष अभिरुचि।
रचना:
पुस्तक समीक्षा- (मैथिली एवं अंग्रेजी में)
पंगु
एक संक्षिप्त आलोचनात्मक समीक्षा
‘पंगु’ मैथिलीक एक करिश्माई कवि, उपन्यासकार, कथाकार और नाटककार- श्री जगदीश प्रसाद मण्डल लिखित एक विलक्षण मैथिली उपन्यास अछि। एहि औपन्यासिक रचनाक साहित्यिक उत्कृष्टताकेँ स्वीकार करैत साहित्य अकादेमी, नई दिल्लीक विशेषज्ञ समिति ऐ उपन्यासकेँ 2021 ई.मे अपन प्रतिष्ठित साहित्य अकादेमी पुरस्कारसँ सम्मानित कएलन्हि। ई उपन्यास मैथिली पाठकक लेल एक सुखद आ सरुचिपूर्ण व्यंजन प्रमाणित भेल अछि। हुनका सभक लेल ई एकटा मिथिला-दर्शन आ मिथिला सिंहावलोकनक रूपमे प्रस्तुत भेल अछि। ई उपन्यास बिहार राज्यक प्रमुख क्षेत्र, मिथिलाक पंगु बनल कृषि-आधारित अर्थ-व्यवस्थाक सचित्र आ विस्तृत विवरणक लेल विशेष रूपसँ प्रख्यात भेल अछि।
साहित्यकेँ समाजक अएनाक रूपमे परिभाषित कएल गेल अछि। ऐ साहित्यिक सिद्धान्तकेँ अनुसरण करैत उपन्यासकार स्वतंत्रता-पूर्व एवं स्वतंत्र्योत्तर मिथिलाक सामाजिक-आर्थिक जीवनक यथार्थवादी चित्रणपर प्रर्याप्त बल देलन्हि अछि। ओ ऐ महत्वपूर्ण क्षेत्रक भौगोलिक, सामाजिक, आर्थिक आ सांस्कृतिक चित्रणक वहुविध एवं विस्तृत विवरण कलात्मक रूपसँ प्रस्तुत कएने छथि। ई कहबामे कोनो अतिशयोक्ति नै बुझना जाइछ कि ई उपन्यास सम्पूर्ण मिथिला क्षेत्रक स्थलाकृति थिक। उपन्यासकार ऐ ठामक पंगु बनल कृषि व्यवस्था, प्राकृतिक आपदाक विभीषिका, साधनविहीन लोकक दु:ख-दर्द, जमीन्दारी प्रथा, महन्थगिरी, स्वतंत्रता आन्दोलनमे मिथिलावासीक भागीदारी आ स्वतंत्रता प्राप्तिक पछाइत बदलैत परिस्थिति सभपर स्पष्ट प्रकाश देबाक प्रयास कैलन्हि अछि।
वस्तुत: ‘पंगु’ मिथिलाक विस्तृत, विविध आ यथार्थवादी चित्रणक लेल विशेष रूपसँ जानल जाइत अछि। मात्र एक उपन्यासक परिधिमे मिथिला जीवनक सभ आयामक एहेन व्यापक चित्रण अभूतपूर्व अछि। स्वयं उपन्यासकार कहै छथि:
“वैचारिक रूपमे अखनो हम मिथिलाक ओ रूप देखिये रहल छी, जे अदौक चिन्तनधाराक अनुकूल अछि। तँए हम सभ आजुक मिथिलाक चित्रांकन जँ नइ करब, तँ खाली जादू-टोना वा छू-मन्तर कहि देलासँ भए जाएत, ई सम्भव नहि अछि। हजार-लाख बरख पहिलुका सतजुग-त्रेतासँ निकैल आइ हम सभ एकैसम सदीमे पहुँच चुकल छी।”
उपन्यासमे कथानकक सभ घटना सीतापुर आ सीतापुरक इर्द-गिर्द घटित होइत अछि। सीतापुर मिथिलाक प्रतीकात्मक एकटा गाम छी। सीतापुरक वर्णनक माध्यमसँ लेखक सम्पूर्ण मिथिलाक चित्रांकन कएने छथि। मध्य मिथिलाक एक गामक निवासी छिहत्तरि-सतहत्तरि वर्षक लेखक श्री जगदीश प्रसाद मण्डल अप्पन दीर्घ जीवन-कालमे सक्रिय कृषक जीवन, सामाजिक क्रिया-कलापक प्रति संवेदनशीलता, साम्यवादी विचारधारासँ आकर्षण आ वृहत यात्राक माध्यमसँ सम्पूर्ण मिथिलाक वहुविध्य जीवनक वृहत ज्ञान अर्जित कएलन्हि। तत्पश्चात अपन यथार्थवादी अनुभवकेँ साहित्यक विभिन्न विधामे सुन्दर अभिव्यक्ति देलन्हि। हुनक साहित्यिक रचनाक अनवरत प्रवाहसँ एकटा इन्द्रधनुषी रचना-संसारक निर्माण भेल अछि। कम-सँ-कम साहित्यिक रचनाक प्रकाशनक अति अल्प अन्तराल आ एक निर्धारित समयावधिमे रचनासभक संख्याक लेल ओ मैथिली साहित्यमे अभूतपूर्व लेखक छथि। चूँकि हिनक रचना मिथिला-केन्द्रित छन्हि हिनका प्रसिद्ध अंग्रेजी उपन्यासकार थोमस हार्डी आ चर्चित भारतीय आंगल उपन्यासकार आर.के. नारायण सदृश क्षेत्रीय उपन्यासकार कहल जा सकैछ। ‘पंगु’ उपन्यासमे ‘सीतापुर’ हार्डीक ‘वेसेक्स’ आ आर.के. नारायणक ‘मालगुडी’ थिक।
उपन्यासक वास्तविक सौन्दर्य मिथिलाक भौगोलिक, सामाजिक, आर्थिक आ सांस्कृतिक परिवेशक ज्वलंत चित्रात्मक वर्णनमे निहित अछि जे प्रतीक ग्राम सीतापुरक सांगोपांग चित्रणक माध्यमसँ भेल अछि। उपन्यासकार लिखै छथि कि मिथिलाक उतरी सीमा पर्वत शृंखलासँ निर्मित अछि जइमे मुख्य रूपसँ हिमालय पर्वत शृंखला आ कैलास पर्वत आ ताहिमे मानसरोवर झील सेहो उल्लेखनीय अछि। पुनश्च, मिथिलाक दक्षिणी सीमा नदी-समूहसँ बनल अछि जइमे पवित्र गंगा नदी सर्वप्रमुख अछि जेकर सुल्तानगंज आ सिमरिया घाट पवित्र नदी-तटक रूपमे पूजित अछि।
सीतापुरक वन्य-जीवन आ भू-भागक चित्रण अति विस्तारसँ कएल गेल अछि। हजार एकड़क आंट-पेट बला ऐ गाममे तालाब, झील आ नदीक संख्या अनगिनत अछि। जमीनक भिन्न-भिन्न किस्म रहलाक कारणेँ सभ तरहक अनमोल फल आ सब्जीक उत्पादन होइत अछि। लेखक अपन व्यवहारिक जीवनक विपुल अनुभवसँ घरेलू पशु, मछली आ अनाजक विभिन्न किस्मक सजीव वर्णन कए आधुनिक पाठककेँ परम्परागत कृषि-क्षेत्रसँ विशेष परिचय करावैत छथि। पेड़, फल, फूल आदिक चित्रात्मक वर्णन आकर्षक अछि। ऐ सन्दर्भमे भारतक पूर्व कृषि मंत्री, श्री चतुरानन मिश्रक पोलैंड यात्राक दौरान पोलैंडक समकक्ष मंत्रीसँ अपना देशक आमक विभिन्न किस्मक विवरण अति मनोरंजक अछि।
ओही तरहेँ सीतापुर गामक आर्थिक आ शैक्षणिक परिस्थितिपर पूर्ण प्रकाश देल गेल अछि। उपन्यासकारक कथन छन्हि जे मिथिलाक प्राचीनतम रूप आइयो एतए विद्यमान आधारभूत संरचना आ जीवन-शैलीमे देखल जा सकैछ। जहिना प्राचीन कालमे बाँस, लकड़ी, फूंससँ निर्मित झोपड़ीए बेसी छल, तहिना आइयो एहन काम-चलाउ आवास द्रष्टव्य अछि जाहिमे आर्थिक रूपसँ विपन्न व्यक्ति बरसात आ जाड़क राति गुजारैत छथि। एकर ईहो अर्थ नहि कि एतए दू मंजिल, तीन-मंजिलक पक्का मकानक कमी अछि। एहिसँ आर्थिक विपन्नताक दृश्य उजागर होइत अछि। शिक्षा आ स्वास्थ्य सहित अनेको एहेन विषय अछि जेकर व्यवहारिक लाभ साधन-सम्पन्न आ साधन-विहीनकेँ समान रूपसँ उपलब्ध नै अछि। ई बात उपन्यासमे वर्णित ऐ विवरणसँ जाहिर होइत अछि कि सीतापुर गाममे एकोटा स्वास्थ्य केन्द्र नहि अछि आ मात्र एक निम्न प्राथमिक विद्यालय अवस्थित अछि। आर्थिक समानताक साम्यवादी दर्शनक प्रति संवेदनशील रहबाक कारणेँ उपन्यासकार समाजक उपेक्षित निर्धन लोकक प्रति सहानुभूतिक भाव सहज रूपसँ अभिव्यक्त कएने छथि।
मिथिलाक आर्थिक विपन्नताक नग्न चित्रपर विशेष रूपसँ ध्यान आकृष्ट कएल गेल अछि। समाजक अर्द्ध-नग्न आ अर्ध-पोषित वर्गक चित्रण हृदय-स्पर्शी अछि। एतए सैंकड़ों परिवारक काम कएनिहार लोककेँ खेतमे काम नइ मिललाक कारणेँ जीविकोपार्जनक लेल आन-आन राज्य दिस पलायन करबाक लेल मजबूर हुअ पड़लैक। ई पलायन आइयो चलि रहल अछि। लेखक ऐ बातपर दु:ख व्यक्त कए रहल छथि जे जतए आब शहरमे जीवनक मौलिक जरूरतक सभ साधन उपलब्ध भए गेल अछि, सीतापुर सनक मिथिलाक हजारो गाममे काज कएनिहार लोकक शारीरिक आ मानसिक क्षमताक उपयोग करबाक लेल संसाधन उपलब्ध नहि अछि जाहिसँ आबादीक अधिकांश भाग रोजी-रोटीक तलाशमे घर छोड़ि दैत अछि। तहूमे बाढ़ि आ रौदी सनक प्राकृतिक विपदा जरलमे नून छिटैक काज करैत अछि। 1958 ई.मे आएल बाढ़ि लोककेँ गृह-विहीन तँ कैये देलक जे आम जनकेँ भुखमरीक कगारपर सेहो पहुँचा देलकै। 1967 ई.क रौदीमे केतेको लोक अन्न बिनु प्राण त्यागि देलैन तँ बहुतो सुखल पोखैर आ तालाबमे बिसाँढ़ कोरिकऽ तकरा आहार बना कहुना अपन प्राण बँचौलन्हि। अखनो आर्थिक रूपसँ पंगु बनल मिथिलाक ग्रामीण लोकनिक जीवनमे अपेक्षित सुधारक उपाय करबाक आवश्यकतापर बल दए लेखक अपन संवेदनशीलताक अभिव्यक्ति करैत छथि।
सैद्धान्तिक रूपसँ उपन्यासमे छअ तत्वक समावेश होइत अछि। कोनो उपन्यासक मूल्यांकन अही छअ तत्वक कसौटीपर कएल अछि। ओना, तत्वक प्राथमिकता उपन्यासकारक कला आ उद्देश्यपर आधारित होइत अछि। प्रमुख पाँच तत्व अछि- कथानक, चरित्र चित्रण, वातावरण, वार्तालाप, शैली आ उद्देश्य। कथानक कोनो औपन्यासिक कृतिक मेरुदण्ड होइत अछि। तैं एकर समीक्षात्मक अध्ययनसँ पहिने कथानकपर विहंगम दृष्टि अपेक्षित अछि।
मध्य मिथिलाक सीतापुर गाममे देवचरण नामक एकटा रैयत छलाह जिनका पैतृक सम्पतिक रूपमे तीन एकड़ जमीन प्राप्त भेलैन। ई जमीन पूर्वमे देवचरणक पूर्वजसँ गामेक एकटा जमीन्दार नीलाम कए लेने छलाह। जमीन्दारक ऐ शर्तपर देवचरणक पूर्वजकेँ खेती करए लेल जमीन छोड़ि देने छलाह कि उपजक एक चौथाई ओ जमीन्दारकेँ दैत रहथि। बादमे जमीन्दारक तीनू पुत्रमे पारिवारिक प्रतिष्ठाक लेल विवाद उत्पन्न भए गेल। विवादक विषय छल ज्येष्ठ भाई सिंहेश्वरक अपन साठि वर्षक उम्रमे एक वेश्यासँ दोसर शादी करब। ऐ विवादक फलस्वरूप जमीन्दारक परिवार नीलामक सभ जमीनकेँ ओकर रैयतकेँ उचित मूल्यपर वापस करैक निर्णय कएलन्हि। देवचरण अपन पूर्वज द्वारा नीलाम कएल तीन बीघा जमीन जमीन्दारसँ डेढ़ सए रुपयामे खरीद लेलन्हि जाहि लेल हुनका अपन एक जोड़ी बाछा-बरद बेचए पड़लन्हि।
देवचरणक पुत्र, राधाचरण सुस्त आ अकर्मण्य लोक छलाह जे कामसँ देह चोराबए चाहैत रहथि। तैं देवचरण परिवारक दु:खद भविष्यक आशंकासँ चिन्तित रहै छलाह। मुदा राधाचरणक पुत्र, हरिचरणक जन्म भेने देवचरणक मनमे आशाक किरण देखाए पड़ल। आब साठि वर्षक उम्रमे अपन जीवनक सन्ध्यामे हरिचरणक मिडिलस्कूल परीक्षा पास भेलापर देवचरण अत्यधिक आह्लादित भेलाह। साधनक अभावमे उच्चविद्यालयक शिक्षा हरिचरणकेँ नहि उपलब्ध भऽ सकल। हरिचरणकेँ कृषि कार्यक लेल सही प्रशिक्षण देबाक योजना देवचरण मनमे बना लेलन्हि। हरिचरणक वियाह एक सुशील आ उद्यमी लड़कीसँ करबा कए परिवार आ घर-गृहस्थीक लेल उपयुक्त अभिभावकीय शिक्षा नव-दम्पतिकेँ देलन्हि। कृषि-कार्यमे अद्यतन जे पंगुपन छल तेकरा अपन मेहनत आ विवेकसँ दूर करैत कृषकक सिरमौर बनि हरिचरण किसान-वृंदसँ सम्मानित भेला।
पंगु बनल कृषि-जीवनक कथानकक संग छोट-छोट संदर्भित उप-कथाकेँ सुन्दर कलात्मक ढंगसँ अंतर्वयन (interwoven) कएल गेल अछि। उपकथा सभमे सिंहेश्वरक वेश्यासँ शादी, आमक गाछीक झगड़ा आ किछु आओर प्रमुख अछि। ऐ बातकेँ खण्डन नहि कएल जा सकैछ कि ऐ उपन्यासमे कथा-तत्वपर उपन्यासकार बहुत बेसी बल नहि देलनि अछि। जेकरा उपन्यासक प्रमुख तत्व कहल गेल अछि ओ वस्तुत: लेखकक मिथिलाक स्थलाकृतिक चित्रण करवाक उच्च आदर्श आ नव पीढ़ीकेँ पारिवारिक आ सामाजिक जीवनक व्यवहारिक ज्ञान प्रदान करबाक अति उत्साहक दबावमे घूमिल बनि गेल अछि। ऐ संगे चरित्र-चित्रण सेहो पाठकक ध्यान नीक जकाँ आकृष्ट करैत अछि। हरिचरणक चरित्र-चित्रण पाठकक मनपर अमिट छाप छोड़ैत अछि। उपन्यासक मुख्य पात्र हरिचरणक चरित्रमे आज्ञाकारिता अध्यवसाय, दूरदर्शिता आ मिलनसारिताक आदर्श गुण विद्यमान अछि। उपन्यासमे वातावरणक तत्वकेँ काफी महत्व देल गेल अछि। सम्पूर्ण उपन्यासमे कृषि व्यवस्थाक पंगुपन व्याप्त अछि। उपन्यासक कथाक उचित वातावरण तैयार करबामे उपन्यासकार बहुत यत्न कएलन्हि अछि।
कथोपकथन आ उद्देश्य- ऐ दू तत्वपर लेखक आवश्यकतानुसार यथेष्ट बल देलन्हि अछि। जीवनक संध्यामे पहुँचल देवचरण आ भविष्यक आशा, हरिचरणक बीचमे दीर्घ बातचीत होइत अछि। जीवनक अनुभवसँ परिपक्व देवचरण नवोदित हरिचरणकेँ जीवनक मौलिक ज्ञान दए जीवन-लीलासँ विदा होमए चाहैत छथि। हुनक अभिप्रेरणात्मक संदेश उपन्यासक चारिम, पाँचम आ छठम अध्यायमे लेखक विशेष रूपसँ चित्रित कएलन्हि अछि। दादाक जादूई शब्द पोताक लेल ओ पद-चिन्ह साबित होइए जेकरा अनुसरण कए पोता सफलताक चोटीपर पहुँच जाइत अछि। देवचरणक जीवन-शिक्षाक निम्नलिखित संदेश द्रष्टव्य अछि:
“बौआ, अखन तक परिवारक भार अपन सिर सजि गाड़ीक जुआमे कन्हा लगा खिंचैत एलौं, मुदा आब ओ सामर्थ्य नहि रहल जेकर खगता परिवारकेँ अछि।”
पोतासँ सकारात्मक प्रत्युत्तर पाबि दादा आब मार्ग-दर्शनक दिशा निर्देशित करैत छथि:
“परिवारक जे पंगुपन रहल ओकरा पूर्ति करैत, ओइ पंगुपनकेँ मेटबैत जहिना चिड़ै अकासमे स्वच्छन्द जीवनक साँस लैत उड़ैए तहिना परिवारोकेँ बनाएब छह।”
उपन्यासकारक उद्देश्यक रूपमे पोता आ दादाक बीच ऐ दीर्घ शिक्षात्मक वार्तालापक माध्यमसँ नव पीढ़ीकेँ जीवनक मौलिक शिक्षा प्रदान कएल गेल अछि। कथोपकथनक आवश्यकता उपन्यासमे होइत अछि कथाकेँ विकसित करवामे सुविधा प्रदान करक लेल। एकर उपयोगिता होइछ पात्रक चारित्रिक विकासपर प्रकाश देबएमे। कथोप-कथनक माध्यमसँ एक दिश कथा विकासमे गति प्रदान कएल जाइत अछि तँ दोसर दिस पात्रक मानसिकताकेँ अभिव्यक्ति प्रदान कएल जाइत अछि। वार्तालापक माध्यमसँ उपन्यासकारक कथा-वस्तुक विश्वसनीयता बनल रहैत अछि। तैं कथोपकथनक भाषा पात्रक स्तरक अनुकूल होबक चाही। जगदीश बाबू ‘पंगु’ उपन्यासमे देवचरण आ हरिचरणक संग नमहर-नमहर वार्तालापमे पूर्ण सावधानी बरतने छथि। जीवनक व्यवहारिक आ उपदेशात्मक प्रशिक्षणक बातकेँ उपयुक्त वातावरण निर्माण कएलोपरान्त बाल-मनक लेल प्रस्तुत कएल गेल अछि। देवचरण जे किछु हरिचरणकेँ सम्वाद-योजनाक तहत प्रदान करैत छथि ओ सभ परिवारक मुखिया अपन उतराधिकारीकेँ देबए चाहता। इएह आदर्शवादी उद्देश्यक लेल कथा-वर्णनमे अपेक्षित कथोपकथनक समावेश कएल गेल अछि। हरिचरणक शिक्षाप्रद संदेश उपन्यासकारक उद्देश्य प्रतिपादित करैत अछि। उपन्यासक कथाक माध्यमसँ सहज ढंगसँ आ अप्रत्यक्ष रूपेँ कृषि कार्यमे सफलताक लेल सही सोच आ कठिन मेहनतक भूमिकापर बल देल गेल अछि।
सस्पेन्स कोनो उपन्यासक आत्मा होइत अछि। उपन्यासकार ‘पंगु’क कथानकक घटना-क्रमक वर्णनक बीच-बीचमे विस्तृत सन्दर्भित टिप्पणी दए पाठकक मनमे आगू कथा जानए लेल जिज्ञासा जीवन्त रखैत छथि। ऐ माध्यमसँ ओ घटना-क्रमक कारण-परिणामक सम्बन्ध स्थापित करैत चलैत छथि। लेखक वास्तविक यथार्थ आ आदर्शवादी सोचमे समन्वय स्थापित करैत लेखकीय विचारकेँ अप्रत्क्ष रूपसँ व्यक्त करए चाहैत छथि। पाठककेँ जीवनक सन्देश बुझबामे कोनो कठिनाई नहि होइ छन्हि जे उपन्यासकार देबए चाहैत छथि।
उपन्यासक प्रारम्भ मिथिलाक मध्यमे अवस्थित सीतापुर गाममे हरिचरण नामक व्यक्तिक जन्मसँ होइत अछि। लगभग 25 पृष्ठक सीतापुरक भौगोलिक, सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक विवरणक पश्चात हरिचरणक पूर्वजक भूमिका प्रस्तुत कएल गेल अछि। कथानकक बीच-बीचमे उपन्यासकार अति विस्तृत सन्दर्भ-टिप्पणी आ व्याख्यात्मक विवरणी दए पाठकक ज्ञान-कोषकेँ समृद्ध करबाक प्रयास कएने छथि। केतौ-केतौ कथा-तत्व मिथिला-दर्शन आ जीवन-शिक्षाक वृहत लक्ष्यसँ उपेक्षित बुझना जाइछ। मुदा सभ तरहक विवरणमे पात्र आ कथानकक घटनाकेँ कोनो रूपमे सम्पर्कित कए उपन्यासकार उपन्यासक मूल भावकेँ बरकरार रखने छथि। उपन्यासकारक कलात्मक परिपक्वताक ई पहचान प्रदर्शित होइत अछि कि उपन्यासमे केतौ कथाक रसास्वादनमे नीरसता नइ बुझाइत अछि।
उपन्यासमे फ्लैस-बैक टेकनीकक प्रयोग एकर विशेषताक रूपमे गिनल जा सकैछ। समयानुक्रममे कथानक कहवाक पुरान पद्धतिसँ थोड़ेक हटिकऽ उपन्यासकार नव-तकनीक प्रयोग कए उपन्यासक कलात्मक सौन्दर्यमे अभिवृद्धि कएने छथि। कथाक शुरूआत उपन्यासक मुख्य पात्र हरिचरणक जन्मसँ देखाओल गेल अछि। तत्पश्चात अतीतावलोकनक माध्यमसँ हरिचरणक पूर्वजक सुदूर अतीतसँ परिचय कराओल जाइत अछि आ घटना-क्रमकेँ एहि तरहेँ हरिचरणक वर्तमान जीवनसँ जोड़ैत कथाकेँ आगू बढ़ाएल गेल अछि। उपन्यासकारक वर्णन-शैलीक वैशिष्ट्यक रूपमे एकरा आंकल जा सकैत अछि।
महान कवि विद्यापति सदियो पूर्व लिखने छलाह:
“देसिल वयना सभजन मिट्ठा
तै तैसन जम्पओ अवहट्ठा।”
‘पंगु’ उपन्यासमे उपन्यासकार मिथिलाक सुदूर क्षेत्रमे बाजल जाइत जमीनी भाषाकेँ साहित्यिक सम्मान प्रदान कएलन्हि अछि। विषय आ भाषा दुनू क्षेत्रमे यथार्थवादक सिद्धान्तक प्रतिपादन करैत ओ मौखिक भाषाकेँ हू-ब-हू प्रयोग कए मैथिली भाषाक सौन्दर्यमे आओर निखार अनलन्हि अछि। गाम-घरमे प्रयुक्त मैथिली शब्द आ मुहावराक वृहत प्रयोगसँ भाषामे लालित्य आएल अछि। वस्तुत: मैथिली हिन्दीसँ नि:सृत भाषा नहि अछि। एकर अपन स्वतंत्र आ भिन्न स्तित्व अछि। ऐ सन्दर्भमे मिथिले क्षेत्रक एक महान कवि श्री फनीश्वर नाथ ‘रेणु’क नाम विशेष रूपसँ स्मरण कएल जाइत अछि जे क्षेत्रीय बोलीक कतिपय शब्दक अपन उपन्यासमे प्रयोग कए साहित्यिक रचनाक उत्कृष्टता आ लोकप्रियतामे श्रीवृद्धि कएलन्हि। एतहु देखल जा सकैछ कि हिन्दी भाषामे प्रयुक्त शब्द जे मैथिली भाषामे सेहो हू-ब-हू प्रयोगमे आबि रहल छल तेकरा वास्तविक मौखिक भाषाक प्रारूपकेँ लिखित भाषामे साहित्यिक रूप प्रदान कए उपन्यासकार साहित्यिक शैलीमे महत्वूपर्ण छटा जोड़लन्हि अछि। ऐ सन्दर्भमे उपन्यासमे वर्णित शब्दमे सँ किछुक नाम द्रष्टव्य अछि: परियास (प्रयास), बेकती (व्यक्ति), बेवधान (व्यवधान), नाओं (नाम), पूभर (पूब भर), दुआरे (द्वारे) आदि। जगदीश बाबू जनैत छथि जे मैथिली द्विभाषीय अभिव्यक्ति नै अछि। तैं भाषामे पूर्णत: भिन्नता प्रदान करबाक दिशामे ई प्रयोग कएल गेल अछि।
शैली उपन्यासक अनिवार्य तत्व अछि। एकरहि आधारपर लेखक अन्य लेखकसँ अपन भिन्न व्यक्तित्वक पहचान करबैत छथि। अपन खास शैलीक कारणेँ लेखक पाठककेँ मुग्ध करैत छथि। जगदीश बाबू विश्लेषणात्मक शैलीक लेल अपन पहचान बनौने छथि। ओ निम्न-मध्य-वर्गीय मैथिली समाजक जीवन आ हुनक जिजीविषाक चित्रण हुनके वास्तविक बोली आ भाषामे कएने छथि। हुनक सरल गद्यमे भाषायी कृत्रिमता केतौ नहि देखा पड़ैत अछि। तैं हुनक उपन्यासक भाषाकेँ शहरी मैथिली भाषा नहि कहि पूर्णत: शुद्ध ग्रामीण भाषाक संज्ञा देल जा सकैछ। हिनक अभिव्यक्तिमे भाव-साधना आ शब्द साधनामे लय-तालक सम्बन्ध देखल जाइत अछि। भाषाक वृहत ज्ञानक आधारपर ओ शब्द-विन्यास आ शब्द-निर्माण प्रक्रियाक प्रयोगात्मक आ विश्लेषणात्मक स्वरूपक मनोरंजक प्रस्तुति अपन उपन्यासमे करैत छथि। ऐ संदर्भमे ‘पंगु’मे किछु शब्दक अभिनव प्रयोगसँ पाठककेँ काफी आह्लादित करैत छथि। उदाहरणस्वरूप ‘कुकोर’, ‘सुकोर’ आ ‘नकोर’ शब्द द्रष्टव्य अछि। सीतापुर गामक वर्णन करैत उपन्यासकार कहै छथि: “गाम तँ गाम छी, मुदा ओहूमे ने नकोर, सुकोर आ कुकोरक गुण सेहो अछिए।”
पुन: ‘अभाव’, ‘कुभाव’ आ ‘सुभाव’ शब्दक प्रयोग कए भाव-स्वर आ शब्द-स्वर दुनूक बीच मधुर संगीतात्मक ध्वनि उत्पन्न कए पाठककेँ मंत्र-विमुग्ध कए दइत छथि। उपन्यासक अन्तिम पड़ावमे उपन्यासकार वर्णन करैत छथि जे देवचरण अपन जीवनक पंगुपनक बीच अभावकेँ कुभाव नहि मानि सुभाव बनाए जीवन-यापन कएलन्हि आ इएह गुण हरिचरणकेँ अपन पद-चिन्हक रूपमे प्रदान कए एहि दुनियाँसँ विदा भेलाह। उपन्यासकारक शब्दमे:
“देवचरण किसानी जिनगीक मर्मभेदी रहनौं अपन जिनगीमे पंगु बनल रहला, मुदा अपन पंगुपनक कारणकेँ बुझि देवचरण अपनाकेँ ओही जिनगीमे समावेश करैत परिवारक गाड़ीक जुआकेँ कन्हेठ आगू मुहेँ खिंचिते रहला, जइसँ अभावोकेँ कुभाव नहि बुझि सुभाव बना जीवन-बसर करबे केलाह, जे अपन सभ गुण-शील हरिचरणकेँ दान-दैछनामे दैत ऐ दुनियासँ विदा भेला।”
साहित्यक कोनो नीक रचनाक शीर्षक प्रथम दृष्टिमे पाठकक अभिरुचिकेँ आकर्षित करैत अछि आ रचनाक मुख्य विषय आ पात्रक व्यक्तित्वक प्रति सहज जिज्ञासा उत्पन्न करैत अछि। ऐ सन्दर्भमे ‘पंगु’ उपन्यासक शीर्षक पूर्णत: उपयुक्त आ सटीक अछि। उपन्यासक कथा-स्थल, सीतापुर जे मिथिलाक प्रतीक-गामक रूपमे वर्णित अछि ओ कृषि-आधारित अर्थव्यवस्थाक लेल जानल जाइत अछि। जीविकाक एकमात्र साधन कृषि रहितो कृषि-व्यवस्था पंगु बनल अछि। कोसीक बाढ़िसँ त्रस्त लोकक अनन्त दु:खक चित्रण उपन्यासकार निम्नलिखित शब्दमे करैत छथि:
“जहिना कृषि क्षेत्र पंगु बनल छल तहिना खेतीपर जीवन-यापन करैबला किसानो-बोनिहार पंगु बनले छला।”
कृषि-क्षेत्रमे व्याप्त पंगुपनसँ संघर्ष करैत हरिचरण साहस, धैर्य आ अध्यवसायक बलेँ समृद्धिक पथपर अग्रसर भेलाह। लेखक लिखै छथि:
“ओना, केतबो पंगुपन हरिचरणक आगूमे किए ने नाच करए, मुदा किसानक समाजमे किसान-वृन्द कहेबाक अधिकारी तँ अछिए।”
उपन्यासक विषय अछि मिथिलाक पंगु बनल कृषि-व्यवस्था। सम्पूर्ण उपन्यासमे ‘पंगु’ आ ‘पंगुपन’केँ केतेको बेर प्रयोग कएल गेल अछि। कथाक मूलमे कृषकक असहाय स्थितिक चित्रण वर्णित अछि। उपन्यासक सुखद अन्त व्याप्त पंगुपनपर हरिचरणक विजयसँ होइत अछि। ऐ तरहेँ शीर्षक उपन्यासक मुख्य विषयक उद्घोषक होबाक कारणेँ पूर्णत: अर्थपूर्ण आ महत्वपूर्ण अछि।
‘पंगु’ शीर्षक प्रसिद्ध ग्रन्थ ‘रामचरितमानस’क बहु-उद्धृत पंक्तिकेँ स्मारित करैत अछि:
“मूक होई वाचाल, पंगु चढ़े गिरिवर गहन।”
उपरोक्त दोहामे तुलसीदासजी ईश्वरक कृपासँ एहन स्थितिक सम्भावना बतौने छथि। उपन्यासमे ईश्वरीय कृपाक पर्याय व्यक्तिक अध्यवसाय आ इच्छा शक्तिकेँ देखाओल गेल अछि। कहल गेल अछि- ईश्वर ओकरे मदद करै छथि जे अपन मदद स्वयं करै छथि। आत्म-विश्वास आ दृढ़-संकल्पक बलसँ कोनो चमत्कारिक कार्य कएल जा सकैछ। इएह संदेश उपन्यासक कथामे अन्तर्निहित अछि जे सुधी पाठकक लेल जीवन पाथेय अछि।
– डॉ. राम अशीष सिंह